बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

बुधवार, 18 जनवरी 2012

नींद उसकी ख़्वाब उसके ज़िक्र उसका हर घड़ी















सिराज फैसल खान की ग़ज़लें 

1

मुल्क़ को तक़सीम करके क्या मिला है
अब भी जारी नफरतों का सिलसिला है

दी है कुर्बानी शहीदोँ ने हमारे
मुल्क तोहफे में हमें थोड़ी मिला है

हुक्मरानोँ ने चली है चाल ऐसी
आम लोगोँ के दिलोँ मेँ फासिला है

क्योँ झगड़ते हैँ सियासी चाल पर हम
मुझको हर हिन्दोस्तानी से गिला है

अब नज़र आता नहीँ कोई मुहाफिज़
हाँ लुटेरोँ का मगर एक क़ाफिला है

लुट रहा है मुल्क अब अपनोँ के हाथोँ
सोचो के आज़ाद हो कर क्या मिला है

2
चाहने वाला मेरा जब बेवफा हो जायेगा
तो किसी दूजे से मेरा राब्ता हो जायेगा

तू जो रुठा तो मनाने का हुनर आ जायेगा
रुठने से तेरे मेरा फायदा हो जायेगा

तुम बड़े या हम बड़े इस बहस मेँ रक्खा है क्या
आइये मैदान मेँ ये फैसला हो जायेगा

नीँद उसकी ख़्वाब उसके ज़िक्र उसका हर घड़ी
रफ़्ता रफ़्ता ये उसी मेँ गुमशुदा हो जायेगा

झूठ के दरबार मेँ सच बोलता है किसलिए
सबकी नज़रोँ मेँ दिवाने तू बुरा हो जायेगा

तू भी अब वैसा नहीँ और मैँ बदल सकता नहीँ
अब हमारे दरम्याँ भी फासिला हो जायेगा

मैँ मिटा किसके लिये, कैसे मिटा, क्योँकर मिटा
वक्त आने पर तुझे ख़ुद तर्जुबा हो जायेगा

फिर चुभेँगे फूल भी पैरोँ मेँ काँटोँ की तरह
एक दिन जब तू अचानक ही जुदा हो जायेगा

जितना भी चर्चा है मेरा जितनी शोहरत है मेरी
तू मेरी हो जा मेरा सब कुछ तेरा हो जायेगा

3

ग़ज़ल मेँ हर कोई महबूब की बातेँ सुनाता है
ये फ़ैसल है जो अपने मुल्क के मुद्दे उठाता है

किसानोँ के लिए अब ख़ुदकुशी है एक हल शायद
लुटेरोँ का कबीला देश की संसद चलाता है

वो भूखा मर रहा है शर्म लोगोँ को नहीँ आती
जो जलती धूप मेँ खेतोँ मेँ अपने हल चलाता है

यहाँ का मीडिया है मुल्क का सबसे बड़ा दुश्मन
जो दिल्ली चाहती है ये वही बंसी बजाता है

अय सूरज दोस्त मेरे इसको तू औकात बतला दे
अकेला जान के दरिया मुझे आँखेँ दिखाता है

अमीरी के नशे मेँ ये भी तुझको याद ना आया
तेरा इक भाई इस शहर मेँ रिक्शा चलाता है

ग़ज़ल के फूल अपनी डायरी मेँ टाँक देता हूँ
किसी की गोद मेँ बच्चा कोई जब मुस्कुराता है

क़लम से ही तेरी बुनियाद जब चाहूँ हिला दूँ मैँ
मैँ शायर हूँ मुझे तलवार से तू क्या डराता है

4
कोई टोपी तो कोई अपनी पगड़ी बेच देता है
मिले गर भाव अच्छा जज भी कुर्सी बेच देता है

तवाइफ फिर भी अच्छी है कि वो सीमित है कोठे तक
पुलिस वाला तो चौराहे पे वर्दी बेच देता है

