बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

मंगलवार, 30 मार्च 2010

मसल, मनी, मीडिया, मोदी और मुसलमान

   गुंजेश  की क़लम से  नरेन्द्र मोदी से रविवार 29 मार्च को दो बैठकों में 9 घंटे पूछताछ हुई. उनसे मैराथन बातचीत  कर यह पता लगाने का प्रयास किया गया होगा कि 2002 के दंगों, खास तौर से उस घटना, जिसमें गुलबर्ग सोसायटी...
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रविवार, 28 मार्च 2010

बस्तर में भगवा जुडूम

नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों और दलितों को उनकी ज़मीन से बेदखल करने के लिए सरकार ने कमर कस ली है और इसके लिए बजाप्ता सेना की मदद ली जा रही है.इसे ग्रीन हंट नाम दिया गया है.अंग्रेज़ी की एक लेखिका और इधर एक्टिविस्ट के नाते ज़्यादा चर्चित अरुंधती राय की...
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सोमवार, 22 मार्च 2010

एक दंगे को याद करते हुए

इन दिनों भारत का ह्रदय प्रदेश कहे जाने वाले उत्तर प्रदेश में दंगों का मौसम है.लहलहाता हुआ! जब भी ऐसी ख़बरें आती हैं रूह लरज़ जाती है, जिस्म कांपने लगता है.कि  उर्दू के कहानीकार ज़की अनवर का चेहरा सामने आ जाता है, जिन्हें जमशेदपुर के फसाद में उन्हीं...
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शुक्रवार, 19 मार्च 2010

इंजिनियर बनाता मदरसा रहमानी

मुझको जाना है अभी ऊंचा हदे परवाज़ से यानी इक़बाल के इस मिसरे को मदरसे के प्रबंधकों ने भी अमली-पैराहन पहनाने की कोशिश तेज़ कर दी है.कल तक जो मदरसे खुद को धार्मिक शिक्षा-दीक्षा तक सीमित रखे हुए थे.उन्होंने अब अपने विद्यार्थियों को आधुनिक ज्ञान-विज्ञान...
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बुधवार, 10 मार्च 2010

मुस्लिम औरत:देहलीज़ से सियासत तक

फ़िरदौस ख़ान की क़लम से सदियों की गुलामी और दमन का शिकार रही भारतीय नारी अब नई चुनौतियों का सामना करने को तैयार है। इसकी एक बानगी अरावली की पहाड़ियों की तलहटी में बसे अति पिछड़े मेवात ज़िले के गांव नीमखेडा में देखी जा सकती है। यहां की पूरी पंचायत...
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बुधवार, 3 मार्च 2010

पगडंडी वापस नहीं लौटती

  ख़ालिद ए ख़ान की क़लम से पहले की  तरह धुंधली आँखों से बस देखती रहती है गाँव की सीमा से लगती बडी सड़क की ओर   अब   पगडंडी वापस नहीं लौटती चौपाल में फैला हुआ है मरघट सा सन्नाटा शाम को बैठे रहते...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)