10 साल में महिला उत्पीडऩ के करीब 40 हजार मामले हुए दर्ज
अस्मत से खिलवाड़ 11 हजार बार, वहीं दहेज की बलि चढ़ीं लगभग 12 हजार, डायन के बहाने मार दी गईं सबसे अधिक रांची जिला में
सैयद शहरोज क़मर की कलम से
नन्ही सी श्रेया के नन्हे से सपने ने भी दम तोड़ दिया। दादी सरोज को लोगों ने सफेद कपड़ों से न जाने क्यों लपेट दिया है। उन्हें तो पहली मई को आ रहे उसके बर्थ डे के लिए अच्छा सा गिफ्ट लाना था। पापा मम्मी, चाचा सभी रो रहे हैं, लेकिन श्रेया चुप है। उसके दादा लखन की आंखें बोलती हैं। जिसमें धधकता लावा है। चार हैवानों ने रविवार की शाम उनकी पत्नी सरोज को ऑटो से उतारा.सामूहक दुष्कर्म के बाद उसकी शर्मगाह में शराब की बोतल घुसेड दी.सोमवार की सुबह सरोज ने पुलिस तंत्र की तरह ही आँखें मूँद लीं. पिछले दिनों मधु देवी का मासूम बेटा बेतिया में कई दिनों से मां को न पाकर नानी की गोद में सुबक कर सो गया था। मधु के पति दिल्ली में हैं। कोई छोटा मोटा रोजगार करते हैं। सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर गोड्डा के एग्जिक्यूटिव इंजीनियर अजय प्रसाद गुप्ता ने उसे रांची बुलाया। रात से खौफनाक डर उसे दिखाया। उसकी अस्मत को तार-तार कर सुबह स्टेशन पर छोड़ दिया।राजधानी से सौ किमी के फासले पर है नक्सल प्रभावित लातेहार जिला। वहां के गारू प्रखंड के चोरहा गांव के कलदेव उरांव की पत्नी को जबरन घर से उठाकर उसका यौन शोषण किया गया। लेकिन बबीता को मान के साथ प्राण भी गंवाना पड़ा। वह दिल्ली भगाकर ले जाई गई। उसका दैहिक शोषण हुआ। किसी तरह पिंड छुड़ाकर जब वह गुमला के अपने गांव कोसा बड़का टोली पहुंची तो उसके गर्भ में बच्चा था। उसे भगाकर ले जाने वाले आरोपियों ने उसके साथ मारपीट की । उसने दम तोड़ दिया। ऐसी कई कहानियां हैं, जिसका दर्द बाहर भी नहीं आ पाता। राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2001 से 2010 के बीच सिर्फ174 आदिवासी और 106 मामले दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के सामने आए। दरअसल यह समाज अधिकाँश अनपढ़ है। थाना कचहरी जाने का साहस नहीं कर पाता। यदि इन आंकड़ों को ही पैमाना मानें तो महिला उत्पीडऩ के 10 साल में करीब 40 हजार मामले दर्ज हुए। औरतों की अस्मत से 11 हजार बार खिलवाड़ हुआ। सबसे ज्यादा गैर आदिवासी इसका ग्रास बनीं। वहीं दहेज की बलि लगभग 30 हजार बेटियां चढ़ीं। डायन के नाम पर करीब डेढ़ हजार मार दी गईं । इसे मामले में रांची जिला पहले पायदान पर है। डायन का आरोप लगाकर इस जिले में 250 महिलाओं की हत्या कर दी गई।
क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े
बलात्कार 7563 सबसे अधिक 2006 में 799
छेड़छाड़ 3374 सबसे अधि· 2003 में 424
यौन उत्पीडऩ 00230 सबसे अधिक 2009 में 83
दहेज हत्या 2707 सबसे अधिक 2009 में 295
दहेज प्रताडऩा 3398 सबसे अधिक 2007 में 453
