बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

सुथरे भी हों और पारदर्शी भी..पर कैसे हो चुनाव !

 
 
 
 
शेली खत्री की क़लम से  

चुनाव प्रक्रिया मांग रहा सुधार
 
भारतीय राजनीति से नीति शब्द काफी पहले ही हट गया है।  मौजूदा राजनीति के लिए स्वार्थ  नीति, कुचक्र नीति आदि नाम दिए जाते हैं।  हालत यह है कि अच्छे लोग राजनीति से दूर रहना पसंद करते हैं। देश का युवा वर्ग राजनीति से अपना दामन बचाने की हर संभव कोशिश करता है। वोट के बदले नोट, संसद में रूपये उछालना आदि कुछ घटनाएं ऐसी हुई की राजनीति को शर्मिन्दा  होना पड़े ।
वस्तुत: राजनीति में सुधार की आवश्यकता पूरा देश महसूस कर रहा है। और निश्चय ही यह सुधार चुनाव प्रक्रिया से ही शुरू होना चाहिए तभी तो अच्छे लोग चुनकर आयेगें। चयन प्रक्रिया अच्छी हो, उम्मीदवर  अच्छे हों उसके बाद ही अच्छे काम की उम्मीद की जा सकती है। चुनाव के नाम पर देश के अरबों रूपये खर्च होते हैं। ये सोर रूपये यंू ही पार्टियों के प्रचार प्रसार और कार्य-कर्ताओं के खान- पान में खर्च होते हैं। इन से कोई सार्थक नहीं होना। गठबंधन सरकारों के बीच के अनबन या किसी अन्य मुद्दे के फसने पर अक्सर बिना कार्यकाल पूरा किए ही सरकार गिरती है और जनता के उपर एक और चुनाव का बोझ आ जाता है। नेताओं का क्या है। पर जो रूपये खर्च होते हैं  वो जनता की गाढ़ी कमाई के ही होते हैं। चुनाव आयोग के उपर भी एक जिम्मेदारी आ जाती है। चुनाव के कारण सारे प्रशासनिक कार्य प्रभावित होते हैं। पर इन का कोइ फल नहीं निकलता क्योंकि जनप्रतिनिधि के रूप में चुने गये अधिकतर लोग जनता की पसंद के नहीं होते। आपराधिक प्रवृति के लोग आकर अपराध को ही बढ़ावा देते हैं।
इससे बचने का रास्ता क्या है, सोचते हुए बात यहीं आकर ठहरती है कि चुनाव प्रकिया ही ऐसी हो जाए जिससे लोगों का लोकतंत्र में विश्वास बढ़े और चुनाव सार्थक हो। वर्ना देश में कई जगह तो बूथ कैप्चर जैसी समस्या आज भी कायम है। पूरे राजनीतिक परिदृश्य और चुनाव प्रक्रिया की खामियों का आलम यह है कि  हमारे यहां मुख्य मंत्री तक अनपढ़ लोग बन जाते हैं। ऐसे जन प्रतिनिधि जो शपथ पत्र भी न पढ़ सकें।उन्हें देश और दुनिया की कैसी समझ होगी, समझा जा सकता है। अपने नैतिक मूल्यों  के लिए जाने जाने वाले देश में भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई हैं कि उनका थाह पाना मुश्किल है। ऐसा क्यों न हो, हमारे यहां बड़े- बड़े अपराधी ऍमएलए और सांसद पदों की शोभा बढ़ाते हैं। अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण भी मिलता है। यहां तो आदमी जेल से भी चुनाव लड़ लेता है। एक प्रकार से यह अपराध का महिमा मंडन ही हुआ न। इन्हें देख कर कौन पढ़ने- लिखने और ईमानदार बनने की प्रेरणा लेगा। अस्तु गंदगी का जो आलम है उसे साफ करने के लिए शुरूआत उपर से ही करनी होगी ।तभी आम नागरिक सुधर सकेंगे। कहा भी गया है कि सिढ़ियों पर झाडू उपर से ही लगती है।
 उपरोक्त बातों का आशय सिर्फ यह है कि जनप्रतिनिधियों के रूप में साफ चरित्र और बुद्धि  विवेक वाले लोग ही आयें। इसके लिए चुनाव प्रक्रिया ही सुधार मांगती है।
