बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 24 अप्रैल 2012

झारखंड में हर रोज 10 बेटियां हिंसा की शिकार

10 साल में महिला उत्पीडऩ के करीब  40 हजार मामले हुए दर्ज  अस्मत से खिलवाड़ 11 हजार बार, वहीं दहेज की  बलि चढ़ीं लगभग 12 हजार, डायन के  बहाने मार दी गईं सबसे अधिक  रांची जिला में      सैयद शहरोज...
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बुधवार, 18 अप्रैल 2012

केरला यानी यहाँ सब अल्लाह की ख़ैर है

समुद्र  नारियल के नमकीन मीठे जल की तरंग  केरल से लौट कर शहबाज़ अली खान    काफ्का ने अपनी कहानी  'चीन की दीवार' में बीजिंग के बारे में कहा है कि हमारा देश इतना विस्तृत है कि  इसके बारे...
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बुधवार, 11 अप्रैल 2012

अपने अंदर का प्रेम बचा लो तो पृथ्वी बच जाएगी

{दामुल और मृत्युदंड जैसी कई फिल्मों के लेखक और हिंदी के अनूठे रचनाकार शैवाल का मानना है कि आज की सबसे बड़ी खबर है नैतिकता बोध का खत्म हो जाना। अब हर आदमी अपने लिए जी रहा है। शैवाल पिछले दिनों रांची में थे। समाज, साहित्य और फिल्म पर शहरोज ने विस्तृत...
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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

ओ रंगरेज़िये ! मेरा रंग दे बासंती चोला..

रंगरेज़ा, रंग मेरा मन, मेरा तन      ममता व्यास की कलम से  कल बाजार से गुजरते समय इक़ रंगरेज की दुकान पे नजर पड़ी | वो बड़े जतन से , हर कपड़े को रंग रहा था | बड़ी ही तन्मयता के साथ | हर कपड़े को उठा -उठा कर रंग में...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)