बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

हौसले की उड़ान : तस्लीम ! राहत की कहकशां

जादूई  चमत्कार की  तरह शिखर पर पहुंची तस्लीम राहत के  अलावा सफलता के  सोपान चढ़ती शहर की कहकशां  नाज़ ऐसी मिसाल है,जिसके  साहस और परिश्रम ने सारे उल्टे पहाड़े सीधे कर  दिये हैं । आत्मनिर्भरता की  इबारत रचती इसकी  उड़ान औरों के  हौसले को  भी जान बख्श रही है। मां पिता के  देहांत के  बाद वह भाई बहनों पर भार नहीं, मददगार बनकर सामने आई है। स्कूटी  पर फुर्र उड़ जाने वाली, आत्मनिर्भरता से लबरेज इस लड़की  का  अपना बैंक  बैलेंस है। कंप्यूटर सज्जित  प्रिटिंग की  अपनी यूनिट है। महज छह वर्षों में उपजा यह विश्वास ढेरों मुस्लिम लड़कियों को  तालीमो हुनर की स्केटिंग  से जेब कर  रहा है।

अंजुमन अस्पताल,  कोंका डिपो की  रहने वाली मरहूम मोहम्मद युनुस की  छोटी बिटिया कहकशां ने दरअसल विपरीत स्थितियों में भी सपने को  संजोए रखा । उसके  जेहन में 26 जुलाई 2004 का  दिन स्थायी  रूप से अंकित  है । दाखिले के सिलसिले में कालेज से सुबह ही लौट कर आई थी । दिलो दिमाग पर कालेज प्रांगन की  उ‹मुक्ता हावी थी । रात के  गहराने के साथ उसके  सपने घने होते जा रहे थे । वह पढऩा चाहती थी । कुछ  करना चाहती थी ताकि  बूढ़े हो चले गरीब मां पिता की गिरती सांसों को  वापस खींच सके  । लेकिन  रात ने अंधेरा और घना कर  दिया । नियति ने उसे ममता से वंचित कर दिया । कुछ सालों बाद पिता के  वात्सल्य से भी बेदखल कर दी गई । कहकशां नाज यानी घरकी  रिंनकी  पंख समेट कर बैठ गयी । साहस ने जब सदमे से बाहर निकाला, तो तीन माह का  अर्सा गुजर चुका  था । जाना सिर्फ अम्मी का  नहीं हुआ, यह हमराज सहेली का  भी बिछोह था । बड़ी बहनें ससुराल में थीं । भाई अपने परिवार संग । अकेली जान । दीवारें काटने को  दौड़ती । एक  भाई तब काफी छोटा था । लेकिन पर कटे नहीं थे, अशक्त थे । उडऩे  की  उत्कंठा  दृढ़ थी । तमन्ना  ने स्क्रीन  पेंटिंग नामक  नए पखेरू दे दिये ।

कालेज से लौटते समय ऑर्डर के  लिए दुकान—दुकान का  चˆककर पहले बड़ा अटपटा लगता था । रिश्तेदारों ने भी ना नुकुर की  । मुस्लिम लड़की का  इस तरह बाजार में लोगों से मिलना,जुलना और बतियाना, किसे सुहाता । पड़ोसियों की  भवें तन गयीं । लेकिन कहकशां की  ईमानदारी और भाइयों के  संग सहयोग ने ऐसे सवालों पर तमांचे जड़ दिए । आज कहकशां गैलेक सी प्रिटिंग की  संचालक  के  साथ ऑरी फ्लेम नामक  स्वयं सेवी समूह की  स्थानीय प्रबंधक  भी है । रोस्पा टावर में एक  दुकान उसने किसी के  साथ साझा किया है ताकि  प्रिटिंग व्यवसाय को  और बढ़ाया जा सके  । महज चंद रुपए से आरंभ कारोबार ने दरख्त की  शकल अख्तियार करनी शुरू कर दी है । कारोबार ही क्यों  चुना ? पढ़ लिख कर आप अफसर भी बन सकती थीं ? कहकशां कहती हैं कि  पैगंबर ने तिजारत को  तरजीह दी है । आप कहते थे कि कारोबार में बरकत है ।

