कमलेश सिंह की कलम से
Fear, Oh Dear!
मैं तो बस आप ही से डरता हूँ.
मैं कहाँ कब किसी से डरता हूँ.
मेरी दुनिया है रोशनाई में,
इसलिए रौशनी से डरता हूँ
इसलिए रौशनी से डरता हूँ
बहर-ए-आंसू हूँ बदौलत तेरी,
तेरी दरियादिली से डरता हूँ.
तेरी दरियादिली से डरता हूँ.
जब तेरा अक्स याद आता है,
मैं बहुत सादगी से डरता हूँ.
मैं बहुत सादगी से डरता हूँ.
रंज से इस कदर याराना हुआ,
मिले तो अब खुशी से डरता हूँ.
मिले तो अब खुशी से डरता हूँ.
मौत से डर नहीं ज़रा भी मुझे,
हाँ, इस जिंदगी से डरता हूँ.
हाँ, इस जिंदगी से डरता हूँ.
जाने पहचाने थे हाथ औ खंजर,
कहता था अजनबी से डरता हूँ!
कहता था अजनबी से डरता हूँ!
वस्ल की बात पर ख़मोशी भली,
हाँ से भी, और नहीं से डरता हूँ!
हाँ से भी, और नहीं से डरता हूँ!
वो इक रात की गफ़लत ही थी,
मैं क्यूँ फिर चांदनी से डरता हूँ!
मैं क्यूँ फिर चांदनी से डरता हूँ!
ये क्या किया कि आसमां वाले,
मैं तुम्हारी ज़मीं से डरता हूँ!
मैं तुम्हारी ज़मीं से डरता हूँ!
ग़म का बारूद छुपा सीने में,
फिर इक शोलाजबीं से डरता हूँ!
फिर इक शोलाजबीं से डरता हूँ!
तेरे रुखसार पे एक नई गज़ल,
जो लिखी है उसी से डरता हूँ!
जो लिखी है उसी से डरता हूँ!
साँस गिनती की ही बची है मगर,
घर में तेरी कमी से डरता हूँ.
घर में तेरी कमी से डरता हूँ.
तुम्हारी याद के सहराओं में,
हर घड़ी तिश्नगी से डरता हूँ!
हर घड़ी तिश्नगी से डरता हूँ!
दिल लगाने का शौक है तुमको,
और मैं दिल्लगी से डरता हूँ!
और मैं दिल्लगी से डरता हूँ!
साक़िया चश्म-ए-करम कायम रख,
होश में भी तुम्हीं से डरता हूँ!
होश में भी तुम्हीं से डरता हूँ!
जब से सब हो गए ईमां वाले,
मैं हर एक आदमी से डरता हूँ.
मैं हर एक आदमी से डरता हूँ.
—
का किसी से कहें, काकिसि खुद ही,
हूँ काकिसि और काकिसि से डरता हूँ!
हूँ काकिसि और काकिसि से डरता हूँ!
रोशनाई: Darkness बहर: Ocean अक्स: Countenance रंज: Sorrow सहरा:
Desert तिश्नगी: Thirst ईमां: faith काकिसि: तखल्लुस | کاکسی: تخللس Pen
name
| खिर्द: Samajh | तिश्नालबी: parched lips | चारागर: Doctor | आज़ुर्दगी: being unwell
| खिर्द: Samajh | तिश्नालबी: parched lips | चारागर: Doctor | आज़ुर्दगी: being unwell
——————————————
Cut it!
हमको तुमने दुश्मन जाना, छोड़ो यार!
तुमको कौनसा था याराना, छोड़ो यार!
तुमको कौनसा था याराना, छोड़ो यार!
हो सकता है होना ही इक सपना हो,
जो था वो था भी या था ना छोड़ो यार!
जो था वो था भी या था ना छोड़ो यार!
लाख कहा पर पाल लिया आस्तीनों में,
उन साँपों को दूध पिलाना छोड़ो यार!
उन साँपों को दूध पिलाना छोड़ो यार!
किसने कहा था रह-ए-इश्क आसां होगी,
बीच रास्ते स्यापा पाना छोड़ो यार!
बीच रास्ते स्यापा पाना छोड़ो यार!
अहद-ए-मुहब्बत अहल-ए-वफ़ा की बाते हैं,
भैंस के आगे बीन बजाना छोड़ो यार!
भैंस के आगे बीन बजाना छोड़ो यार!
खुद को तो तुम रत्ती भर ना बदल सके,
बदलेगा क्या खाक ज़माना, छोड़ो यार!
बदलेगा क्या खाक ज़माना, छोड़ो यार!
कतरे-कतरे से तुम हमरे वाकिफ़ हो,
महफ़िल में हमसे कतराना छोड़ो यार!
महफ़िल में हमसे कतराना छोड़ो यार!
रौनक-ए-बज़्म-ए-रिन्दां थी चश्म-ए-साकी,
बिन उसके क्या है मयखाना, छोड़ो यार!
बिन उसके क्या है मयखाना, छोड़ो यार!
पैंसठ साल से राह तकत है इक बुढ़िया,
वादों से उसको बहलाना छोड़ो यार!
वादों से उसको बहलाना छोड़ो यार!
चाहें भी तो कैसे भूलें ज़ख़्म सभी,
तुम तो उनपर नमक लगाना छोड़ो यार!
तुम तो उनपर नमक लगाना छोड़ो यार!
आँख-लगे को रात जगाना छोड़ो यार,
सपनों में यूं आना जाना छोड़ो यार!
सपनों में यूं आना जाना छोड़ो यार!
