बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शुक्रवार, 17 दिसंबर 2010

ले मशालें चल पड़ी है नाजिया रांची शहर की

हौसले की उड़ान





















शहर की  ताकतवर महिलाओं में शुमार कुरैश मोहल्ला, आजाद बस्ती , रांची की  नाजिया तबस्सुम उन सब की  आवाज बनकर मुखर हुई है, जिनके  लब पर बरसों से ताले जड़े हुए थे। इस युवा लड़की की  बेबाकी ,ऊर्जा,साहस और आत्मविश्वास देख पुरान पंथी सकते में आ गए । वह ऐसे सवाल पूछने लगी, जिनके  जवाबों पर वह  कुंडली  मार बैठे थे। लेकिन दंश से लापरवाह मशाल थामे तबस्सुम चल पड़ी है । नारा सिर्फ एक  है : पढ़ो और पढऩे दो । इसके  कारवां में शामिल युवाओं को  विश्वास है कि  लिंगभेद, निरक्षरता और अंधविश्वास के  अंधेरों को  वे जरूर छांट लेंगे ।

लेदर कारोबार करनेवाले इब्राहिम कुरैशी की  छोटी बेटी नाजिया ने मोहल्ले के कुरैश अकादमी से सन 2003 में मैट्रिक किया । जब मौलाना आजाद कालेज में आई तो हर मामले में बरते जा रहे लिंगभेद से उसे कोफ्त हुई । उसने छात्र संघ चुनाव में हिस्सा लिया और सचिव निर्वाचित हो गई । उत्साह बढ़ा तो अगले वर्ष 2008 में ,रांची विश्वविद्यालय छात्र संघ की  संयुक्त सचिव का  पद जीत कर उसने इतिहास रच दिया । झारखंड और बिहार में ऐसा पहली बार हुआ कि  किसी विश्वविद्यालय छात्र संघ की  कोई मुस्लिम लड़की  पदाधिकारी बनी । इस जीत ने उसे युवाओं का  आईकान बना दिया । मुस्लिम लड़के-लड़कि यों में इनका  केरेज बढ़ा । संग साथ पा तबस्सुम के  हौसले बढ़े, उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा ।

इसी साल उसने मौलाना अबुल कलाम आजाद द्वारा स्थापित अंजुमन इस्लामिया की  सदस्यता के  लिए आवेदन किया तो उसे यह कह कर निरस्त कर दिया गया कि  महिलाओं के  लिए यहां कोई जगह नहीं है । इस जवाब ने उसके  तेवर बदल दिए और अंजुमन में महिलाओं की  भागीदारी सुनिश्चित करने के  लिए उसने कमर कस ली । इमारते शरीया और महिला आयोग तक  वह मुद्दे को  लेकर गई । सभी जगह उसकी  जीत हुई । लेकिन धर्म जमात की  सियासत करने वालों को  एक  मुस्लिम लड़की  का  इस तरह सामने आना हजम नहीं हुआ । उसे धमकिया तक  मिलीं, लेकिन इसने उसके  हौसले को  और बुलंद ही किया । छात्रा के  साथ छेड़छाड़ हो, किसी की  फीस माफ कराना हो,नाजिया हर कहीं खड़ी मिलती है । मुबंई में हुए आतंकी  हमले से वह उद्वेलित हो उठती है , लोगों को  जमा कर शहर में एकजुटता के  लिए मानव श्रंखला बना देती है । इसने झारखंड  लोकसेवा आयोग में नियुक्ति में हुई धांधली के  विरुद्ध लगातार प्रतिकार किया । नशा मुक्ति के  लिए कालेजों में हस्ताक्षर अभियान चलाया  । विश्वविद्यालय में 180 दिनों ·की  पढ़ाई, ग्रामीन  इलाके के  कालेजों में प्रोफेश्रल व वोकेश्नल कोर्स शुरू कराने सहित रामलखन यादव कालेज की   जमीन बचाने में नाजिया ने अहम भूमिका  निभाई है ।

नाजिया ऐसे समाज से आती हैं, जहां सच को कभी सच की तरह स्वीकार नहीं किया जाता. लेकिन इस लडकी ने तमाम परिभाषाओं को नए मायने दिए हैं.उसने ऐसी मशाल रौशन की है जिसके प्रकाश में अन्याय, अनीति के दुर्दांत चेहरे मधिम पड़ते जा रहे हैं.हम नाजिया के ऐसे जज्बे को सलाम करते हैं.

भास्कर के लिए लिखे लेख का मूल रूप
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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

हौसले की उड़ान : तस्लीम ! राहत की कहकशां

जादूई  चमत्कार की  तरह शिखर पर पहुंची तस्लीम राहत के  अलावा सफलता के  सोपान चढ़ती शहर की कहकशां  नाज़ ऐसी मिसाल है,जिसके  साहस और परिश्रम ने सारे उल्टे पहाड़े सीधे कर  दिये हैं । आत्मनिर्भरता की  इबारत रचती इसकी  उड़ान औरों के  हौसले को  भी जान बख्श रही है। मां पिता के  देहांत के  बाद वह भाई बहनों पर भार नहीं, मददगार बनकर सामने आई है। स्कूटी  पर फुर्र उड़ जाने वाली, आत्मनिर्भरता से लबरेज इस लड़की  का  अपना बैंक  बैलेंस है। कंप्यूटर सज्जित  प्रिटिंग की  अपनी यूनिट है। महज छह वर्षों में उपजा यह विश्वास ढेरों मुस्लिम लड़कियों को  तालीमो हुनर की स्केटिंग  से जेब कर  रहा है।

अंजुमन अस्पताल,  कोंका डिपो की  रहने वाली मरहूम मोहम्मद युनुस की  छोटी बिटिया कहकशां ने दरअसल विपरीत स्थितियों में भी सपने को  संजोए रखा । उसके  जेहन में 26 जुलाई 2004 का  दिन स्थायी  रूप से अंकित  है । दाखिले के सिलसिले में कालेज से सुबह ही लौट कर आई थी । दिलो दिमाग पर कालेज प्रांगन की  उ‹मुक्ता हावी थी । रात के  गहराने के साथ उसके  सपने घने होते जा रहे थे । वह पढऩा चाहती थी । कुछ  करना चाहती थी ताकि  बूढ़े हो चले गरीब मां पिता की गिरती सांसों को  वापस खींच सके  । लेकिन  रात ने अंधेरा और घना कर  दिया । नियति ने उसे ममता से वंचित कर दिया । कुछ सालों बाद पिता के  वात्सल्य से भी बेदखल कर दी गई । कहकशां नाज यानी घरकी  रिंनकी  पंख समेट कर बैठ गयी । साहस ने जब सदमे से बाहर निकाला, तो तीन माह का  अर्सा गुजर चुका  था । जाना सिर्फ अम्मी का  नहीं हुआ, यह हमराज सहेली का  भी बिछोह था । बड़ी बहनें ससुराल में थीं । भाई अपने परिवार संग । अकेली जान । दीवारें काटने को  दौड़ती । एक  भाई तब काफी छोटा था । लेकिन पर कटे नहीं थे, अशक्त थे । उडऩे  की  उत्कंठा  दृढ़ थी । तमन्ना  ने स्क्रीन  पेंटिंग नामक  नए पखेरू दे दिये ।

कालेज से लौटते समय ऑर्डर के  लिए दुकान—दुकान का  चˆककर पहले बड़ा अटपटा लगता था । रिश्तेदारों ने भी ना नुकुर की  । मुस्लिम लड़की का  इस तरह बाजार में लोगों से मिलना,जुलना और बतियाना, किसे सुहाता । पड़ोसियों की  भवें तन गयीं । लेकिन कहकशां की  ईमानदारी और भाइयों के  संग सहयोग ने ऐसे सवालों पर तमांचे जड़ दिए । आज कहकशां गैलेक सी प्रिटिंग की  संचालक  के  साथ ऑरी फ्लेम नामक  स्वयं सेवी समूह की  स्थानीय प्रबंधक  भी है । रोस्पा टावर में एक  दुकान उसने किसी के  साथ साझा किया है ताकि  प्रिटिंग व्यवसाय को  और बढ़ाया जा सके  । महज चंद रुपए से आरंभ कारोबार ने दरख्त की  शकल अख्तियार करनी शुरू कर दी है । कारोबार ही क्यों  चुना ? पढ़ लिख कर आप अफसर भी बन सकती थीं ? कहकशां कहती हैं कि  पैगंबर ने तिजारत को  तरजीह दी है । आप कहते थे कि कारोबार में बरकत है ।

