बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 4 सितंबर 2008

पानी में डूबा बिहार

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अल्प समय में ही साहित्यिक गलियारों में अपना मक़ाम बना चुकी पत्रिका बया के संपादक और कथाकार-मित्र गौरीनाथ अभी -अभी बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों से लौटे हैं.उनकी रुदाद सिर्फ़ मार्मिक ही नहीं बल्कि सियासतदानों की कलई खोल देती है.वो आक्रोश में कहते हैं कि ये बाढ़ आई नहीं लायी गई है.और जिन्हों ने लाया अब वो करोड़ों लूट रहे हैं.उनका कहना है कि अगर समय रहते बाँध की मरम्मत कर ली जाती तो ऐसी नौबत हरगिज़ न आती।

रियाजुल हक़ युवा पत्रकार साथी हैं.फिलवक्त पटना में प्रभात ख़बर से संबंद्ध हैं. उन्होंने पत्रकारिता के लिए समर्पित
साथी आलोक प्रकाश पुतुल की वेब पत्रिका रविवार के लिए बहुत प्रभावी रपट पानी बढ़ रहा है कलमबंद किया है, इसका कुछ अंश हम साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
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सुपौल और मधेपुरा के बाढ़ग्रस्त इलाकों से लौटकर
रियाजुल हक़




70 साल के बूढे जोगेंदर ने सामान तो मचान पर चढा दिया है, लेकिन गेहूं-मकई नहीं चढा पाये। अकेले हैं. दोनों बेटे बहुओं-बच्चों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने गये हैं. खैनी ठोंकते हुए वे हंसते हैं- उदास हंसी-“ यही तेजी रही तो कल तक सडक पार कर जायेगा पानी.” 65-70 साल की जिदंगी में पहली बार देखा है अपने घर में पानी भरते हुए. घर गया. अनाज गया. उनके खेत उन्हें खाने लायक अनाज दे देते हैं- गेहूं, धान, मकई. इस बार सब खत्म. खेत में खडी धान की फसल को बाढ लील गयी, घर में रखा अनाज पानी में डूब गया.... लोग जुट आये हैं. वे सुनाते हैं- “ सौ साल पहले यहां कोसी बहती थी. अब लगता है, वह फिर लौट आयी है.” बेचन यादव, कारी, तेजनारायण, रामदेव, संजय व शैलेंद्र ... दर्जनों लोग, सबके पास कई-कई कहानियां. किसी के आंगन में पोरसा भर पानी है, तो किसी के घर में सांप घुस आया है. अभी लेकिन सब शांत हैं-चिंता की एक रेख तक नहीं है. कहते हैं- अभी सड़क तो है ही सोने के लिए. ज्यादा डूबने लगेगा तो प्लान करेंगे निकलने का....लेकिन बूढे जोगेंदर को यह भी चिंता नहीं. वे अपनी खैनी होठों के नीचे दाब चुके हैं-“ हम अकेले आदमी, मर जायेंगे तो क्या होगा ? सांप भी कांट लेगा, तो क्या होगा ?”
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ऐसा मंजर कभी नहीं...
मधेपुरा जिले के सिंहेश्र्वर मंदिर धर्मशाला से निकलती दलित औरतों के मुंह से कुछ अस्फुट से बोल फूटते हैं-सगरे समैया हे कोसी माई, सावन-भादो दहेला... पूजा गीत। औरतों के चेहरों पर उदासी मिश्रित भय है... हर मंगल को दीप जलाने-संझा दिखाने के बाद भी नहीं मानीं कोसी माई. ...परसा, हरिराहा, कवियाही, रामपुर लाही... शंकरपुर व कुमारखंड प्रखंडों के दर्जनों जलमग्न गांवों से उजडे हजारों लोग पिछले चार दिनों से धर्मशाला में डेरा डाले हुए हैं. यहां रहने के लिए पक्के कमरे हैं. मूढी, चूडा, चीनी, खिचडी व बिस्कुट सबका इंतजाम है. बच्चे चूडा-गुड़ पाकर खुश हैं...बेवजह शोर मचा रहे हैं. बूढे-बुजुर्ग माथे पर जोर देकर याद करने की कोशिश करते हैं कोई पुरानी बात... बाप-दादों की स्मृतियों को भी खंगाल रहे हैं- “ उंहू. ऐसी बाढ मेरे देखे में तो कभी नहीं आयी. बाप-दादे भी कुछ नहीं बता गये. 30 साल पहले पानी भरा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ कि पाट की पूरी फसल डूब जाये फुनगी तक.”
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नई खबर, नया दुख...

