काफी दिनों से मैं अंतरजाल से दूर रहा. इन दिनों पुरानी मेल्स देख रहा हूँ। यहाँ मुझे बिहार अंजुमन नामक एक ग्रुप की मेल मिल गई.पेशे से पत्रकार और सशक्त हिन्दी कवि संजय कुंदन की इस रपट को आप लोगों के सामने लाना ज़रूरी इसलिए कि क्या ऐसा भी मुमकिन है!!!-सं.
संजय कुंदन
पिछले कुछ दिनों से केरल में विश्व हिंदू परिषद, आरएसएस और श्रीराम सेना इस प्रचार में जुटी ह
लेकिन इस थिअरी के जनक कौन हैं? यह थिअरी दरअसल पुलिस की है। वहां यह सारा मामला शुरू हुआ दो शादियों से। शहंशाह नामक एक मुस्लिम युवक ने एक हिंदू लड़की से शादी की और उसके एक मित्र सिराजुद्दीन ने एक ईसाई लड़की से विवाह किया। इन लड़कियों ने अपना धर्म बदल लिया। उनके अभिभावक हाईकोर्ट में गए और उन्होंने आरोप लगाया किउनकी बेटियों का जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया है। लेकिन लड़कियों ने कोर्ट में आकर साफ कहा कि उन्होंने अपनी मर्जी से मजहब बदला है और वे अपने पति के साथ ही रहेंगी। इस पर कोर्ट ने उन लड़कियों को सलाह दी कि वे कुछ दिन अपने अभिभावकों के साथ रहें और उन्हें यह बात समझाएं कि उन्होंने शादी और धर्म-परिवर्तन अपनी मर्जी से किया है।
कोर्ट के निर्देश पर दोनों लड़कियां अपने मां-बाप के घर चली गईं। कुछ दिनों बाद जब वे अगली सुनवाई पर आईं तो उन्होंने कोर्ट से कहा कि वे अब अपने पति की बजाय अपने पैरंट्स के साथ ही रहेंगी। उनके इस तरह पलट जाने पर पुलिस ने 'लव जिहाद' की एक थिअरी पेश कर दी। इस पर अदालत ने डीजीपी को पूरे मामले की जांच का आदेश दिया। और जांच के बाद डीजीपी ने जो रिपोर्ट दी उसमें लव जिहाद या रोमियो जिहाद जैसी किसी संस्था या किसी ट्रेंड के अस्तित्व से इनकार किया गया। यह जरूर कहा गया कि धर्मांतरण के कुछ मामले हुए हैं, जिनकी जांच चल रही है, लेकिन यह कहना गलत है कि यह सब बाकायदा किसी योजना के तहत हो रहा है।
सच तो यह है कि इस मामले में पुलिस भी कठघरे में नजर आई। शहंशाह का आरोप है कि उसकी पत्नी के एक रिश्तेदार ने, जो एक सीनियर पुलिस अफसर हैं, लव जिहाद की कहानी गढ़ी है। उधर, कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी लव जिहाद की सचाई की जांच के आदेश दिए हैं। कोर्ट डीजीपी की रिपोर्ट से भी पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। उसने डीजीपी को निर्देश दिया है कि वह रिपोर्ट के कुछ वाक्यों को स्पष्ट करें। दो समुदायों के बीच विवाह केरल या कर्नाटक के लिए कोई नई बात नहीं है। लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें बढ़ोतरी हुई है। आधुनिक शिक्षा प्राप्त नई पीढ़ी जाति या धर्म की सीमाओं को नहीं मानती। उसने इन दायरों को तोड़ा है जिसे समाज के रूढ़िवादी तत्व पचा नहीं पा रहे हैं। उन्हें मंजूर नहीं कि समुदायों और जातियों के बीच की दीवारें टूटें, उनके बीच परस्पर सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर पर आदान-प्रदान बढ़े। इसलिए ये दो समुदायों के बीच विवाह को रोकने पर आमादा हैं। इन्होंने इसे जिहाद से जोड़कर सनसनी फैलाने की कोशिश की है।
