बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 8 नवंबर 2012

रंज से इस कदर याराना हुआ @ QUICK बंदी

            कमलेश सिंह की कलम  से  Fear, Oh Dear! मैं तो बस आप ही से डरता हूँ. मैं कहाँ कब किसी से डरता हूँ. मेरी दुनिया है रोशनाई में, इसलिए रौशनी से डरता हूँ   बहर-ए-आंसू हूँ...
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रविवार, 4 नवंबर 2012

अदालत भी उगलदान है....

क़मर सादीपुरी की कलम से     1. ये निजाम क्या निजाम है। न ज़मीन है, न मकान है। झूठा, चोर, बेईमान है। कोहराम है, कोहराम है। सच को मिलती है सज़ा अदालत भी  उगलदान  है। दिल किस क़दर है बावफा तुझे इल्म है, न गुमान...
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