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उर्दू की इस ख्यात पाकिस्तानी कवयित्री का जन्म दिल्ली से कुछ ही फासले पर स्थित उत्तर प्रदेश के शहर बुलंद यानी बुलंदशहरमें आज़ादी से सात साल क़ब्ल 1940 में हुआ .बँटवारे की त्रासदी ने इन्हें भी हमसे छीन लिया .औरों की तरह इनके परिवार को भी मुहाजिर होने का दंश भोगना पड़ा .लाहोर से आपने उच्च शिक्षा हासिल की .सरकारी नोकरी की ।
माहे-नो जैसी पत्रिका की संपादक बनीं। पाकिस्तानी आर्ट काउंसिल की अगुवाई की। पाकिस्तानी मुस्लिम औरतों की आवाज़ को दुन्या में बुलंद करनेवाली कवयित्रियों में इनका नाम सरे-अव्वल है।
औरत ख्वाब और खाक के दरम्यान और ख़याली शख्स से मुक़ाबला इनकी चर्चित किताब है।
आपने सीमोन दी बुव्वा की विश्व विख्यात पुस्तक सेकंड सेक्स का उर्दू में अनुवाद किया और लैला खालिद
का जिंदगीनामा भी कलमबंद किया।
फिलहाल इस्लामाबाद में रहकर स्वतंत्र-लेखन ।
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शहरज़ाद का सवाल
मेरी छत की मुंडेर पे मुनीर नियाजी ने
लड़कियाँ देखी थीं
धानी चुनरिया ओढे हुए
मेरी छत पे क़तील शिफाई ने
लड़कियाँ देखी थीं
पायल छनकाती हुई
मेरी छत पे अहमद फ़राज़ ने
लड़कियाँ देखी थीं
इश्क़ नहाती हुई
मेरी छत पे ज़हरा आपा ने
लड़कियाँ देखी थीं
परचम लहराती हुई
मेरी छत पे फ़हमीदा और आसिमा ने
नारे मारती , आगे बढती हुई
मैं देख रही हूँ
अब मेरी छत पे काले बुर्क़े
लंबे डंडे शरियत फतवे
काले अमामे पहने लड़के
खून कि जिनकी आंखों में है
ज़हर कि जिनके लफ्जों में है
दीवारों पे क्लाश्न्कोफ़ की goli नाच रही है
खोफ़ -सा हर हंसती लड़की के माथे पे लिखा है
डरती-डरती , सहमी-सहमी पूछ रही है
मैं फतवों के जाल से कैसे निकलूँ
हब्स के इस माहोल में
कैसे जिंदा रहूँ
( कंप्यूटर रेखांकन चार वर्षीय आयेश लबीब )
6 comments: on "सरहद पार से : किश्वर नाहिद की नज़्म"
ऐसे वक़्त जब मज़हबी कट्टरता चरम पर है. धर्म के नाम पर खून पानी की तरह बह रहा है शहरोज़ भाई किश्वर की ये नज़्म बहुत अहमियत रखती है .अफ़सोस कि इनदिनों कमेन्ट भी रचना पर नहीं लोग रचनाकार पर दे रहे हैं !!!
sach hai, dharm ab dharm na rahkar ek talwar ban gaya hai aur yeh talwar sirf begunahon aur aurton ke upar chalna hi janti hai..
एक अच्छी नज़्म के लिए नहीं बल्कि एक ज़रूरी सवाल उठाने के लिए kishwar को बधाई! और ये सवाल हर औरत को पूछना चाहिए कि हिंसा हो या फतवा, सबसे ज्यादा वो ही निशाने पर क्यों?
कंप्यूटर रेखांकन के लिये आयेश लबीब को शुभकामनायें । किश्वर नाहिद एवं मौजूदा हालात की हकीकत को पढवाने के लिए आभार ।
شكرا.
shahroz bhai,dil ko chhu liya
बहुत बढ़िया प्रयास .दिल को तर कर गया .काश सभी कोई ऐसा सोच पाते, कह पाते ,कर पाते .
शुक्रिया आपका आप इस ओर कदम बढाते नज़र आए .
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी