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आजकल कुछ ब्लॉग पर मुस्लिम रचनाकारों पर साम्प्रदायिक होने के आरोप -प्रत्यारोप ज़ोर-शोर से पढनेको मिले. दोस्तों-दुश्मनों के गलयारे में भी गाहे-बगाहे समय-समय पर ऐसे इल्जामों का सामना मुस्लिम लेखक-कवि अक्सर करते रहे हैं।
मुस्लिम लेखक-कवियों पर एक आरोप ये भी है कि वे उतने प्रगतिशील नहीं होते या यूँ कहें कि वे अपने मज़हब-समाज की आलोचना करने से परहेज़ करते हैं.यथार्थ जबकि इसके बिल्कुल विपरीत है.भारत में मुस्लिम लोगों की अच्छी संख्या रही है औरये प्रगतिशील और सेकुलर भी रहे हैं.प्रेमचंद और रविन्द्रनाथ ठाकुर के साथ सज्जाद ज़हीर का नाम प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना में अव्वल रहा है.और ज़्यादा तफसील में मैं जाना मुनासिब नहीं समझता.पिछले दिनों फहमिदा रियाज़ की नज़्म आपने पढ़ी .मुस्लिम कवियों के इन क्रांतिकारी शेरों को क्या कोई नज़र अंदाज़ कर सकता है:
तलाक दे तो दिया है,गुरूरो-कहर के साथ
मेरा शबाब भी लोटा दो,मेरे मेहर के साथ
या
अजब रस्म देखी दिन ईदे-कुर्बां
ज़बह करे जो लूटे सवाब उल्टा
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए इस दफा
उर्दू के विख्यात क्रांतिकारी शायर हबीब जालिब
की ये नज़्म पेश-खिदमत है ।
२२मर्च,१९२८ को म्यानी अफ्गना, होशयारपुर,पंजाब में पैदा हुआ ये ऐसा शायर हुआ जिसने तमाम जिंदगी दबे-कुचले लोगों के लिए समर्पित कर दी थी.जिसे कई बार सलांखों के पीछे डाला गया.तीन-तीन किताबें ज़प्त की गयीं.पासपोर्ट ज़ब्त किया गया .झूठे इल्जाम में फंसाया गया।
थोडी बहुत जो भी शिक्षा हासिल की वो दिल्ली में ही .१९४१ में शायरी की शुरुआत .४३-४४ में रोज़ी के लिए मजदूरी.विभाजन के बाद परिवार पाकिस्तान ।
एक बच्चा दवा के अभाव में मरा. एक बीमार बच्ची को छोड़कर जेल भी गये ।
१२-१३ मार्च की रात लाहौर के ज़ैद अस्पताल में निधन.--सं .
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ख़तरे में इस्लाम नहीं
खतरा है ज़र्दारों को
गिरती हुई दीवारों को
सदियों के बीमारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
सारी ज़मीं को घेरे हुए हैं
आख़िर चंद घराने क्यों
नाम नबी का लेनेवाले
उल्फत से बेगाने क्यों
खतरा है खूंख्वारों को
रंग-बिरंगी कारों को
अमरीका के प्यारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
आज हमारे नारों से लर्जां है बपा एवानों में
बिक न सकेगें हसरतो-अरमाँ ऊँची सजी दुकानों में
खतरा है बटमारों को
मगरिब के बाज़ारों को
चोरों को,मक्कारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
अमन का परचम लेकर उट्ठो
हर इंसान से प्यार करो
अपना तो मन्शूर है जालिब
सारे जहाँ से प्यार करो
खतरा है दरबारों को
शाहों के गम्ख्वारों को
नव्वाबों,गद्दारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
(शबाब=जवानी, ईदे-कुर्बां=कुर्बानी का दिन , सवाब=पुन्य ,ज़र्दारों=पूंजीपतियों,
नबी=पैगम्बर मोहम्मद,एवानों=संसद,मगरिब=पश्चिम,मन्शूर=घोषणा-पत्र
गम्ख्वारों=हमदर्दों)
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आजकल कुछ ब्लॉग पर मुस्लिम रचनाकारों पर साम्प्रदायिक होने के आरोप -प्रत्यारोप ज़ोर-शोर से पढनेको मिले. दोस्तों-दुश्मनों के गलयारे में भी गाहे-बगाहे समय-समय पर ऐसे इल्जामों का सामना मुस्लिम लेखक-कवि अक्सर करते रहे हैं।
मुस्लिम लेखक-कवियों पर एक आरोप ये भी है कि वे उतने प्रगतिशील नहीं होते या यूँ कहें कि वे अपने मज़हब-समाज की आलोचना करने से परहेज़ करते हैं.यथार्थ जबकि इसके बिल्कुल विपरीत है.भारत में मुस्लिम लोगों की अच्छी संख्या रही है औरये प्रगतिशील और सेकुलर भी रहे हैं.प्रेमचंद और रविन्द्रनाथ ठाकुर के साथ सज्जाद ज़हीर का नाम प्रगतिशील लेखक संघ की स्थापना में अव्वल रहा है.और ज़्यादा तफसील में मैं जाना मुनासिब नहीं समझता.पिछले दिनों फहमिदा रियाज़ की नज़्म आपने पढ़ी .मुस्लिम कवियों के इन क्रांतिकारी शेरों को क्या कोई नज़र अंदाज़ कर सकता है:
तलाक दे तो दिया है,गुरूरो-कहर के साथ
मेरा शबाब भी लोटा दो,मेरे मेहर के साथ
या
अजब रस्म देखी दिन ईदे-कुर्बां
ज़बह करे जो लूटे सवाब उल्टा
इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए इस दफा
उर्दू के विख्यात क्रांतिकारी शायर हबीब जालिब
की ये नज़्म पेश-खिदमत है ।
२२मर्च,१९२८ को म्यानी अफ्गना, होशयारपुर,पंजाब में पैदा हुआ ये ऐसा शायर हुआ जिसने तमाम जिंदगी दबे-कुचले लोगों के लिए समर्पित कर दी थी.जिसे कई बार सलांखों के पीछे डाला गया.तीन-तीन किताबें ज़प्त की गयीं.पासपोर्ट ज़ब्त किया गया .झूठे इल्जाम में फंसाया गया।
थोडी बहुत जो भी शिक्षा हासिल की वो दिल्ली में ही .१९४१ में शायरी की शुरुआत .४३-४४ में रोज़ी के लिए मजदूरी.विभाजन के बाद परिवार पाकिस्तान ।
एक बच्चा दवा के अभाव में मरा. एक बीमार बच्ची को छोड़कर जेल भी गये ।
१२-१३ मार्च की रात लाहौर के ज़ैद अस्पताल में निधन.--सं .
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ख़तरे में इस्लाम नहीं
खतरा है ज़र्दारों को
गिरती हुई दीवारों को
सदियों के बीमारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
सारी ज़मीं को घेरे हुए हैं
आख़िर चंद घराने क्यों
नाम नबी का लेनेवाले
उल्फत से बेगाने क्यों
खतरा है खूंख्वारों को
रंग-बिरंगी कारों को
अमरीका के प्यारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
आज हमारे नारों से लर्जां है बपा एवानों में
बिक न सकेगें हसरतो-अरमाँ ऊँची सजी दुकानों में
खतरा है बटमारों को
मगरिब के बाज़ारों को
चोरों को,मक्कारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
अमन का परचम लेकर उट्ठो
हर इंसान से प्यार करो
अपना तो मन्शूर है जालिब
सारे जहाँ से प्यार करो
खतरा है दरबारों को
शाहों के गम्ख्वारों को
नव्वाबों,गद्दारों को
ख़तरे में इस्लाम नहीं
(शबाब=जवानी, ईदे-कुर्बां=कुर्बानी का दिन , सवाब=पुन्य ,ज़र्दारों=पूंजीपतियों,
नबी=पैगम्बर मोहम्मद,एवानों=संसद,मगरिब=पश्चिम,मन्शूर=घोषणा-पत्र
गम्ख्वारों=हमदर्दों)