बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 13 जनवरी 2013

हुगली किनारे विवेक का आनंद

फोटो:संदीप नाग बेलुर मठ का रंग अजूबा  सैयद शहरोज़ कमर की क़लम से हुगली में सूरज डूब रहा है। उसकी ज़र्दी  ने स्नेहा  चौधरी की सांवली  रंगत को और  सुनहरा बना  दिया है। स्नेहा...
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