इस सुधार के लिए कुछ बिंदुओं पर ध्यान देने की आवश्यकता होगी। चुनाव का पहला चरण है प्रत्याशियां को टिकट मिलना या उनका चुनाव में खड़ा होना।  व्यवस्था यह करनी होगी कि टिकट मिलने से पहले प्रत्याशी कोतय मानदंडों पर ख्ाड़ा उतरना होगा।  इन मानदंडों में पहला तो यह है कि कि उसका साक्षर नहीं अपितु शिक्षित होना तय हो। साथ ही उनके लिए योग्यता निर्धारित किया जाए।  चाहें तो इसमें भी कैटेगरी बांट सकते हैं। उदाहरण स्वरूप ऐसा किया जा सकता है कि मुखिया का चुनाव लड़ने वाले कि न्यूनतम योग्यता मैट्रिग होगी ही। लोक सभा चुनावों के लिए डिग्री के अलावा व्यकितत्व परिक्षण भी  हो। इन दिनों टीवी पर किसी चाय कंपनी का विज्ञापन आता है, जिसमें वोट मांगने गए उम्मीदवार से उसकी योग्यता पूछी जाती है। उस विज्ञापन को देख खीज भरे चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ जाती है। हमें व्यवहारिक जीवन में भी इसी प्रकार के मानदंड तय करने होंगे।  इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अपराधियों के चुनाव लड़ने पर हमेंशा के लिए रोक लगा दी जाए। जो भी व्यक्ति छह महीने की सजा काट आया हो या उसके खिलाफ कहीं कोई आपराधिक मामला आया हो। ऐसे व्यक्ति के राजनैतिक कैरियर पर उसी प्रकार रोक लगना चाहिए, जिस प्रकार हमारे यहां सरकारी नौकरीयों में है।  इन दिनों अक्सर सरकारी संस्थानों में योगा और मेडीटेशन के क्लास लगाएं जाते हैं। उसी प्रकार नेताओं के लिए समय- समय पर मोरल क्लास लगाएं जाएं। पढ़े - लिखे और योग्यता मानदंडों पर खड़े उतरे व्यक्ति को कम से कम अपनी जिम्मेदारी का एहसास तो होगा।
राष्ट्रीय, अंतराष्ट्रीय और क्षेत्रिय सोच में  अंतर होता है, तीनों जगह की समस्याएं और काम करने का तरीका भी अलग ही होता है। लोकसभा चुनावों के माध्यम से चुने गये लोग पूरे राष्ट्र के लिए कल्याण्कारी सिद्ध हों। उसके लिए जरूरी है कि क्षेत्रिय दलों को लोकसभा का चुनाव न लड़ने दिया जाए।  इससे एक साथ् कई प्रकार की चुनावी जिटिलताओं से छुटकारा मिलेगा। दूसरी बात यह है कि क्षेत्रिय दल क्षेत्रिय भावना को ही प्रश्रय देते हैं और बढ़वा भी।
प्रत्याशियों के बाद नंबर आता है वोटिंग सिस्टम का, राजनीति की जो स्थिति है और वोट डालने से संबंधित जो अड़चनें है। उनको लेकर आधे लोग तो वोट डालने ही नहीं जाते। इसलिए इस दिशा में सबसे पहला कदम यह होना चाहिए कि वोटिंग अनिवार्य हो। हर भारतीय वयस्क के लिए वोटिंग अनिवार्य करने के बाद सबसे बड़ी दिक्कत यह आयेगी कि सभी लोग अपने गृह जिले में नहीं रहते। पढ़ाई , नौकरी आदि की मजबूरियां घर छुड़ा देती हैं सिर्फ वोट डालने के लिए घर आना हर किसी के लिए संभव नहीं होगा। इसलिए यह सिस्टम लागू करना होगा कि व्यक्ति देश में कहीं भी रहकर अपना वोट डाल सकता है। इससे सबसे पहला फायदा यह होगा कि फर्जी वोटिंग रूकेगी। , दूसरा वोट का प्रतिशत बढ़ेगा और तीसरा लोगों का लोकतंत्र में विश्वास लौटेगा।
इस दिशा में यह भी सुनिश्चित किए जाने की आवश्यकता होगी कि सभी वोटरों के पास फोटो पहचान पत्र अनिवार्य रूप से उपलब्ध हो। देश में इवीएम के जरिए वोटिंग प्रारंभ हो गई है। इसे देश के गांव - गांव तक पहुंचाने की आवयकता है। साथ ही इस संबंध में अमरीकी प°ति का अनुसरण ठीक रहेगा। हमें भी वोटिंग में किसी एक दल को वोट देने की बजाए ग्रेडिंग सिस्टम लागू करना चाहिए। साथ ही उसमें नन ऑफ दिज या इनमें से कोई भी नहीं का आप्शन भी होना चाहिए। इससे वोटिंग में पारदिर्शता रहेगी।
वोटिंग रूम में क्लोज सकिoट कैमरे भी होने चाहिए। इसके बाद बुथ कैप्चर की समस्या नहीं आयेगी। इन सुधारों के अलावा एक काम और होना चाहिए। देश में दलबदल की राजनीति, राजनीति की विकृति के रूप में उपस्थित है।  स्वस्थ्य राजनीति के लिए यह जरूरी है कि दल बदल पर रोक लगे। अगर यह संभव न हो तो कम से कम दलबदल के लिए पैमाना निश्चित किया जाए।
अगर चुनाव प्रक्रिया में उपरोक्त बातों पर अमल कर लिया जाए तो  चुनाव प्रक्रिया की सारी बाधाएं दूर हो जाएगी। अच्छे लोग चुनकर आयेंगे और भारतीय राजनीति पर छाए बादल छंट जायेंगे , लोक तंत्र का स्वर्णिम रूप सामने आयेगा।


