बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

रविवार, 24 जून 2012

क़लम की मजदूरी करने वाला निपनिया का किसान उर्फ़ अरुण प्रकाश

हर फ़िक्र को धुएं में उडाता चला गया.... सैयद शहरोज़ क़मर की क़लम से सितम्बर की कोई तारीख. साल २००८.रायपुर को मैं अलविदा कर चुका था. देशबंधु के प्रबंधन से ऊब थी, वहीँ दिल्ली आकर कुछ अलग कर गुजरने का ज्वार रह-रह कर उबल...
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सोमवार, 18 जून 2012

....... तो गायक होते सुरजीत पातर

              सुरजीत पातर मार्फ़त ऋतु कलसी  पाश के बाद पंजाबी कवि सुरजीत पातर सबसे ज्यादा पढ़े गए हैं. उनके लबो लहजे की ताजगी दायम है आज भी. जालंधर, पंजाब के एक गांव में १४ जनवरी 1944...
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रविवार, 10 जून 2012

आओ तनिक नाटक से प्रेम करें

ऐसा नहीं कह सकते कि थिएटर दम तोड़ रहा   विभा रानी सैयद शहरोज़ कमर से संवाद लेखक किसी किरदार को जीता है..उसे किसी चित्रकार सा कागज़ ए कैनवास पर उतारता है..लेकिन लेखक ही उस किरदार को अपने अभिनय में डूबती आँखों जीवंत कर...
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शनिवार, 9 जून 2012

कितना अपना क्रांतिकारी योद्धा बिरसा का अबुआ दिशुम

यूँ उड़तीं धरती आबा के सपनों की किरचियाँ  फोटो गूगल से साभार सैयद शहरोज़ क़मर की क़लम से उन्नीसवीं सदी के  अंत में झारखंड के पहाड़ी इलाके में एक  क्रांतिकारी  युवा ने अपने राज का बिगुल फूंक  दिया...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)