कटैया बाजार पर पंडा नगर से भैंसे हांक कर ला रहे किसानों ने बताया- वीरपुर बाजार में कमर भर पानी है। भीमनगर बाजार में सरकारी राहत शिविर के सामने आधे घंटे से रोटियों के लिए खडे विकास कुमार राम ने आग्रह करते हुए लिखाया-“ वीरपुर के कुमार चौक में 50 आदमी फंसे हुए हैं.” विकास आज ही वीरपुर से निकला है किसी तरह. कोसी ने लगभग पूरी तरह लील लिया है वीरपुर को. क्या बचा है वहां अब. जो दशा है वहां की ... एक-एक कर नयी सूचनाएं मिल रही हैं वीरपुर से-मानो एक अंधकार से परदा उठ रहा हो. वीरपुर से कुसहा की दूरी महज छह किलोमीटर है और सोमवार को बांध टूटने के बाद भारत में पहला बडा आघात वीरपुर को झेलना पडा. सुपौल जिले के इस इलाके में लोगों के बीच लगातार अफवाहों का बाज़ार गर्म था. सोमवार की सुबह से ही वीरपुर बाजार में अफवाहें थीं कि बांध को खतरा है, लेकिन अधिकारिक तौर पर कोई सूचना नहीं थी. इससे लोगों ने निकलने की तैयारी भी नहीं की. बूढ-पुरनियों ने इन अफवाहों को चुटकी में उडा दिया-पानी तो आता ही रहता है. इस बार भी आया है, तो पहले की तरह ही निकल जायेगा. ...खतरे की गंभीरता का अंदेशा किसी को नहीं था.लेकिन शाम साढे छह बजे पानी शहर में घुसा और घंटे भर में पूरा शहर तीन से चार फुट पानी से भर गया. किसी को निकलने का मौका नहीं मिला. पूरा हफ्ता निकल जाने पर भी वीरपुर में आधा से अधिक लोग फंसे हुए हैं. राहत अब कुछ जाने भी लगी है, तो वह सिर्फ वीरपुर तक सीमित है. आसपास के गांव अब भी अछूते हैं. भीमनगर में मिले परमानंदपुर के एक निवासी ने बताया कि उधर अब तक कोई पहुंचा ही नहीं. रानीपट्टी से आ रहे रंजीत पासवान ने सूचना दी-सारे आदमी फंसे हुए हैं गांव में. बसमतिया रोड पर 30-40 फुट जगह बची है. उसी पर डेढ-दो हजार आदमी रह रहे हैं. खाने-पीने का कोई सामान नहीं. दो-तीन आदमी मर भी गये हैं. कटैया से वीरपुर आठ किलोमीटर है और भीमनगर से पांच. अब नावें वीरपुर तक पहुंचने लगी हैं, लेकिन वे बहुत महंगी हैं. एक नाव एक बार वीरपुर जाने के लिए पांच से छह हजार रुपये लेती है. उसमें भी पानी की धार देखते हुए इन छोटी नांवों से वहां जाना जोखिम भरा है. कटैया में एक चाय दुकान पर मिलते हैं, दिलीप कुमार गुप्ता. उनके पास वीरपुर से आज सुबह तक की सूचनाएं हैं-अब भी हरेक कॉलोनी में सात फुट पानी है. वीरपुर कोसी पुल के हॉस्टल की छत पर तीन सौ आदमी हैं. फतेहपुर स्कूल पर 50-60 आदमी हैं. कहीं कोई मदद नहीं मिल पायी है.वे सुनाते हैं-पूरा गांव भंस गया है फतेपुर का. वीरपुर बाजार में अरबों की संपत्ति का नुकसान है. क्वार्टरों में चोरियां बढ गयी हैं. जो नाववाला दिन में वीरपुर से कटैया पहुंचाता है, वही रात में जा कर खाली घरों पर हाथ साफ करता है. तीन महला मकान गिर रहे हैं. दिलीप कटैया में वीरपुरवालों को सूचना देते हैं चिल्ला कर : चानो मिस्त्री, रमेश कुमार, अख्तर बैंड, दुक्खी बैंड, मनोज पाठक के मकान टूट गये हैं.कुछ दूसरी सूचनाएं भी मिली हैं- वीरपुर जेल में 87 कैदी थे. असुरक्षित. चार दिनों से उनका खाना बंद था. जेल के कर्मचारी भाग चुके थे. अंत में कैदियों ने धोतियां-चादरें जोडीं और भाग गये. उनमें से कितने बचे-कितने डूब गये, अभी कौन बता सकता है? सिविल कोर्ट, अनुमंडल ऑफिस के हजारों रेकॉर्ड पानी में खत्म. धान और पाट की खेती डूब गयी. बीसियों हजार लोग बरबाद हो गये.
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जीना भूल गए

