बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलता। इससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता। कई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.
कथित
रूप से विस्फोटक के साथ पकड़े
गए
इंतजार अली को जमानत मिलने
के बाद
फोटो-
रमीज़
सैयद
शहरोज़ क़मर की क़लम से
यातना
भरी 55 लंबी
रातों के बाद लौटा उम्मीद का
सूरज गुरुवार को हिंदपीढ़ी,
निजाम नगर की
अमन...
(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)