सिराज फैसल खान की ग़ज़लें
मुल्क़ को तक़सीम करके क्या मिला है
अब भी जारी नफरतों का सिलसिला हैदी है कुर्बानी शहीदोँ ने हमारे
मुल्क तोहफे में हमें थोड़ी मिला है
हुक्मरानोँ ने चली है चाल ऐसी
आम लोगोँ के दिलोँ मेँ फासिला है
क्योँ झगड़ते हैँ सियासी चाल पर हम
मुझको हर हिन्दोस्तानी से गिला है
अब नज़र आता नहीँ कोई मुहाफिज़
हाँ लुटेरोँ का मगर एक क़ाफिला है
लुट रहा है मुल्क अब अपनोँ के हाथोँ
सोचो के आज़ाद हो कर क्या मिला है
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चाहने वाला मेरा जब बेवफा हो जायेगा
तो किसी दूजे से मेरा राब्ता हो जायेगातू जो रुठा तो मनाने का हुनर आ जायेगा
रुठने से तेरे मेरा फायदा हो जायेगा
तुम बड़े या हम बड़े इस बहस मेँ रक्खा है क्या
आइये मैदान मेँ ये फैसला हो जायेगा
नीँद उसकी ख़्वाब उसके ज़िक्र उसका हर घड़ी
रफ़्ता रफ़्ता ये उसी मेँ गुमशुदा हो जायेगा
झूठ के दरबार मेँ सच बोलता है किसलिए
सबकी नज़रोँ मेँ दिवाने तू बुरा हो जायेगा
तू भी अब वैसा नहीँ और मैँ बदल सकता नहीँ
अब हमारे दरम्याँ भी फासिला हो जायेगा
मैँ मिटा किसके लिये, कैसे मिटा, क्योँकर मिटा
वक्त आने पर तुझे ख़ुद तर्जुबा हो जायेगा
फिर चुभेँगे फूल भी पैरोँ मेँ काँटोँ की तरह
एक दिन जब तू अचानक ही जुदा हो जायेगा
जितना भी चर्चा है मेरा जितनी शोहरत है मेरी
तू मेरी हो जा मेरा सब कुछ तेरा हो जायेगा
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ग़ज़ल मेँ हर कोई महबूब की बातेँ सुनाता है
ये फ़ैसल है जो अपने मुल्क के मुद्दे उठाता हैकिसानोँ के लिए अब ख़ुदकुशी है एक हल शायद
लुटेरोँ का कबीला देश की संसद चलाता है
वो भूखा मर रहा है शर्म लोगोँ को नहीँ आती
जो जलती धूप मेँ खेतोँ मेँ अपने हल चलाता है
यहाँ का मीडिया है मुल्क का सबसे बड़ा दुश्मन
जो दिल्ली चाहती है ये वही बंसी बजाता है
अय सूरज दोस्त मेरे इसको तू औकात बतला दे
अकेला जान के दरिया मुझे आँखेँ दिखाता है
अमीरी के नशे मेँ ये भी तुझको याद ना आया
तेरा इक भाई इस शहर मेँ रिक्शा चलाता है
ग़ज़ल के फूल अपनी डायरी मेँ टाँक देता हूँ
किसी की गोद मेँ बच्चा कोई जब मुस्कुराता है
क़लम से ही तेरी बुनियाद जब चाहूँ हिला दूँ मैँ
मैँ शायर हूँ मुझे तलवार से तू क्या डराता है
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कोई टोपी तो कोई अपनी पगड़ी बेच देता है
मिले गर भाव अच्छा जज भी कुर्सी बेच देता हैतवाइफ फिर भी अच्छी है कि वो सीमित है कोठे तक
पुलिस वाला तो चौराहे पे वर्दी बेच देता है
जला दी जाती है ससुराल मेँ अक्सर वही बेटी
कि जिस बेटी की ख़ातिर बाप किडनी बेच देता है
कोई मासूम लड़की प्यार मेँ कुर्बान है जिस पर
बनाकर वीडियो उसकी वो प्रेमी बेच देता है
ये कलयुग है कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीँ इसमेँ
कली, फल, पेड़, पौधे, फूल माली बेच देता है
उसे इंसान क्या हैवान कहने मेँ भी शर्म आए
जो पैसोँ के लिए अपनी ही बेटी बेच देता है
जुए मेँ बिक गया हूँ मैँ तो हैरत क्योँ है लोगोँ को
युधिष्ठर तो किसी चौपड़ पे पत्नी बेच देता है
चमन मेँ जब से ये गन्दी हवा आयी है मग़रिब से
मेरा हर फूल अब साँपोँ को तितली बेच देता है
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रोज़ नया एक ख़्वाब सजाना भूल गए
हम पलकोँ से बोझ उठाना भूल गएसाथ निभाने की कसमेँ खाने वाले
भूले तो सपनोँ मेँ आना भूल गए
जब से तुमने नज़र मिलाना छोड़ दिया
हम लोगोँ से हाथ मिलाना भूल गए
उनसे मिलने उनके घर तक जा पहुँचे
क्योँ आये हैँ यार बहाना भूल गए
झूठोँ ने सारी सच्ची बातेँ सुन लीँ
सूली पर मुझको लटकाना भूल गए
पीने वाले मस्जिद तक कैसे पहुँचे
हैरत है ग़ालिब मैख़ाना भूल गए
चकाचौँध मेँ बिजली की ऐसे खोये
कब्रोँ पर हम दीये जलाना भूल गए
मार दिया सुकरात को सबने सम देकर
बातोँ को वो ज़हर पिलाना भूल गए