जला दी जाती है ससुराल मेँ अक्सर वही बेटी
कि जिस बेटी की ख़ातिर बाप किडनी बेच देता है

कोई मासूम लड़की प्यार मेँ कुर्बान है जिस पर
बनाकर वीडियो उसकी वो प्रेमी बेच देता है

ये कलयुग है कोई भी चीज़ नामुमकिन नहीँ इसमेँ
कली, फल, पेड़, पौधे,  फूल माली बेच देता है

उसे इंसान क्या हैवान कहने मेँ भी शर्म आए
जो पैसोँ के लिए अपनी ही बेटी बेच देता है

जुए मेँ बिक गया हूँ मैँ तो हैरत क्योँ है लोगोँ को
युधिष्ठर तो किसी चौपड़ पे पत्नी बेच देता है

चमन मेँ जब से ये गन्दी हवा आयी है मग़रिब से
मेरा हर फूल अब साँपोँ को तितली बेच देता है

5
रोज़ नया एक ख़्वाब सजाना भूल गए
हम पलकोँ से बोझ उठाना भूल गए

साथ निभाने की कसमेँ खाने वाले
भूले तो सपनोँ मेँ आना भूल गए

जब से तुमने नज़र मिलाना छोड़ दिया
हम लोगोँ से हाथ मिलाना भूल गए

उनसे मिलने उनके घर तक जा पहुँचे
क्योँ आये हैँ यार बहाना भूल गए

झूठोँ ने सारी सच्ची बातेँ सुन लीँ
सूली पर मुझको लटकाना भूल गए

पीने वाले मस्जिद तक कैसे पहुँचे
हैरत है ग़ालिब मैख़ाना भूल गए

चकाचौँध मेँ बिजली की ऐसे खोये
कब्रोँ पर हम दीये जलाना भूल गए

मार दिया सुकरात को सबने सम देकर
बातोँ को वो ज़हर पिलाना भूल गए

दर्द पे कुछ लिखने की मैँने क्या सोची
मीर भी अपना दर्द सुनाना भूल गए

अंग्रेजी का भूत चढ़ा ऐसा सिर पर
बच्चे हिन्दी मेँ तुतलाना भूल गए

6
फिर रक़ीबोँ से उसने मुलाकात की
कर रहा है तिज़ारत वो जज़्बात की

बस गया अब तो सावन मेरी आँख मेँ
अब ज़रुरत नहीँ मुझको बरसात की

ज़िन्दगी मेँ कभी पास आया ना वो
रोज़ ख़्वाबोँ मेँ जिसने मुलाकात की

उसके बारे मेँ पहरोँ न सोचा करो
तितलियाँ मत उड़ाओ ख़यालात की

फूल खिल जायेँगे रुत बदल जाएगी
चूड़ियाँ जब बजेँगी तेरे हाथ की

इसलिए हो गया है ख़ुदा भी ख़फा
जब भी खोले हैँ लब आपकी बात की

ज़िन्दगी का सफर तन्हा कटता नहीँ
आ ज़रुरत है मुझको तेरे साथ की


7

अगर नेताओँ की चलती यहाँ मेले नहीँ लगते
शहीदोँ की चिता पर भीड़ के रेले नहीँ लगते

अगर हर एक औरत दिल से 'नेहरु जी' सी हो जाती
तो बच्चे दूसरोँ के इनको 'सौतेले' नहीँ लगते

बहुत से शायरोँ का नाम है लेकिन न जाने क्योँ
वो शायर मीर-ओ-ग़ालिब के हमेँ चेले नहीँ लगते

तुम्हारी और मेरी दोस्ती मुमकिन नहीँ जानाँ
कि पौधे पर करेले के कभी केले नहीँ लगते

नुमाइश रोज़ लगती है यहाँ ख़्वाबोँ ख़यालोँ की
मगर दिल मेँ तुम्हारी याद के ठेले नहीँ लगते