---
Triveni & a postscript
हर एक बात मेरी जिंदगी की तुमसे है
वो एक रात मेरी ज़िंदगी की तुमसे है
बाकी सब दिन तो इंतज़ार के थे
वो एक रात मेरी ज़िंदगी की तुमसे है
बाकी सब दिन तो इंतज़ार के थे
अब कोई रास्ता बचा ही नहीं
जिधर देखो बस पानी ही पानी
इस तलातुम में खुदा क्या नाखुदा भी नहीं
जिधर देखो बस पानी ही पानी
इस तलातुम में खुदा क्या नाखुदा भी नहीं
तुम थे तो चट्टानों से भी लड़ जाता था
तुम थे तो तूफानों से भी लड़ जाता था
आज खुद से भी सामना नहीं होता
तुम थे तो तूफानों से भी लड़ जाता था
आज खुद से भी सामना नहीं होता
फिर वही रात तो आने से रही
लगी ये आँख ज़माने से रही
शमा बुझा दो, हमको अब सो जाने दो
लगी ये आँख ज़माने से रही
शमा बुझा दो, हमको अब सो जाने दो
_____
अमेरिका में बवंडर आया तो बिजली चली गई,
हमारे गाँव में बिजली आये तो बवंडर आ जाए!
हमारे गाँव में बिजली आये तो बवंडर आ जाए!
~~
Dussehra. Ten taunts
एक हम नहीं थे काबिल तुम्हारे,
उस पे इतने थे बिस्मिल तुम्हारे!
उस पे इतने थे बिस्मिल तुम्हारे!
दो घड़ी और रुकते तो हम भी,
देख लेते हद्द-ए-कामिल तुम्हारे!
देख लेते हद्द-ए-कामिल तुम्हारे!
तीन हर्फों का जुमला बस सच्चा,
बाकी किस्से हैं बातिल तुम्हारे!
बाकी किस्से हैं बातिल तुम्हारे!
चार दिन की है ये जिंदगानी,
इसमें दो दिन हैं शामिल तुम्हारे!
इसमें दो दिन हैं शामिल तुम्हारे!
पांच ऊँगलियाँ डूबी हों घी में,
मुंह में शक्कर हो कातिल तुम्हारे
मुंह में शक्कर हो कातिल तुम्हारे
छः हाथ की ज़मीं ही तो मांगूं,
बाकी सेहरा-ओ-साहिल तुम्हारे!
बाकी सेहरा-ओ-साहिल तुम्हारे!
सात सुर से बनी मौसिकी भी,
कुछ नहीं है मुकाबिल तुम्हारे!
कुछ नहीं है मुकाबिल तुम्हारे!
आठ पहरों में रहते हो तुम ही,
रात, दिन भी हैं माइल तुम्हारे!
रात, दिन भी हैं माइल तुम्हारे!
नौ लखा हार ना दे सके हम,
कर दिया नाम ये दिल तुम्हारे!
कर दिया नाम ये दिल तुम्हारे!
दस ये गिनती के हैं मेरे मसले,
बन गए जो मसाइल तुम्हारे!
बन गए जो मसाइल तुम्हारे!
Raavan
पेट को रोटी,
तन को कपड़ा,
सिर को छत,
बच्चों की शिक्षा अनवरत,
वादे,
यही हैं जो ४७ में हुए,
जो १४ में होंगे!
तन को कपड़ा,
सिर को छत,
बच्चों की शिक्षा अनवरत,
वादे,
यही हैं जो ४७ में हुए,
जो १४ में होंगे!
सबको बिजली,
सबको पानी,
सबको गैस,
गरीबी, बेरोज़गारी हटाओ,
मलेरिया भगाओ,
विदेशी हाथ काटो,
मजदूरों में ज़मीन बांटो,
देश की अखंडता,
संविधान की संप्रभुता,
जय जवान, जय किसान,
और वही पाकिस्तान,
नारे,
यही हैं जो ४७ में लगे,
जो १४ में लगेंगे!
सबको पानी,
सबको गैस,
गरीबी, बेरोज़गारी हटाओ,
मलेरिया भगाओ,
विदेशी हाथ काटो,
मजदूरों में ज़मीन बांटो,
देश की अखंडता,
संविधान की संप्रभुता,
जय जवान, जय किसान,
और वही पाकिस्तान,
नारे,
यही हैं जो ४७ में लगे,
जो १४ में लगेंगे!
आरक्षण, सुशासन,
शोषण, कुपोषण,
मरता जवान,
मरते किसान,
भ्रष्टाचार, कदाचार,
पूँजीवाद, समाजवाद,
अपराध, उत्पीड़न,
सांप्रदायिक सद्भाव,
चीज़ों के बढ़ते भाव,
मुद्दे,
वही हैं जो ४७ में थे,
यही हैं जो १४ में होंगे
शोषण, कुपोषण,
मरता जवान,
मरते किसान,
भ्रष्टाचार, कदाचार,
पूँजीवाद, समाजवाद,
अपराध, उत्पीड़न,
सांप्रदायिक सद्भाव,
चीज़ों के बढ़ते भाव,
मुद्दे,
वही हैं जो ४७ में थे,
यही हैं जो १४ में होंगे
रावण,
४७ में जलाया था,
आज जल रहा है,
१४ में भी जलाएंगे,
रावण वही है,
रावण जलता नहीं है!
४७ में जलाया था,
आज जल रहा है,
१४ में भी जलाएंगे,
रावण वही है,
रावण जलता नहीं है!
(परिचय :
वरिष्ठ पत्रकार . शौक़िया शायरी . हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में
जन्म : बिहार के भितिया, बांका में, 13 जनवरी को, साल 1973
शिक्षा : स्नातक व पत्रकारिता में डिप्लोमा
सृजन : प्रचुर लिखा, प्रकाशन व प्रसारण
सम्प्रति: दैनिक भास्कर में स्टेट हेड
संपर्क:kamlesh.singh@gmail.com)