बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

बदलती रहेगी तो बहती रहेगी हिंदी

हिंदी के संवेदनशील जानकार चाहिए   सैयद शहरोज़ क़मर की कलम से समय के साथ संस्कृति, समाज और भाषा में बदलाव आता है। परंपरा यही है। लेकिन कुछ लोगों की जिद इन परिवर्तनों पर नाहक  नाक  भौं सिकोड़ लेती है। अपने अनूठे...
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मंगलवार, 11 सितंबर 2012

रांची फिल्म फेस्टिवल में झारखंडी फिल्मों से सौतेलापन!

झारखंड के लिए नहीं है सुहाना सफ़र   कुंदन कुमार चौधरी की कलम से झारखंड बनने के 11 साल बाद पहली बार फिल्म फेस्टिवल 'सुहाना सफर का  आयोजन 12 से 15 सितंबर तक  रांची में किया जा रहा है। इस बात से झारखंड ·े फिल्मकार...
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