जो अपना रंग, मज़हब, वेष- भूषा एक सी होती
तो हम हिन्दोस्तानी भाई अलबेले नहीँ लगते


( परिचय: जन्म: 10 जुलाई १९९१ शहीदोँ के नगर शाहजहाँपुर के एक छोटे से गाँव महानन्दपुर मेँ
शिक्षा: पहले  गाँव के मदरसे और प्राथमिक विद्यालय मेँ हुयी।फिर शाहजहाँपुर के इस्लामिया इन्टर कॉलेज  से इन्टरमीडिएट . वर्तमान मेँ यहीँ के गाँधी फ़ैज़-ए-आम कॉलेज मेँ बी. एस. सी. के छात्र।
सृजन:  बचपन से साहित्य मेँ रुचि ।कई नेट पत्रिकाओँ मेँ कवितायेँ और ग़ज़लेँ ।
सम्मान: कविताकोश सम्मान-२०११
ब्लॉगखुशबु और आंसू
अपने बारे लिखते हैं : तुम्हारी सादगी ने ही मुझे शायर बनाया है तुम्हीँ ने तो सिखाया है बिना उस्ताद के लिखना
संपर्क:+91-7668666278 )


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सोमवार, 9 जनवरी 2012

आशा के गानों के दीवाने हजारों हैं.....




















(आधी सदी से भी ज्यादा समय से अपनी आवाज के जादू से लोगों को मदहोश करती आ रहीं आशा भोंसले इस इतवार 08.01.2012 को रांची में थी.कुछ पैसे वालों की मदद से इक अखबार ने उनका लाइव प्रोग्राम आयोजित किया था.यह खबर भास्कर के लिए लिखी गयी थी.)

सैयद शहरोज क़मर  की क़लम से

दिल चीज़ क्या है आप मेरी जान लीजिये

घुमड़ते बादलों के  बीच आवाजों का हौला हौला मीठा झोंका । फिजा में गूंजती बिजली सी स्वर लहरियां। जोहार झारखंड के  साथ एवरग्रीन गायिका  आशा भोंसले मंच पर आयीं। फिर तालियों की  गडग़ड़ाहट के  बीच ही उनका  सनोला स्वर बिरसा स्टेडियम की फिजा में चस्पां हो गया। मखमली आवाजों के रेशमी उजालों में पंजाब का  तड़का , भोजपुर की  ठुमक , गजल की  नफासत और वालीवुड की  चमकीली रंगत थी। उसके  बाद तो मोहब्बत की दीवानगी, उसकी  बेरुखी, उसके  मनुहार, उसके  करार....को  सुरों के  शीशे सी पारदर्शिता में श्रोताओं ने बहुत निकट से महसूस किया ।