हर धूप छांव में साथ खड़ा छोटा भाई गुड्डू के  अलावा कहकशां अपनी भाभियों का  भी शुक्रगुजार है । जिनके  साथ के  बिना वह एक  कदम भी नहीं बढ़ा सकती थी । वह कहती हैं कि  मां बाप को  अपने बच्चों  पर भरोसा करना चाहिए और बच्चों को  भी उनके  भरोसे को  बनाए रखना चाहिए । वार्षिक  डेढ़ से दो लाख अर्जित करने वाली बीकॉम  आनर्स , कहकशां कहती है कि मुस्लिम लड़कियों को  तालीमो हुनर को  अपना जेवर बना लेना चाहिए । तहजीब के  साथ, मेहनत और ईमानदरी के  बूते लड़कियां तरक्की  मंजिलें तय कर सकती हैं । कविता, नाजिया और रेश्मा जैसी लड़कियां भी मंत्र लेकर गुरु कहकशां की  तरह कामयाबी की  ओर अग्रसर हैं ।



आज के दैनिक भास्कर में प्रकाशित
Digg Google Bookmarks reddit Mixx StumbleUpon Technorati Yahoo! Buzz DesignFloat Delicious BlinkList Furl

7 comments: on "हौसले की उड़ान : तस्लीम ! राहत की कहकशां"

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

कहकशां के बारे में पढ़ना और जानना अच्छा लगा .....जिसके हौसले बुलंद होते हैं उनके रास्ते में कोई बाधा नहीं आती ....प्रेरणादायक पोस्ट

