फ़िरदौस ख़ान की क़लम से
सदियों की गुलामी और दमन का शिकार रही भारतीय नारी अब नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार है। इसकी एक बानगी अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में बसे अति पिछड़े मेवात ज़िले के गांव नीमखेडा में देखी जा सकती है। यहां की पूरी पंचायत पर महिलाओं का कब्जा है। ख़ास बात यह भी है कि सरपंच से लेकर पंच तक सभी मुस्लिम समाज से ताल्लुक़ रखती हैं। जिस समाज के ठेकेदार महिलाओं को बुर्के में कैद रखने के हिमायती हों, ऐसे समाज की महिलाएं घर की चारदीवारी से बाहर निकलकर गांव की तरक्की के लिए काम करें तो वाक़ई यह काबिले-तारीफ़ है।
गांव की सरपंच आसुबी का परिवार सियासत में दखल रखता है। क़रीब 20 साल पहले उनके शौहर इज़राइल गांव के सरपंच थे। इस वक्त उनके देवर आज़ाद मोहम्मद हरियाणा विधानसभा में डिप्टी स्पीकर हैं। वे बताती हैं कि यहां से सरपंच का पद महिला के लिए आरक्षित था। इसलिए उन्होंने चुनाव लडने का फैसला किया। उनकी देखा-देखी अन्य महिलाओं में भी पंचायत चुनाव में दिलचस्पी पैदा हो गई और गांव की कई महिलाओं ने पंच के चुनाव के लिए परचे दाखिल कर दिए।
पंच मैमूना का कहना है कि जब महिलाएं घर चला सकती हैं तो पंचायत का कामकाज भी बेहतर तरीके से संभाल सकती हैं, लेकिन उन्हें इस बात का मलाल जरूर है कि पूरी पंचायत निरक्षर है। इसलिए पढाई-लिखाई से संबंधित सभी कार्यों के लिए ग्राम सचिव पर निर्भर रहना पड़ता है। गांव की अन्य पंच हाजरा, सैमूना, शकूरन, महमूदी, मजीदन, आसीनी, नूरजहां और रस्सो का कहना है कि उनके गांव में बुनियादी सुविधाओं की कमी है। सडक़ें टूटी हुई हैं। बिजली भी दिनभर गुल ही रहती है। पीने का पानी नहीं है। महिलाओं को क़रीब एक किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है। नई पंचायत ने पेयजल लाइन बिछवाई है, लेकिन पानी के समय बिजली न होने की वजह से लोगों को इसका फ़ायदा नहीं हो पा रहा है।सप्लाई का पानी भी कडवा होने की वजह से पीने लायक़ नहीं है। स्वास्थ्य सेवाओं की हालत भी यहां बेहद खस्ता है। अस्पताल तो दूर की बात यहां एक डिस्पेंसरी तक नहीं है। गांव में लोग पशु पालते हैं, लेकिन यहां पशु अस्पताल भी नहीं है। यहां प्राइमरी और मिडल स्तर के दो सरकारी स्कूल हैं। मिडल स्कूल का दर्जा बढ़ाकर दसवीं तक का कराया गया है, लेकिन अभी नौवीं और दसवीं की कक्षाएं शुरू नहीं हुई हैं। इन स्कूलों में भी सुविधाओं की कमी है। अध्यापक हाज़िरी लगाने के बावजूद गैर हाज़िर रहते हैं। बच्चों को दोपहर का भोजन नहीं दिया जाता। क़रीब तीन हज़ार की आबादी वाले इस गांव से कस्बे तक पहुंचने के लिए यातायात की कोई सुविधा नहीं है। कितनी ही गर्भवती महिलाएं प्रसूति के दौरान समय पर उपचार न मिलने के कारण दम तोड़ देती हैं। गांव में केवल एक दाई है, लेकिन वह भी प्रशिक्षित नहीं है। पंचों का कहना है कि उनकी कोशिश के चलते इसी साल 22 जून से गांव में एक सिलाई सेंटर खोला गया है। इस वक़्त सिलाई सेंटर में 25 लड़कियां सिलाई सीख रही हैं।
गांववासी फ़ातिमा व अन्य महिलाओं का कहना है कि गांव में समस्याओं की भरमार है। पहले पुरुषों की पंचायत थी, लेकिन उन्होंने गांव के विकास के लिए कुछ नहीं किया। इसलिए इस बार उन्होंने महिला उम्मीदवारों को समर्थन देने का फ़ैसला किया। अब देखना यह है कि यह पंचायत गांव का कितना विकास कर पाती है, क्योंकि अभी तक कोई उत्साहजनक नतीजा सामने नहीं आया है। खैर, इतना तो जरूर हुआ है कि आज महिलाएं चौपाल पर बैठक सभाएं करने लगी हैं। वे बड़ी बेबाकी के साथ गांव और समाज की समस्याओं पर अपने विचार रखती हैं। पंचायत में महिलाओं को आरक्षण मिलने से उन्हें एक बेहतर मौका मिल गया है, वरना पुरुष प्रधान समाज में कितने पुरुष ऐसे हैं जो अपनी जगह अपने परिवार की किसी महिला को सरपंच या पंच देखना चाहेंगे। काबिले-गौर है कि उत्तत्तराखंड के दिखेत गांव में भी पंचायत पर महिलाओं का ही क़ब्जा है।
गौरतलब है कि संविधान के 73वें संशोधन के तहत त्रिस्तरीय पंचायतों में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण की व्यवस्था है। केंद्रीय पंचायती राज मंत्री मणिशंकर अय्यर द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक़ पंचायती राज संस्थाओं में 10 लाख से ज़्यादा महिलाओं को निर्वाचित किया गया है, जो चुने गए सभी निर्वाचित सदस्यों का लगभग 37 फ़ीसदी है। बिहार में महिलाओं की यह भागीदारी 54 फ़ीसदी है। वहां महिलाओं के लिए 50 फ़ीसदी आरक्षण लागू है। मध्यप्रदेश में भी गत मार्च में पंचायत मंत्री रुस्तम सिंह ने जब मध्यप्रदेश पंचायत राज व ग्राम स्वराज संशोधन विधेयक-2007 प्रस्तुत कर पंचायत और नगर निकाय चुनाव में महिलाओं को 50 फ़ीसदी आरक्षण देने की घोषणा की। पंचायती राज प्रणाली के तीनों स्तरों की कुल दो लाख 39 हज़ार 895 पंचायतों के 28 लाख 30 हज़ार 46 सदस्यों में 10 लाख 39 हज़ार 872 महिलाएं (36।7 फ़ीसदी) हैं। इनमें कुल दो लाख 33 हजार 251 पंचायतों के 26 लाख 57 हज़ार 112 सदस्यों में नौ लाख 75 हज़ार 723 (36.7 फ़ीसदी) महिलाएं हैं। इसी तरह कुल छह हज़ार 105 पंचायत समितियों के एक लाख 57 हज़ार 175 सदस्यों में से 58 हजार 328 (37.1 फ़ीसदी) महिलाएं हैं। कुल 539 ज़िला परिषदों के 15 हज़ार 759 सदस्यों में पांच हज़ार 821 (36.9 फ़ीसदी) महिलाएं हैं। क़ाबिले-गौर यह भी है कि भारत में पंचायतों में महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू होने की वजह से ही वे आगे बढ़ पाईं हैं।
हालांकि देश की सियासत में आज भी महिलाओं तादाद उतनी नहीं है, जितनी कि होनी चाहिए। यह कहना भी क़तई गलत नहीं होगा कि अपने पड़ौसी देश पाकिस्तान, बांग्लादेश और चीन के मुकाबले संसद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व के मामले में भारत अभी भी बहुत पीछे है। दुनियाभर में घोर कट्टरपंथी माने जाने वाले पाकिस्तान और बांग्लादेश में महिलाएं प्रधानमंत्री पद पर आसीन रही हैं। यूनिसेफ द्वारा कई चुनिंदा देशों में 2001-2004 के आधार पर बनाकर जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 8।3 फ़ीसदी, ब्राजील में 8.6 फ़ीसदी, इंडोनेशिया में 11.3 फ़ीसदी, बांग्लादेश में 14.8 फ़ीसदी, यूएसए में 15.2 फ़ीसदी, चीन में 20.3 फ़ीसदी, नाइजीरिया में सबसे कम 6.4 फ़ीसदी और पाकिस्तान में सबसे ज़्यादा 21.3 फ़ीसदी रहा। इस मामले में पाकिस्तान ने विकसित यूएसए को भी काफी पीछे छोड़ दिया है। वर्ष 1996 में भारत की लोकसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 7.3 फ़ीसदी और 1999 में 9.6 फ़ीसदी था। हालांकि चुनाव के दौरान कई सियासी दल विधानसभा और लोकसभा में भी महिलाओं को आरक्षण देने के नारे देते हैं, लेकिन यह महिला वोट हासिल करने का महज़ चुनावी हथकंडा ही साबित होता है। बहरहाल, उम्मीद पर दुनिया कायम है। फिलहाल यही कहा जा सकता है कि नीमखेडा और दिखेत की महिला पंचायतें महिला सशक्तिकरण की ऐसी मिसालें हैं, जिनसे दूसरी महिलाएं प्रेरणा हासिल कर सकती हैं।
लेखिका-परिचय:युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार... उर्दू, हिन्दी और पंजाबी में लेखन. देशी-विदेशी कई भाषाओं का ज्ञान... दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं...अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया... ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण... देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं और समाचार व फीचर्स एजेंसी के लिए लेखन... .
गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत नामक एक किताब प्रकाशित... . उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए अनेक
पुरस्कार.
सम्प्रति: 'स्टार न्यूज़ एजेंसी' और 'स्टार वेब मीडिया' में समूह संपादक इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन .
स्टार. न्यूज़ एजेंसी से साभार.आप
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16 comments: on "मुस्लिम औरत:देहलीज़ से सियासत तक"
bahan Firdaus, behtareen rachnaa !!!!!!!
pasand ka ek chatka meree taraf se !!!
bas mauqe kee der hai..warna ham bhi zabaan rakhte hain..aur yahaan to hamzabaan hi hain aap sab! beshak bahan bahut hi achcha mazmoon hai.
aapne aankh un sab ki khol di hai..jo aaj bhi muslim samaj ko pichhdaa hua samajhte hain.
एक अँधेरे कमरे में एक जलती लौ के समान लगा ये लेख..".बस एक पगडण्डी की दो इजाजत, मंजिल तक सड़क हम खुद बना लेंगी "..बेहतरीन आलेख..बहुत आभार शहरोज़ जी ....बधाइयाँ फिरदोस जी को..
अच्छा लेख है।
एक संतुलित और सुन्दर आलेख.
Hausala afzayi karta hua aalekh..kahta hai, aayiye haath uthayen hambhi...
मैंने मेवात इलाके को बहुत नजदीक से देखा है। आपने बहुत सही तस्वीर बयान की है। जब मैं हरियाणा कवर करता था तो मेवात के सरोकार मेरी खबरों के केंद्र में रहा करते थे। वहां के धूर्त नेताओं को भी मैं बखूबी जानता हूं और वे मुझे भी जानते हैं। कुछ के तो अब लड़कों ने राजनीति की कमान संभाल ली है।
मेवात के लोगों के साथ बार-बार राजनीतिक छल हुआ है। आपने वहां से जुड़ी मेरी पुरानी यादें ताजा कर दीं।
मैंने मेवात इलाके को बहुत नजदीक से देखा है। आपने बहुत सही तस्वीर बयान की है। जब मैं हरियाणा कवर करता था तो मेवात के सरोकार मेरी खबरों के केंद्र में रहा करते थे। वहां के धूर्त नेताओं को भी मैं बखूबी जानता हूं और वे मुझे भी जानते हैं। कुछ के तो अब लड़कों ने राजनीति की कमान संभाल ली है।
मेवात के लोगों के साथ बार-बार राजनीतिक छल हुआ है। आपने वहां से जुड़ी मेरी पुरानी यादें ताजा कर दीं।
मैंने मेवात इलाके को बहुत नजदीक से देखा है। आपने बहुत सही तस्वीर बयान की है। जब मैं हरियाणा कवर करता था तो मेवात के सरोकार मेरी खबरों के केंद्र में रहा करते थे। वहां के धूर्त नेताओं को भी मैं बखूबी जानता हूं और वे मुझे भी जानते हैं। कुछ के तो अब लड़कों ने राजनीति की कमान संभाल ली है।
मेवात के लोगों के साथ बार-बार राजनीतिक छल हुआ है। आपने वहां से जुड़ी मेरी पुरानी यादें ताजा कर दीं।
....प्रभावशाली अभिव्यक्ति!!!
बढ़िया लेख था...."
amitraghat.blogspot.com
बेहतरीन लिखा..बेबाक अभिव्यक्ति !!
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"शब्द-शिखर" पर - हिन्दी की तलाश जारी है
यह भी एक मज़ाक है की जिस इस्लाम नए आते ही औरत को पैदा होते मार डालने के खिलाफ आवाज़ उठाई और इस कुप्रथा को ख़त्म किया उसी इस्लाम के हिजाब के कानून का मज़ाक उसी इस्लाम को मान नए वाले उदा रहे हैं. इस्लाम में औरत को जितनी आजादी है उतनी किसी मज़हब में नहीं, जितने हुकूक औरत हो इस्लाम में हैं किसी धर्म में नहीं. हाँ यह और बात है की लोग इस्लाम को ही न समझें और एतराज़ करें. औरत का घेर की चाहर दिवारी से निकलना इस्लाम में नहीं मना है और न ही नौकरी करना मना है. यह कोई ज़रूरी नहीं की यह सब बेहयाई , बग़ैर हिजाब किया जाए. हिजाब से आज़ादी देर असल औरत की ग़ुलामी है. एक बार फिर औरत को आज़ादी के नाम पे गुलामी की राह बताए जा रही है.
बढ़िया लेख था....
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न स्याही के हैं दुश्मन, न सफ़ेदी के हैं दोस्त
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- अल्लामा जमील मज़हरी