आशा ने पहले फिल्म डान के इस गाने को स्वर दिया..ये मेरा दिल प्यार का  दीवाना..दीवाना, दीवाना प्यार का परवाना। रांची के  उमड़े प्रेम के  प्रति यह उनकी  कृतज्ञता थी। परवानों का हुजूम बेशक  उमड़ा। बहुत उमड़ा। उसने झूमकर अपने प्यार का इजहार भी किया । उसके  बाद उनके  स्वर की  रंगत एहसासों को  सहलाती रही। कुरेदती रही। शरारा शरारा..फिल्म मेरे यार की शादी का गाना हो, या हम किसी से कम नहीं का पूछो न यार क्या हुआ। 78 वर्षीया आशा के सामने ऋषि कुमार से जवानों का उत्साह बौना नजर आया। यूं उन्होंने आवाज भी दी: ये लडका हाय अल्लाह कैसा है दीवाना! श्रोताओं की अल्हड़ दीवानगी में उमराव जान की गजल ने थोड़ी देर के  लिए शाइस्तगी जरूर बख्शी, लेकिन आंखों की मस्ती के मस्तानों में कमी हरगिज नहीं आई। वही अंदाज। आवाज का वही जादू। मंद मंद चलती ठंठी हवाओं को उनके  जज्बाती आवाज ने गर्म आगोश में ले लिया। रुई के  फाहे बनकर उनका मीठा  स्वर सर्दी को बचाने में कामयाब रहा। शहरयार की लिखी उमराव जान फिल्म की दोनों मशहूर गजलों को उन्होंने उमराव की अदा के साथ अदा किया। दिल चीज क्या है आप मेरी, जान लीजिए..और  इन आंखों की  मस्ती के  मस्ताने हजारों हैं। बीच में हल्की  बूंदाबांदी हुई। लोग कुछ छिटके । आशा मंच से उतर गईं। दूसरे दौर में बाबुल सुप्रियो ने उनका साथ दिया। गाना तो सुनिए...ओ हसीना जुल्फों वाली...वहीं एक  मैं एक  और तू दोनों मिले इस तरह...उनके  कंठ ही नहीं, उनके  बदन भी थिरकते रहे। आशा ने भरसक श्रोताओं को  निराश नहीं किया। उनके  तरकश से अनगिनत सांगीतिक तीर निकले। जिसने कोहरे की चादर को बार बार तार किया.घंटों लोग उससे घायल होते रहे। मेरा साया का गाना झुमका गिरा रे बरेली के  बाजार में में उनकी  आवाज की  जुगलबंदी उनके  ठुमके  ने भी की । अचानक  उन्होंने एक  चुटकुले के बहाने पंजाबी का याहूं याहूं...ओ याहूं याहूं गाकर सारी महफिल को  भांगड़ा करने  पर मजबूर कर दिया। अब वे मूड में थीं। मोहब्बत वाली कजरारी अंखियों का काली बदरिया ने समर्थन किया तो वह भोजपुरी में उतर आईं। फिल्म बलम परदेसिया सामने थी..स्वर ने बल खाया...हंस कर देखो तो एक  बेरिया...हम मारी-मारी जाइब  तोहार किरिया। बारिश थम चुकी  थी । लेकिन हवाएं  नहीं। आवाज का दीपक खूब भभक रहा था। अब उसके  जाने की बारी थी। जाने से पहले आशा ने आवाज जरूर दी, दम मारो दम..मिट जाए गम .....

रांची का ये मल्हार

बाबुल सुप्रियो की आवाज का  झुमका भी श्रोताओं के  कानों पर खूब अटका। शुरुआत उन्होंने कहो न प्यार है के  रिमिक्स से की । नौजवान अभी स्टेडियम में थे। बाबुल ने फिल्म हम तुम का चर्चित गाना सांसों को सांसों में ढलने दो जरा...को सुरमई आवाज दी। उसके बाद तो अपना सपना मनी मनी के गानों पर चढ़ा खुमार देर तक झूमता रहा। उन्हें कहना पड़ा, सावन में देखो यार रांची का ये मल्हार।


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चित्र: संदीप नाग

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ख्यालों की बारिश में भीगी ब्लागर्स मीट












ब्लागर्स मीट में रहा विचार का तेज, गजलों की ताजगी

रांची में रविवार को  श्री कृष्ण  लोक  प्रशासन संस्थान के  व्याख्यान कक्ष में झारखंड के  ब्लॉगर्स जुटे। कनाडा से आई ब्लागर व कवयित्री स्वप्न मंजूषा अदा के  सम्मान में इस का आयोजन आह्वान नामक  सांस्कृतिक संस्था ने किया था। इस मौके  पर विभिन्न ब्लागरों के  विविध ख्यालों की  रंगत ने श्रोताओं के सामने ब्लाग्स के  नए मायने दिए। बीच बीच में गजलों और कविताओं की  रिमझिम बारिश भी होती रही। रांची, बोकारो, धनबाद और खूंटी के ब्लागर्स  और वर्चुअल स्पेस में लिखने वाले रचनाकारों ने इसमें शिरकत की.

