बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 31 जुलाई 2013

वासवी पर लगा एक पुस्तक से सामग्री टीपने का आरोप

1957 की  पुस्तक  से 2008 में ली गयी  सामग्री   झारखंड महिला आयोग  की  सदस्य हैं वासवी वासवी बोस/ वासवी/ वासवी भगत और अब वासवी किडो। झारखंड के बौद्धिक व...
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गुरुवार, 25 जुलाई 2013

तीन कविताएँ : तीन रंग

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सोमवार, 22 जुलाई 2013

सीमा पर पिछड़ता मानवाधिकार

      रजनेश कुमार पाण्डेय की क़लम से भारत- बांग्लादेश सीमा  से लौट कर djhexat “kgj fLFkr n”keh ?kkVA ;gha ij utj vk jgk VªsM lsaVjAunh ds ml dksus ij gS ckaXykns”k vkSj ydfM+;ksa okyk ckal tgka j[kk gS oks gS HkkjrA   नार्थ-ईस्ट(उत्तर-...
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सोमवार, 15 जुलाई 2013

धरती के दावेदार

  उज्जवला ज्योति तिग्गा की क़लम से अभिशप्त इतिहास नहीं चाहिए मुझे तुम्हारे उस असीम साम्राज्य कानाम मात्र का राजपाटजहां रचा जाता हैमेरे खिलाफ़हर पल षडयंत्रो का खेलमेरी इच्छाओं/अनिच्छाओंआकाक्षांओ/स्वप्नों के खिलाफ़दमन/शमन की व्यूह रचनाओं...
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शनिवार, 6 जुलाई 2013

क्या मुझे रोना नहीं आएगा?

          फौज़िया रियाज़ की क़लम से कहानी: फ़ैसला वो गिर जाती अगर दीवार ना थामती. अब क्या करे? डाक्टर के पास जाए? एक बार कन्फ़र्म करे? या चुपचाप जाकर टीवी पर एम.टीवी देखकर ‘चिल’ करे. शायद ये सब अपने आप ही...
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सोमवार, 1 जुलाई 2013

कजरा का बंसू बन जाना

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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)