बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शुक्रवार, 30 मई 2008

कविता

आर चेतनक्रांति की नई रचनाबस एक जिद है कि मरते नहीं, मरेंगे नहीं ये एक अंधी सी जिद हैकि जिसकी आँख नहीं ये बहरी भी है, ये गूंगी भी और लंगडी भींन इसका दोस्त है कोई, न कोई हमराही.न ये खाने के लिए कहती हैन पीने को .ये अपना गोश्त चबाती है और जीती हैये एक जिद है जो अपने में इतनी पूरी है कि जब रुके तोअपने दर्द के ईंटों से घर उठाके रुके औजब चले तो उसी दर्द...
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आईएस@मदरसा

ख़बरें ऐसी जो कहीं न मिलें चोंकना वाजिब है आपका .मदरसे का नाम आप आई एसआई के साथ सुनते आए होंगे .इस ख़बर के नायकका मुख्तसर परिचय :नाम (मोलवी /डॉक्टर ) वसीम- उर-रहमानगाँव लुटिया जिला सिद्धार्त नगर (उत्तर प्रदेश )घर की हालत माह रमज़ान वक़्त से पहले नहीं आता मगरघर की हालत देख कर बच्चों ने रोजा रख लियाइस हाल में में पढ़ाई -लिखी क्या ख़ाक होती ,घर के बड़े भाइयों...
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मंगलवार, 27 मई 2008

क़मर सादीपुरी के दो शे'र

मुश्किलें आती गयीं थीं हर क़दम डगमगाए फिर भी न मेरे क़दम २ तेरे इश्क़ में क्या से क्या हुआ तेरे हुस्न का क्या मजाल...
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