जन सरोकारों से जुड़े ब्लाग्स
जन सरोकारों से जुडी ख़बरों और विमर्श के लिए ब्लॉग बेहतर विकल्प ज़रूर है लेकिन उसके खतरे भी हैं.अभिवयक्ति के खतरे तो उठाने ही होंगे.राजधानी में हुए ब्लोगेर्स मिलन में यह बातें निकल कर सामने आयीं.विषय परिवर्तन करते हुए ब्लागर व पत्रकार विष्णु राज गढ़िया ने कहा कि नेट पर निसंदेह ख़बरों और विचारों का एक बूम है . अच्छे लिखने वाले भी हैं तो कहीं स्तरहीन लेखन से भी सामना होता है.ज़रुरत उसे एक सही दिशा देने क़ी है.फ़िज़ूल की बहस में पड़े बिना वैकल्पिक मीडिया की तलाश जारी है.वहीँ ब्लागर व पत्रकार देवेन्द्र गौतम ने विष्णु का समर्थन करते हुए कहा कि  वर्चुअल स्पेस भविष्य  की पत्रकारिता का वैकल्पिक माध्यम है.उन्होंने बिहार झारखण्ड में  ब्लागर्स के संगठन  पर बल दिया.ब्लागर व कवयित्री रश्मि शर्मा ने कहा क़ि सम्प्रेषण के लिए उन्होंने ब्लाग्स को चुना.बाद में लोग मिलते गए और कारवां बढ़ता गया.कवि-लेखक रणेंद्र का कहंन था क़ि ब्लाग्स महज़ स्वांत सुखाय लेखन नहीं है. वर्चुअल  जगत  इन दिनों कई बदलावों का वाहक बना.हमें उसकी ताक़त का सही इस्तेमाल करना है.ब्लागर राजीव थेपडा ने अच्छे लेखन के साथ बेहतर इंसान बनने पर जोर दिया.रंगवार्ता के संपादक अश्विनी पंकज ने कहा क़ि वर्चुअल स्पेस का हमें वाजिब इस्तेमाल करना चाहिए.ब्लागेर्स को अपनी संस्कृति, प्रकृति और प्रवृति पर विचार करना चाहिए.सही जानकारी देने की कोशिश करनी चाहिए.सामाजिक परिवर्तन में ब्लाग्स अच्छी भूमिका निभा सकता है.वहीँ ब्लागर व ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी ने ज्योतिष को विज्ञान बताया.उन्होंने कहा क़ि उनके ब्लॉग का मकसद इसी का प्रचार करना है.

मेरा हाथ, मेरा कलम बन जाओ

ब्लागर व शायर क़सीम अख्तर ने शायराना लहजे में ब्लाग्स की अहमियत पर बात कही:
मेरा मदावा-ए-गम बन जाओ
मेरा हाथ, मेरा कलम बन जाओ

उन्हीं के शहर बोकारो से आई .ब्लागर व कवयित्री रजनी नैय्यर मल्होत्रा की इस ग़ज़ल को खूब दाद मिली.
रात अभी बाकी है, चिराग सहर तक जलने दो, 
जूनून इ इश्क के मारे इन परवानों को मचलने दो...


सम्मलेन  की ख़ास मेहमान स्वप्न मञ्जूषा अदा ने कहा क़ि उनकी यह पहली ब्लाग्स मीट है.लेकिन बहुत ही सफल है.उन्होंने अपने मधुर स्वर में अपना एक गीत भी सुनाया:
दूर के ढोल सुहावन भैया, दिन-रात यही गीत गावत हैं
 फ़ौरन आकर हम तो भैया बहुत बहुत पछतावत हैं .

कार्यक्रम का संचालन शहरोज़ कमर ने और धन्यवाद ज्ञापन नदीम अख्तर ने किया.
इस अवसर पर अरुण कुमार झा, कामेश्वर प्रसाद श्रीवास्तव  निरंकुश, दिलीप तेतरवे, आरती, संजय कृष्ण, दयानंद  और नवीन शर्मा आदि मौजूद थे.










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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)