हर धूप छांव में साथ खड़ा छोटा भाई गुड्डू के  अलावा कहकशां अपनी भाभियों का  भी शुक्रगुजार है । जिनके  साथ के  बिना वह एक  कदम भी नहीं बढ़ा सकती थी । वह कहती हैं कि  मां बाप को  अपने बच्चों  पर भरोसा करना चाहिए और बच्चों को  भी उनके  भरोसे को  बनाए रखना चाहिए । वार्षिक  डेढ़ से दो लाख अर्जित करने वाली बीकॉम  आनर्स , कहकशां कहती है कि मुस्लिम लड़कियों को  तालीमो हुनर को  अपना जेवर बना लेना चाहिए । तहजीब के  साथ, मेहनत और ईमानदरी के  बूते लड़कियां तरक्की  मंजिलें तय कर सकती हैं । कविता, नाजिया और रेश्मा जैसी लड़कियां भी मंत्र लेकर गुरु कहकशां की  तरह कामयाबी की  ओर अग्रसर हैं ।



आज के दैनिक भास्कर में प्रकाशित
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गुरुवार, 2 दिसंबर 2010

बिहार: इस बार जीते हैं सबसे ज्यादा पढ़े लिखे मुस्लिम विधायक

 हालिया संपन्न विधानसभा चुनाव ने साबित कर दिया है कि बिहार में बदलाव की लहर चल पड़ी है। इसकी तेज और मंद गति को लेकर बहस संभव है। लेकिन इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि चुनकर आए 19 मुस्लिम विधायकों में से ज्यादातर उच्च शिक्षा प्राप्त हैं,साथ ही इनकी औसत उम्र 45 साल है। इनमें डॉक्टर, वकील और पीएचडी धारी भी हैं । 14 विधायक तो पहली बार विधानसभा पहुंचे हैं ।

डॉ मोहम्मद जावेद ने गवर्मेंट कश्मीर युनिवर्सिटी,मेडिकल कालेज से एमबीबीएस किया है,तो डॉ दाऊद अली ने डीएच मेडिकल कालेज, दानापुर से डीएचएमएस की डिग्री हासिल की है। वहीं शाहिद अली खां ने बीबीआर अंबेडकर विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर,तो इज्हार अहमद ने मगध विश्वविद्यालय से एलएलबी किया है। अहमद पीएचडी भी हैं । फैयाज अहमद ने ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा और अब्दुल गफूर ने पटना विश्व विद्यालयसे एमए और एलएलबी की पढ़ाई की है। जावेद इकबाल अंसारी ने रांची विश्वविद्यालय से पीएचडी की है । जबकि अख्तरुल ईमान और मोहम्मद आफाक आलम, एमए पास हैं,तो सबा जफर,नौशाद आलम,जाकिर हुसैन, सरफराज आलम और परवीन अमानउल्लाह स्नातक हैं।

पुराने समाजवादी और राजद से अली नगर से राजद विधायक अब्दुल बारी सिद्दीकी ने एएन कालेज ,पटना से तो अख्तरुल इस्लाम शाहीन ने एमएचकेजी कालेज , समस्तीपुर से आइएससी किया है। कल्याणपुर से जदयू की टिकट पर जीत कर आई रजिया खातून सिर्फ मैट्रिक हैं। इसके अलावा मोहम्मद तौसीफ आलम और शर्फउद्दीन ने मदरसे से तालीम हासिल की है।

सबसे कम उम्र के हैं

मो तौसीफ आलम और अख्तरुल शाहीन इस बार विस में पहुंचे सबसे जवान मुस्लिम विधायक हैं । इनकी उम्र 31 साल है।

सबसे जयादा उम्र वाले

सबसे उम्रदराज मुस्लिम विधायक हैं अब्दुल बारी सिद्दिीकी, 63 और रजिया खातून, 57।







भास्कर के लिए लिखा गया
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(यहाँ पोस्टेड किसी भी सामग्री या विचार से मॉडरेटर का सहमत होना ज़रूरी नहीं है। लेखक का अपना नज़रिया हो सकता है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का सम्मान तो करना ही चाहिए।)