क्या कहते हैं अपने बारे में अरविन्द व्यास नाम है, प्यास तख़ल्लुस है । 1979 में M.Tech. किया था भोपाल M.A.C.T से ।
कल्यान महाराष्ट्र में जन्मा हूँ , मथुरा , राजस्थान से, वांशीक सम्बन्ध हैं ,
साहित्यकार नहीं हूँ, पर गुरू कबीरा देते हैं , वही लोगो तक पहुँचने की कोशिश करता हूँ ।
किताबें तैयार कर रहा हू , उनमें खास खास हैं । भक्ति की बूँदें , ओस की बूँदें , पहेलियाँ ,
करामाती कहावतें, मायामय मस्ती की पाठशाला इत्यादि ।
18 साल से UAE में रहता हूँ व कार्यस्थ [Engineering Consultant] हूँ ।
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संपादक भी अजब जिव होता है.उसके ऊपर कई तरह की ज़िम्मेदारी होती है .वो रचना का आलोचक भी होता है और प्रशंसक भी।
हमज़बान उन तमाम लोगों की पत्रिका है ,जिन्हें मुख्य धारा के कथित सुरमा हमेशा अनदेखी करते आए हैं। पाठकों का हमें अपेक्षा से अधिक सहयोग मिला .हम आभारी हैं , उनके भी और रचनाकारों के भी जो हमें मनमांगी मुराद से सरफ़राज़ कर रहे हैं।
अरविन्दजी परम्परावादी साहित्यिक संस्कार के अहम गीतकार हैं .उनहोंने हमें रचना उपलब्ध करायी , शुक्रगुजार हैं हम। लेकिन कुछ पंक्तियाँ जो गैर-ज़रूरी लगीं हमने हटा दीं.ये उन्हें नागवार गुज़रा.हलाँकि मेरी कमअक्ली की राय ये रही कि कविता ज़्यादा प्रभावी हो गई है .
लेकिन अंतत: सब से बड़ा आलोचक और प्रशंसक पाठक ही होता है ।
इसलिए हम रचना के दोनों रूप यहाँ दे रहे हैं ।पहले संपादित प्रति ,फिर लेखकीय प्रति.
अदालत पाठक की फ़ैसला भी आपका .
1
बाप की छाप
बनी बर्फ़ या भाप
अपने अंदर देखे
कहाँ, क्या है आप
बाप की छाप
बनी बर्फ़ या भाप
अपने अंदर देखे
कहाँ, क्या है आप
उनके साथ साथ चलते,
लगती बिलकुल धूप नही ।
उनके साये से सुन्दर,
दूजा कोई रूप नहीं ।
लगती बिलकुल धूप नही ।
उनके साये से सुन्दर,
दूजा कोई रूप नहीं ।
गोद में पाला, गिरते संभाला
कहानी कहते बचपन ढाला
ज्ञान दिया, हर संकट टाला
वो प्यार का गुस्सा ,
वो हाथो का स्पर्श निराला
ज्ञान दिया, हर संकट टाला
वो प्यार का गुस्सा ,
वो हाथो का स्पर्श निराला
बुढापे को जो न सहे
जीवन पर बोझ कहे
जीवन कतर्व्य नही
सिर्फमौज मौज कहे
जीवन पर बोझ कहे
जीवन कतर्व्य नही
सिर्फमौज मौज कहे
साथ होलो, सेवा करलो
कर्म धोलो, खुशियॉ भरलो
कर्म धोलो, खुशियॉ भरलो
उनके साथ से बडा कोई जप तप नहीं
उनकी सेवा से बडा कोई जप तप नहीं
उनके पुजन से बडा कोई जप तप नहीं
उनकी सेवा से बडा कोई जप तप नहीं
उनके पुजन से बडा कोई जप तप नहीं
२
मां, बाप की छाप
बनी बर्फ़ या भाप
अपने अंदर झांके
कहाँ, क्या है आप
उनके साथ साथ चलते,
लगती बिलकुल धूप नही ।
उनके साये से सुन्दर,
दूजा कोई रूप नहीं ।
जीवन दे कर,
बचपन साथ बह कर,
जवानी सह कर,
सब सही करे,कुछ न कह कर ।
कौन कहता है, उनमे भगवान का स्वरूप नहीं
गोद में पाला, गिरते संभाला
कहानी कहते बचपन ढाला
ज्ञान दिया, हर संकट टाला
वो प्यार का गस्सा ,
वो हाथो का स्पर्श निराला
कौन कहता है, वह जवानी कुरूप नहीं
बुढापे को जो न सहे
जीवन पर बोझ कहे
जीवन कतर्व्य नही
सिर्फ मौज मौज कहे
