
हुसैन नहीं रहे.जब थे तब भी यह सवाल गर्दिश में था.उन्होंने देश में रहकर ही अपने खिलाफ उठी आवाजों का सामना क्यों नहीं किया.जबकि उन्हें करना था.अलग हो जाना ऐसे विमर्श की धार को कुंद ही करता है.दूसरे शब्दों में, कुछ इसे कायरता भी कह सकते...
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आशीष कुमार अंशु न सिर्फ मित्र हैं, बल्कि बेहद चौकन्ने पत्रकार भी हैं.आज उनकी टिप्पणी बज़ पर पढ़ी :
स्वामी निगमानंद का नाम बाबा रामदेव के पक्ष में माहौल बनाने वाले लोग जानते हैं क्या? इसी साल 19 फरवरी 2011 से स्वामीजी गंगा नदी के किनारे हो...
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सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों डांट दी कि सरकारी गोदामों में सड़ते अनाजों को बचाया जाये. इसे ग़रीबों के बीच बांटा जाय!लेकिन झारखण्ड में इस बार भी सूखा है. सबसे ज़्यादा बदतर हालत है पलामू की. हम इसी उधेड़बुन में पहुंचे थे पलामू.
सैयद शहरोज कमर, पलामू से लौटकर
चैनपुर के आगे 13 किलोमीटर बाद पक्की सड़क छोड़ जब आप जंगली पथरीले रास्ते...
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)