लेखक-परिचय:
जन्म: १४ फरवरी,१९८४ पटना में
शिक्षा: एम. ए. हिन्दी
सृजन: वागर्थ,कादम्बनी, भास्कर ,नयी दुनिया जैसी कई पत्र-पत्रिकाओं में लेख,रपट ,समिक्षा, कहानी,कविता आदि 
सम्प्रति: दैनिक भास्कर के रांची संस्करण से सम्बद्ध
संपर्क:shelleykhatri@yahoo.com
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4 comments: on "सुथरे भी हों और पारदर्शी भी..पर कैसे हो चुनाव !"

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

विचारणीय प्रश्न हैं।

आपका अख्तर खान अकेला ने कहा…

sheli khtri bhaayi aapne is loktntr ke mrm ko chuaa he sch he ke hmari chunav prnaali agr chust durust ho jaaye to fir aadha desh to vese hi sudhr jayegaa vese t n sheshan ne to mojuda qanun ko hi laagu kr bhrst raajnetaaon ko sbq sikhaa diyaa thaa mhtvpurn rchnatmk lekhn ke liyen aapko bdhaayi . akhtar khan akela kota rajthan

DR.ASHOK KUMAR ने कहा…

बहुत बढ़िया प्रस्तुति हैँ। शानदार लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई। -: VISIT MY BLOG :- तपा सकेँ अगर सोना तो हृदय मेँ अगन होनी चाहिए।..........गजल को पढ़कर अपने अमूल्य विचार व्यक्त करने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस उपरोक्त लिँक पर क्लिक कर सकते हैँ।

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

बहुत गंभीर मुद्दा उठाया है...
देखिए कितना सुधार हो पाए.

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