कौन कहता है, वह जवानी कुरूप नहीं
साथ होलो, सेवा करलो
कर्म धोलो, खुशियॉ भरलो
उनके साथ से बडा कोई जप तप नहीं
उनकी सेवा से बडा कोई जप तप नहीं
उनके पुजन से बडा कोई जप तप नहीं
5 comments: on "कविता:अरविन्द व्यास प्यास"
मान्यवर येसा जुलम न करे
लाईने बहुत खास निकाल दी है … यह गीत है
दुसरे , तीसरे, व चौथे भाग के बाद की पंक्तिया निचे दी है …
कौन कहता है, उनमे भगवान का स्वरूप नही
कौन कहता है, उनमे अतीत अनूप नही
कौन कहता है, वह जवानी कुरूप नही
इन पंक्तियो के वहैर यह गीत का मतलब ही नही …
बदल दे या निकाल दे भाई जान
धन्यवाद जी
कविता के दोनों रूप पढ़े
कवि ने शायद ये गीत लिखा था लेकिन शहरोज़ ने इसे कविता में ढाल दिया
सच बताऊं तो कविता ज्यादा बेहतर अभिव्यक्त कर रही है
व्यास जी से कहना चाहूँगा कि वे इसे अन्यथा न लें
जाकिर हुसैन साहब धन्यवाद ,
गीत का संदेश तो निकाली गई तीनों पंक्तियों में ही है … मेने लिखा था
शरीर से आत्मा ना अलग करो
कभी शिशु से माँ न अलग करो
यह गीत में अब भी कमी है, सही paste नही किया …
कौन कहता है, उनमे अतीत अनूप नही … की जगह निचे वाली पंक्ति डाल दी, जो फिर दुबारा आ गई … निचे अलग अलग कर लिख रहा हू …।
कौन कहता है, वह जवानी कुरूप नही
सही और पूरी----------------------
मां, बाप की छाप
बनी बर्फ़ या भाप
अपने अंदर झांके
कहाँ, क्या है आप
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उनके साथ साथ चलते,
लगती बिलकुल धूप नही ।
उनके साये से सुन्दर,
दूजा कोई रूप नहीं ।
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जीवन दे कर,
बचपन साथ बह कर,
जवानी सह कर,
सब सही करे,
कुछ न कह कर ।
कौन कहता है, उनमे भगवान का स्वरूप नही
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गोद में पाला, गिरते संभाला
कहानी कहते बचपन ढाला
ज्ञान दिया, हर संकट टाला
वो प्यार का गस्सा ,
वो हाथो का स्पर्श निराला
कौन कहता है, उनमे अतीत अनूप नही
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बुढापे को जो न सहे
जीवन पर बोझ कहे
जीवन कतर्व्य नही
सिर्फ मौज मौज कहे
कौन कहता है, वह जवानी कुरूप नही
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साथ होलो, सेवा करलो
कर्म धोलो, खुशियॉ भरलो
उनके साथ से बडा कोई जप तप नहीं
उनकी सेवा से बडा कोई जप तप नहीं
उनके पुजन से बडा कोई जप तप नहीं
व्यास जी
मैं कोई समीक्षक या आलोचक नहीं, लेखक भी नहीं. एक आम पाठक के तौर पर जैसा लगा लिख दिया
फिर भी रचना आपकी है, जैसा चाहें, वैसी रखिये
अरविन्द जी बहुत ही अच्छे व्यक्ति है इनके साथ दो सालों के सफ़र में मैंने इनकी गहरी और अलग सोच और लिखने की शेल्ली को जाना इन्होने हमेशा ही अपनी रचना में सन्देश देने की कोशिश की है इनकी कई पहेली मैंने पाहिले भी पढ़ी है
कविरा रहीम जैसे बड़े कवी के जैसे उन्होंने भी दोहों का बड़ा संग्रह लिखा है
ये हमारे लिए नसीब की बात है की इनके जैसे व्यक्तित्व का इंसान हमारे साथ है और हमे अपने ज्ञान से सींच रहा है
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी