बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

देसी तालिबानियों को बिदेसी मदद

विश्व मुकम्मल तौर पर आज दो खेमे में बँट चुका है.तीसरा खेमा है तो ज़रूर, लेकिन उल्लेखनीय नहीं.पहले साम्यवाद और साम्राज्यवाद  ...लेकिन रूस जैसे संघ के विभाजन के बाद लोगों का सारा ध्यान इस्लामी मुल्कों की तरफ गया.आखिर क्या कारण है कि साम्राजवादी शक्तियों...
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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

स्विस बैंक में बंद रक्तक्रांति

  आवेश की कलम से माओवादी लीडरों  के अरबों  रूपए स्विस बैंक में जमा   पश्चिम बंगाल के लालगढ़ से लेकर छत्तीसगढ़ के लालबाग तक रक्तक्रांति की बदौलत सामाजिक क्रांति का दावा करनेवाले नक्सली संगठनों का एक नया चेहरा सामने...
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सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

स्खलित होता समाज -- अपने ही हाथों में

गुन्जेश की कवितायें  (1) ज्ञान, शांति, मैत्री हमारे दौर के सबसे प्रतिष्ठित शब्द हैं........ इतने प्रतिष्ठित शब्द कि ये हमें प्रतिष्ठित कर सकते थे!! थे? हाँ, थे!!!!!!! ज्ञान अब --तथ्य है, शांति     --प्रतिबन्ध मैत्री   ...
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मंगलवार, 16 फ़रवरी 2010

रंगों के संग प्रीत

जब दिल और दिमाग के खूबसूरत संयोजन रंगों से बतियाते हैं तो एक ऐसे संसार का सृजन होता जहां चित्र महज़ मनोरंजन का नाम नहीं होता कुछ सोच-विचार की भी मांग करता है.ऐसी दुनिया रचती हैं सूरत की प्रीती मेहता .मैं और कुछ न कहूँगा.एक चित्र ही हज़ारों शब्द कहता...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)