दर्द पे कुछ लिखने की मैँने क्या सोची
मीर भी अपना दर्द सुनाना भूल गए
अंग्रेजी का भूत चढ़ा ऐसा सिर पर
बच्चे हिन्दी मेँ तुतलाना भूल गए
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फिर रक़ीबोँ से उसने मुलाकात की
कर रहा है तिज़ारत वो जज़्बात कीबस गया अब तो सावन मेरी आँख मेँ
अब ज़रुरत नहीँ मुझको बरसात की
ज़िन्दगी मेँ कभी पास आया ना वो
रोज़ ख़्वाबोँ मेँ जिसने मुलाकात की
उसके बारे मेँ पहरोँ न सोचा करो
तितलियाँ मत उड़ाओ ख़यालात की
फूल खिल जायेँगे रुत बदल जाएगी
चूड़ियाँ जब बजेँगी तेरे हाथ की
इसलिए हो गया है ख़ुदा भी ख़फा
जब भी खोले हैँ लब आपकी बात की
ज़िन्दगी का सफर तन्हा कटता नहीँ
आ ज़रुरत है मुझको तेरे साथ की
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अगर नेताओँ की चलती यहाँ मेले नहीँ लगते
शहीदोँ की चिता पर भीड़ के रेले नहीँ लगतेअगर हर एक औरत दिल से 'नेहरु जी' सी हो जाती
तो बच्चे दूसरोँ के इनको 'सौतेले' नहीँ लगते
बहुत से शायरोँ का नाम है लेकिन न जाने क्योँ
वो शायर मीर-ओ-ग़ालिब के हमेँ चेले नहीँ लगते
तुम्हारी और मेरी दोस्ती मुमकिन नहीँ जानाँ
कि पौधे पर करेले के कभी केले नहीँ लगते
नुमाइश रोज़ लगती है यहाँ ख़्वाबोँ ख़यालोँ की
मगर दिल मेँ तुम्हारी याद के ठेले नहीँ लगते
जो अपना रंग, मज़हब, वेष- भूषा एक सी होती
तो हम हिन्दोस्तानी भाई अलबेले नहीँ लगते
( परिचय: जन्म: 10 जुलाई १९९१ शहीदोँ के नगर शाहजहाँपुर के एक छोटे से गाँव महानन्दपुर मेँ
शिक्षा: पहले गाँव के मदरसे और प्राथमिक विद्यालय मेँ हुयी।फिर शाहजहाँपुर के इस्लामिया इन्टर कॉलेज से इन्टरमीडिएट . वर्तमान मेँ यहीँ के गाँधी फ़ैज़-ए-आम कॉलेज मेँ बी. एस. सी. के छात्र।
सृजन: बचपन से साहित्य मेँ रुचि ।कई नेट पत्रिकाओँ मेँ कवितायेँ और ग़ज़लेँ ।
सम्मान: कविताकोश सम्मान-२०११
ब्लॉग: खुशबु और आंसू
अपने बारे लिखते हैं : तुम्हारी सादगी ने ही मुझे शायर बनाया है तुम्हीँ ने तो सिखाया है बिना उस्ताद के लिखना
संपर्क:+91-7668666278 )
8 comments: on "नींद उसकी ख़्वाब उसके ज़िक्र उसका हर घड़ी"
Sabhee rachnayen ekse badhke ek hain!
बहुत खूब! क्या गज़लें फरमायी हैं... सभी उम्दा किस्म की है...
आपकी गजलो में एक नयापन विषये भी जैसे मेरे हर पूल सांपो को तितलिय बैच देते है , बना कर विडियो उनके प्रेमी बेच देते है ,या बाप किडनी बैच देते है पर जुबान में कच्चापन पन भी है
आप एक नयी उमीद क़ि तरह है गाजल को और तरसने क़ि जरुरत है ........बहुत ही खूब सरोज भाई
sukriya sarioj bhai is naye sayer se rubaru karwane ke liye
siraaj faisal khan ki gazale unke umar ke hissab se kafi achhi aur srahniye hai...aaap aise yuwa lekhko,kaviyo ko bas protshahit karte rahe..
PANKAJ YADAV
Bahut Bahut Shukriya Shahroz Bhai!!
Aapne apne blog par mujh nacheez ki koshisho apna keemti waqt dekar jagah di...Aapki mohabbatein aur duaayein yun hi milti rahein....
Dosto'N aapne apna keemti waqt dekar mujh nacheez ko padha, meri hausla afzayi ki aur apne keemti mashvaro'N se nawaza...uske liye bahut bahut shukriya...Dosto'n aap ka pyar aur dua hi mere andar k shayar ko nikhaar aur sanvar sakte hain...aapki dua milti rahe aur pyar bhi..!!
Aapka Bhai,
SIRAJ FAISAL KHAN
itni chhoti si umr me itni kamaal ki shayri ....kabile-tareef hai ...
बहुत बहुत खुब सर
मेरे जेसे छोटे बालक की बधाई स्वीकार किजिए
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रचना की न केवल प्रशंसा हो बल्कि कमियों की ओर भी ध्यान दिलाना आपका परम कर्तव्य है : यानी आप इस शे'र का साकार रूप हों.
न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
हमको आइना दिखाना है, दिखा देते हैं.
- अल्लामा जमील मज़हरी