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

विश्व मानवाधिकार दिवस की नोटंकी कल होगी
देश भर में विश्व मानवाधिकार दिवस कल दस दिसम्बर को मनाने की नोटंकी की जाएगी इस नोटंकी में देश में कथित रूप से राष्ट्रिय स्तरीय और राज्य स्तरीय कई कार्यक्रम आयोजित कर लाखों रूपये बर्बाद किये जायेंगे लेकिन देश में आज भी मानाधिकार कानून मामले में देश पंगु बना हुआ हे देश में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन वर्ष १९९३ में गठित कर सुप्रीम कोर्ट के जज रंगनाथ मिश्र को इसका अध्यक्ष बनाया गया और इसी के साथ ही राष्ट्रिय मानवाधिकार कानून देश भर में लागू कर दिया गया , रंगनाथ मिश्र ने इस कानून के माध्यम से देश भर में लोगों को न्याय दिलवाया लेकिन फिर सरकार अपने स्तर पर इस आयोग में नियुक्तियां करने लगी और आज देश भर में राष्ट्रिय और राज्य मानवाधिकार आयोग खुद एक सरकारी एजेंसी बन कर रह गये हें आयोग खुद काफी लम्बे वक्त तक खुद की सुख सुविधाओं के लियें लड़ता रहा और फिर जब राजकीय नियुक्तिया इस आयोग में हुई तो आयोग सरकार के खिलाफ कोई भी निर्देश देने से कतराने लगा , राजस्थान में भी मानवाधिकार आयोग हे लेकिन कई ऐसे मामले हें जिनमे सरकार के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकी हे जब योग और कर्मचारियों तथा पदाधिकारियों की नियुक्ति सरकारी स्तर पर होती हे और वेतन भत्ते सरकार से उठाये जाते हें तो जिसका खायेंगे उसका बजायेंगे की तर्ज़ पर कम होता हे और स्थिति यह हे के देश में १९९३ में बने कानून के तहत आज तक किसी भी हिस्से में मानवाधिकार न्यायालय नहीं खोली गयी हे जबकि अधिनियम में हर जिले में एक मानवाधिकार न्यायायलय खोलने का प्रावधान हे लेकिन सरकार ने नातो ऐसा किया और ना ही पद पर बेठे आयोग के अध्यक्षों ने इस तरफ सरकार पर दबाव बनाया जरा सोचो जब आयोग खुद ही अपने कानून को देश में लागु करवा पाने में असमर्थ हे तो फिर दुसरे कल्याणकारी कानून केसे लागू होंगे ।
राजस्थान में पुलिस नियम अधिनियम २००७ में पारित हुआ इस कानून के तहत पुलिस और जनता की कार्य प्रणाली पर अंकुश के लियें समितियों और आयोग के गठन का स्पष्ट प्रावधान हे लेकिन आज तक तीन वर्ष गुजरने पर भी समितिया गठित नहीं की गयी हें जबकि थानों पर अंकुश के लियें इन समितियों का गठन विधिक प्रावधान हे इसी तरह मानवाधिकार कानून के तहत जिलेवार प्रतिनिधियों की नियुक्ति नहीं की गयी हे । देश के थानों में आज भी प्रताड़ना का दोर जारी हे हालात यह हें के हिरासत में मोतों का सिलसिला थमा नहीं हे सरकारी मशीनरी कदम कदम पर मानवाधिकारों का शोषण कर रही हे लेकिन आयोग के दायरे सीमित हें स्टाफ और सदस्य सीमित हें जिला स्तर पर कोई प्रतिनिधि नियुक्त नहीं किये गये हें और आयोग मात्र कार ड्राइवर और भत्तों का बन कर रह गया हे कुछ मामलों में आयोग कठोर रुख अपनाता हे तो उसकी पलना नहीं होती हे कोटा जेल के अंदर इन दिनों नियमित हिरासत में मोतें हो रही हें और हालात यह हें के राजस्थान और राष्ट्रिय मानवाधिकार आयोग ने कोटा जेल में मानवीय व्यवस्थाएं करने के लियें एक दर्जन से अधिक मेरी सोसाइटी ह्युमन रिलीफ सोसाइटी की शिकायत पर राज्य सरकार और कोटा के अधिकारीयों को निर्देश दिए हें मुझे गर्व हे के मानवाधिकार क्षेत्र में कार्य करने के लियें मेरी सोसाइटी ह्यूमन रिलीफ सोसिईती १९९२ में बनी और फिर १९९३ में आयोग और राष्ट्री मानवाधिकार कानून बना राजस्थान में कोटा से राष्रीय मानवाधिकार आयोग में सबसे पहली शिकायत मेरी दर्ज की गयी और इस शिकायत पर बाबू इरानी पीड़ित को न्याय दिलवाकर एक थाना अधिकारी को अपराधी बना कर मुकदमा दर्ज करवाने के निर्देश दिए गये और मुआवजा भी दिलवाया गया । कल विश्व मानवाधिकार दिवस पर अप सभी ब्लोगर बन्धु जिलेवार मानवाधिकार कोर्ट खोलने ,समितिया गठित करने पुलिस आयोग और समितिया गठित करने , न्यायालयों और थानों में कमरे लगवाने के मामले में एक एक ब्लॉग अवश्य लिख कर नुब्ग्र्हित करने ताकि देश में कम से कम इस कानून की १७ साल बाद तो क्रियानाविती हो सके । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

मनोज कुमार ने कहा…

एक प्रेरणादायक पोस्ट।

kshama ने कहा…

Behad achhee lagee ye Kahkashan kee dastaan! Ummeed karti hun,ki,kayi ladkiyaan isse prerna lengi!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आपकी यह रचना कल के ( 11-12-2010 ) चर्चा मंच पर है .. कृपया अपनी अमूल्य राय से अवगत कराएँ ...

http://charchamanch.uchcharan.com
.

Er. सत्यम शिवम ने कहा…

बहुत ही अच्छा.....मेरा ब्लागः-"काव्य-कल्पना" at http://satyamshivam95.blogspot.com/ ....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे...धन्यवाद

शारदा अरोरा ने कहा…

prerna dayak rachna hai , likha rochak tareeke se hai .

एक टिप्पणी भेजें

रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.

न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी

(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)