यह एक ऐसा संवेदनशील मसला है जिस पर आसानी से लोगों को डराकर गोलबंद किया जा सकता है। अपना मकसद साधने के लिए इन्होंने तरह-तरह के दुष्प्रचार किया और तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया। कर्नाटक में इन्होंने आरोप लगाया कि लव जिहाद के तहत कुछ महिलाओं का अपहरण कर लिया गया है। हाल में पता चला कि उनमें से एक महिला दरअसल मोहन कुमार नामक उस शख्स का शिकार बनी है, जिसे 18 महिलाओं के कत्ल के इल्जाम में पकड़ा गया है।
आज हिंदूवादी ताकतें केरल और कर्नाटक में चिल्ला-चिल्लाकर कह रही हैं कि वे हिंदू लड़कियों को साजिश से बचाना चाहती हैं। लेकिन इन्हें हरियाणा जैसे राज्यों के उन हिंदू लड़के-लड़कियों की चिंता नहीं है, जिन्हें प्रेम विवाह करने के कारण अपने समाज की भारी प्रताड़ना झेलनी पड़ती है। हरियाणा में पिछले कुछ समय में एक ही गोत्र में विवाह के कई मामलों में या तो प्रेमी की हत्या कर दी गई या प्रेमी-प्रेमिका दोनों को मौत के घाट उतार दिया गया। राज्य में जाति या खाप पंचायतें किसी भी तरह से प्रेम विवाह को रोकने में जुटी हैं और वे इसके लिए तमाम नियम-कानूनों और मानवीयता की धज्जियां उड़ा रही हैं। लेकिन हिंदू हितों की बात करने वाले संगठन वहां चुपचाप तमाशा देखते रहते हैं। जाहिर है, इन संगठनों और जाति पंचायतों में कोई खास फर्क नहीं हैं।
ये दोनों समाज में मध्यकालीन मूल्यों को बचाए रखना चाहते हैं। वैसे यह भी सच है कि इस तरह के लोग केवल एक धर्म या जाति तक सीमित नहीं हैं। दुर्भाग्य तो यह है कि इस तरह का विचार रखने वाले तत्व सिर्फ धार्मिक-राजनीतिक संगठनों में ही नहीं, पुलिस-प्रशासन में भी हैं। पुलिस द्वारा मुसलमानों को आईएसआई एजेंट साबित कर देने या उनका संबंध किसी आतंकवादी गुट से जोड़ देने के कई झूठे मामले सामने आए हैं।
केरल और कर्नाटक में जिस तरह कुछ संगठनों ने कथित 'लव जिहाद' का हौवा खड़ा किया है, उससे एक बार फिर साफ हुआ कि हिंदूवादी ताकतें अपने सांप्रदायिक अजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए लगातार हाथ-पैर मार रही हैं, भले ही उनके तरीके अलग हों। उनका एक तबका मालेगांव और गोवा में विस्फोट कर रहा है तो दूसरा दुष्प्रचार में लगा है। संघ या बीजेपी के कुछ शीर्ष नेता भले ही कभी जिन्ना की तारीफ करके, देश के मुसलमानों की हालत पर चिंता जता करके , सेक्युलरिजम का गुणगान करके अपने उदार होने का भ्रम पैदा करें, पर सचाई यह है कि इन्होंने अपना हिंदू कार्ड छोड़ा नहीं है और इनके कार्यकर्ता मजहब के आधार पर नफरत की आग भड़काने का कहीं कोई मौका गंवाना नहीं चाहते। हैरत की बात यह है कि अक्सर इन्हीं का निशाना बनने वाला चर्च भी केरल में इनके साथ खड़ा नजर आया। यह इस बात का संकेत है कि धार्मिक संस्थाओं में असुरक्षा का भाव गहराया है और वे बदलते यथार्थ के साथ तालमेल बिठाने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं।
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