बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 29 अगस्त 2011

केदारनाथ का ईद मुबारक

केदारनाथ अग्रवाल की कलम से हमको, तुमको, एक-दूसरे की बाहों में बँध जाने की ईद मुबारक। बँधे-बँधे, रह एक वृंत पर, खोल-खोल कर प्रिय पंखुरियाँ कमल-कमल-सा खिल जाने की, रूप-रंग से मुसकाने की हमको, तुमको ईद मुबारक। और जगत के इस जीवन के खारे पानी...
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सोमवार, 22 अगस्त 2011

कुरआन,मक्का, तिलिस्म और वसीयत

 बाबुषा कोहली की कवितायें   कुरआन की पहली आयत "सब खूबियाँ अल्लाह को,मालिक जो -सारे जहां वालों का ;सारी तारीफें तेरी ही हैं ! "यही है न ,कुरान  की ,पहली आयत !मेरे मौला,मेरे मालिक -तेरी ही...
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रविवार, 7 अगस्त 2011

श्रद्धा जैन की भीगी ग़ज़लें

 1मुझसे इतना भी हौसला न हुआ जब बुरा बन गया, भला न हुआ ज़ख्म के फूल अब भी ताज़ा हैं दूर होकर भी फासला न हुआ तेरी आहट क़दम-क़दम पर थी ज़िंदगी में कभी खला न हुआ होने वाली है कोई अनहोनी वक़्त पर एक फ़ैसला न हुआ रेज़ा-रेज़ा...
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