कल्याणी कबीर की क़लम से
वो क़लम
जो उगलती है आग कागजों पे .
दिलाती है ये उम्मीद कि बाकी है इंसानियत
आतंक बोने वाले लकड़बग्घों पे चीखती है जो ,
देती है जवाब रज़िया के बदन पर फिसलती ओछी नज़र को .
वो कलम जो भूखी रहकर भी दूसरों की रोटी के लिए शोर करती है ,
वो कलम जो जंगलों में छिपी जिंदगियों में भोर करती है ,
जो घंटो जगा करती है , चला करती है
किसी पहरुए की तरह
उस कलम से
प्यार है मुझे .
2.
सोचती हूँ
और डरती हूँ
जब हौसलों के चेहरे पर पड़ जायेंगी झुर्रियाँ
मुझे रोटी के लिए तेरे दर की तरफ देखना होगा
जब बुढापा रुलाएगा कदम दर कदम पे
तब महफूज़ छत की जरुरत होगी मेरी बूढी नींद को
गर दूंगी तेरे हाथों में दवाओं की कोई लिस्ट
तू भूल तो न जाएगा उन दवाओं को खरीदना
अभी तो चूमता है मुझको बेसबब घड़ी -घड़ी
कहीं तरसेंगे तो नहीं हम तेरे हाथों की छुअन को
जाने कल के आईने में कैसे दिखेंगे हमारे रिश्ते
फिलवक्त तो यही सच है हमारे दरम्यान मेरे बच्चे.
'' मेरे जिस्म का टुकड़ा तू मेरी जान रहेगा
मेरे लिए हमेशा तू नादान रहेगा
3.
ज़िन्दगी के इशारों पर .
जब बजते हैं सितार दर्द के
तभी गुनगुनाती है ज़िन्दगी
खिलती है तभी वो एक गुलाब के मानिंद
जब घेरते हैं हालात नुकीले ख़ार की तरहI
आफताब बनकर चमकने से पहले ये ज़िन्दगी
हताशा की काली रात से गुजराती जरुर हैI
यह जलती है, तपती है धूप के झरने में हर रोज़
ताकि मुफलिसी में भी मुस्कुराती रहे किसी फ़क़ीर की तरह I
तभी तो ,,
राब्ता रखना ज़िन्दगी के हर चेहरे से मगर
मत झांकना कभी इसकी जादुई आँखों में I
मानकर इसे इस वक्त का सबसे बड़ा खुदा
जी लेना अपनी साँसें ज़िन्दगी के इशारों परI
(परिचय:
जन्म: ५ जनवरी को मोकामा ,बिहार में .
शिक्षा: स्नातकोत्तर रांची विश्वविद्यालय से, शोधार्थी - महाकाव्य विषय पर .
सृजन: स्थानीय साहित्यिक पत्रिकाओं और समाचारपत्रों में रचनाएं प्रकाशित .
सम्प्रति: शिक्षिका .( जमशेदपुर )
जमशेदपुर आकाशवाणी में आकस्मिक उद्घोषिका
संपर्क: kalyani.kabir@gmail.com)
9 comments: on "राब्ता रखना ज़िंदगी के हर चेहरे से "
vah aik achchhi kavita, jitni bhi tarif ki jay km hai, zindagi ke dard bhi aur unse ladne ka hausla bhi, kul mila kr kavita me sb kuchh hai,
वाह वाह।। क्या बात है।
सभी एक से एक।
पर कलम की बात जैसे मेरे दिल की उथलपुथल को कागज पर उकेर दिया।
आभार।
वाह... बहुत ही बेहतरीन रचनाओं और रचनाकार कल्याणी जी से परिचय के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया शहरोज़ भाई...
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(8-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
लेखन की प्रखरता बनी रहे !
बहुत खूब | क्या पैना पन है |साधुवाद
विचार और शब्दों का धार प्रखर है. तीनों बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं
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बहुत सुंदर रचनाएं....साझी मनोभावनाएं
कल्याणी जी के लेखन की मै शुरू से कायल रही हूँ...बहुत परिपक्व लेखन है इनका...तीनो ही कवितायेँ बेहद सटीक
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- अल्लामा जमील मज़हरी