भीमनगर से कटैया आनेवाली सड़क राहगीरों से भरी है. उजडे-बरबाद हुए परिवार छोटे ठेलों पर, कंधे पर सामान लिये जानवर हांकते आ रहे हैं. थके-हारे चेहरे-उदास आंखें. लोग हंसना भूल गये हैं. गलती से कोई बाहरी आदमी हंस दे, तो लोग चौंक उठते हैं. जानवर तक डकरना भूल गये हैं. बूढी, कमर झुकी औरतें भी, बच्चे भी गठरियां उठाये तेजी से चल रहे हैं. कहां पहुंचना है, पता नहीं. कोसी ने उन्हें कहीं का नहीं छोडा.सडक के किनारे बाढ का पानी तेजी से थांप मारता है. कभी-कभी कोई गाड़ी भीड के बीच से गुजर जाती है सीटी बजाती हुई... एक औरत रास्ते की दूसरी ओर अपने किसी परिचित से कह रही है-वीरपुर तो अब सपना हो गया.
... कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
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........ राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री नीतीश मिश्रा बलुआ के निवासी हैं। बलुआ से आये लोग बताते हैं कि वहां न कोई नाव है, न राहत। बलुआ हाइ स्कूल पर 200 लोगों ने शरण ली थी. शुक्रवार 22 अगस्त को छत गिर गयी. उनमें से कम ही होंगे, जो बच पाये होंगे.लेकिन जो जीवित हैं, वे भी हताश हो रहे हैं. एक टेंट में सूखा चूड़ा फांक रहे उपेंद्र प्रसाद कहते हैं-“ और दो चार दिन कुछ नहीं मिला तो लोग भूखे मर जायेंगे. अभी तो जिंदा देख रहे हैं न, चार दिन बाद लाश देखियेगा लोगों की.”
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8 comments: on "पानी में डूबा बिहार"

विशेष कुमार ने कहा…

बहुत दुखद स्थिति ! भगवान उन्हें यह सब सहन करने की शक्ति दें।

Udan Tashtari ने कहा…

भीषण त्रासदी!!!


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-समीर लाल
-उड़न तश्तरी

Anil Pusadkar ने कहा…

sach likha aapne.baadh aai nahi layi gayi hai,aur lane waalon ka lut-pat ka nanga nach jhelna pad raha hai logon ko,un logo ka to dard bata tak nahi ja sakta,sirf ishwae se unhe sahan karne ki shakti dene ki prarthana ki ja sakti hai

Satyendra Prasad Srivastava ने कहा…

मार्मिक, दर्दनाक। शब्द नहीं मिल रहे।

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा।

डॉ .अनुराग ने कहा…

सचमे इस त्रासदी ने हमें ये बता दिया की हम कितने असवेदंशील ओर crisis manegment में कितने poor है !

kavitaprayas ने कहा…

aapki lekhani bahut hi shashakt hai. ise banaaye rakhiye.

ज़ाकिर हुसैन ने कहा…

सच मायनों में बहुत ही दुखद स्तिथि है बिहार कि.

श्रद्धा जैन ने कहा…

hmm pata nahi kis kis dukh se guzar kar ji rahe hain log
ye musibaten kabhi khtam hi nahi hoti

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