बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 18 जनवरी 2012

नींद उसकी ख़्वाब उसके ज़िक्र उसका हर घड़ी

सिराज फैसल खान की ग़ज़लें  1 मुल्क़ को तक़सीम करके क्या मिला हैअब भी जारी नफरतों का सिलसिला है दी है कुर्बानी शहीदोँ ने हमारे मुल्क तोहफे में हमें थोड़ी मिला है हुक्मरानोँ ने चली है चाल ऐसी आम लोगोँ के दिलोँ मेँ फासिला है क्योँ झगड़ते...
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सोमवार, 9 जनवरी 2012

आशा के गानों के दीवाने हजारों हैं.....

(आधी सदी से भी ज्यादा समय से अपनी आवाज के जादू से लोगों को मदहोश करती आ रहीं आशा भोंसले इस इतवार 08.01.2012 को रांची में थी.कुछ पैसे वालों की मदद से इक अखबार ने उनका लाइव प्रोग्राम आयोजित किया था.यह खबर भास्कर के लिए लिखी गयी...
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ख्यालों की बारिश में भीगी ब्लागर्स मीट

ब्लागर्स मीट में रहा विचार का तेज, गजलों की ताजगी रांची में रविवार को  श्री कृष्ण  लोक  प्रशासन संस्थान के  व्याख्यान कक्ष में झारखंड के  ब्लॉगर्स जुटे। कनाडा से आई ब्लागर व कवयित्री स्वप्न मंजूषा अदा के ...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)