पति प्रताडऩा 6489 सबसे अधिक 2008 में 851
वेश्यावृति 0075 सबसे अधिक 2007 में 14
बेची गईं 0136 सबसे अधिक 2008 में 39
डायन हत्या 1157 सबसे अधिक 2010 में 35
(स्रोत: 2001 से 2010 से नेशनल क्राइम ब्यूरो)
आयोग तुरंत करता है कार्रवाई
समाज में स्त्री प्रताडऩा की शिकायतें लगातार मिल रही हैं। इसे अवश्य ही रोका जाना चाहिए। आयोग के पास अगर मामले आते हैं, तो हम तुरंत कार्रवाई करते हैं। कई मामले संबंधित विभाग को भेज देते हैं। उसकी रपट भी हमारे पास आती है।
हेमलता एस. मोहन, अध्यक्ष, झारखंड महिला आयोग
सरकारी तंत्र को गंभीर होने की जरूरत है
पहले हमने खुली हवा में सांस लेने के सपने संजोए। लेकिन राज्य बनने के बाद घुटन बढ़ी ही। जिनके जिम्मे सुरक्षा का दायित्व है, वहीं लोग सजग नहीं हैं। जब तक कि सरकारी तंत्र गंभीर व संवेदनशील नहीं होगा स्त्री हिंसा व प्रताडऩा की शिकायतें कम नहीं होंगी।
दयामनी बारला, सामाजिक कार्यकर्ता
3 comments: on "झारखंड में हर रोज 10 बेटियां हिंसा की शिकार"
या खुदा ! कब बदलेगा यह हैवानियत का मंजर ????
ITS REALLY SHAMEFUL....... KAB STRIYAAN WASTU KE ROOP SE UBAR PAYENGI, KAB WAH WASTU HONE SE BACH PAYEGI..... KYA YAHI VIKSIT DESH HONE KA PAIMANA BAN PAYEGA. KAB HUM JI UTHENGE, KI STRI AUR PURUSH EK DUJE KE HONE SE HI ASTITVA ME AA PATE HAI..... JIVAN ME FIR YE DARINDGI KYUN ? SAHROJ JI ITS RALLY A GUD WRITING, KEEP IT UP.
AAPSE EK BAAT JANNA CHAHUNGI AAPNE APNE WRITING ME EK JAGAH LIKHA HAI SABSE JYADA IN GHATNAON KI SHIKAAR GAIR AADIWASI MAHILAYEN BANI HAI.......... AISA AAPKO KYUN LAGA KYA AAPKE PASS KUCH AISE AANKRE V HAI, AGAR HAI TO MERI BAAT KA JAWAB DE PAYE TO MUJHE ACHA LAGEGA KI AISA KYUN HAI KI GAIR AADIWASI MAHILAON KE SAATH AISA JYADA HUA HAI, BANISPAT AADIWASI MAHILAON KE.
THANK U.
नीतिशा जी आप ने कहीं रपट जल्दी बाज़ी तो में तो नहीं पढी.मैंने अंतिम अनुच्छेद में लिखा है:
'राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक वर्ष 2001 से 2010 के बीच सिर्फ174 आदिवासी और 106 मामले दलित महिलाओं के साथ बलात्कार के सामने आए। दरअसल यह समाज अधिकाँश अनपढ़ है। थाना कचहरी जाने का साहस नहीं कर पाता।' जबकि इस अवधि में बलात्कार के मामले 7563 हैं.
यह सरकारी आंकड़े हैं.मैंने उन्हीं को आधार बनाया है.मैं मानता हूँ कि यह भ्रामक हो सकते हैं.लेकिन बात राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो के आंकड़े के मुताबिक ही हो रही है.
आप आयीं हमारे ब्लॉग पर, मैं धन्य हुआ.आभार आपका.आशा है मुझे अब और कुछ कहने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी.
एक टिप्पणी भेजें
रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी