मौका मिला तो झारखंड के लिए जरूर गाऊंगा। मुझे तो रांची के लोगों का प्यार यहां खींच लाया। येबातें प्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंह ने दैनिक भास्कर के लिए ली गयी एक खास मुलाकात में कहीं। बश्शास चेहरे पर आई स्मित मुस्कान से सफ़र की थकान गायब थी। जब हमने उनके जवानी के उबाश दिनों को हौले से सहलाया तो उनकी गंभीरता में अनायास ही बालसुलभ मस्तीभरी चुहलता आ टपकी। जालंधर का वह कमरा, उस दौर में खाक हुए सिगरेट के धुएं सा नहीं बल्कि पूरे उजास में याद आता है उन्हें। उन्हें स्वीकारने में गुरेज नहीं कि उनमें मौजूद शायराना और अदबी अंदाज सुदर्शन फाकिर और रविंद्र कालिया के सान्निध्य की देन है।
‘जग—जीत’ ने का हुनर जगजीत से मिलकर ही जाना जा सकता है। गजल सी नफ़ासत से जब जगजीत मुंबई को याद करते हैं, तो वहां सिर्फ संघर्ष की तपिश ही नहीं, मुहब्बत की आबशारी भी है। पल की खामोशी इस तरह लगती है, मानो चित्रा की आवाज की मिठास को रूह में पेवस्त कर चुभला रहे हों। अमिताभ और जया की फिल्म अभिमान जैसी किसी भी खलिश से वह इंकार करते हैं।
किसी एक पसंदीदा शायर का नाम लेने में परहेज तो किया, लेकिन इस फेहरिस्त में बशीर बद्र, निदा फ़ाÊाली और जावेद अख्तर जैसे नामवर के बाद जगजीत बेहिचक आलोक श्रीवास्तव जैसे नौजवान शायर का जिक्र करते हैं, जिनकी गजलें-नज्में उन्हें अच्छी लगती हैं और उसे आवाज देना इत्मिनान बख्श लगता है। इत्मिनान उन्हें इसका भी है कि हिंदुस्तान में गजल गायकी के उस ट्रेंड की परंपरा बखूबी स्वीकार की गयी, जिसे उन्होंने शुरू किया था। गजल गायकी में बड़े गुलाम अली से हरिहरण तक हुए बदलाव को वक्त की जरूरत बतलाया अवश्य, मगर गजल को फूहड़ संगीत के साथ परोसने वाले से उन्हें कोफ्त है।
जमाना रियलिटी शोज का है तो गजल भी पीछे क्यों रहे? जगजीत मुस्कुराते हैं। जरूर जनाब। जज बनने को तो तैयार बैठा हूं, कोई बुलाए तो सही। आगे कहते हैं, बस वक्त का इंतजार कीजिए। कुछ लोगों से इस सिलसिले में सार्थक बातें हो रही हैं। इंशाअल्लाह गजल पर रियलिटी शो जल्द देखिएगा।
भास्कर के रांची संस्करण में २४ अक्टूबर को प्रकाशित
‘जग—जीत’ ने का हुनर जगजीत से मिलकर ही जाना जा सकता है। गजल सी नफ़ासत से जब जगजीत मुंबई को याद करते हैं, तो वहां सिर्फ संघर्ष की तपिश ही नहीं, मुहब्बत की आबशारी भी है। पल की खामोशी इस तरह लगती है, मानो चित्रा की आवाज की मिठास को रूह में पेवस्त कर चुभला रहे हों। अमिताभ और जया की फिल्म अभिमान जैसी किसी भी खलिश से वह इंकार करते हैं।
किसी एक पसंदीदा शायर का नाम लेने में परहेज तो किया, लेकिन इस फेहरिस्त में बशीर बद्र, निदा फ़ाÊाली और जावेद अख्तर जैसे नामवर के बाद जगजीत बेहिचक आलोक श्रीवास्तव जैसे नौजवान शायर का जिक्र करते हैं, जिनकी गजलें-नज्में उन्हें अच्छी लगती हैं और उसे आवाज देना इत्मिनान बख्श लगता है। इत्मिनान उन्हें इसका भी है कि हिंदुस्तान में गजल गायकी के उस ट्रेंड की परंपरा बखूबी स्वीकार की गयी, जिसे उन्होंने शुरू किया था। गजल गायकी में बड़े गुलाम अली से हरिहरण तक हुए बदलाव को वक्त की जरूरत बतलाया अवश्य, मगर गजल को फूहड़ संगीत के साथ परोसने वाले से उन्हें कोफ्त है।
जमाना रियलिटी शोज का है तो गजल भी पीछे क्यों रहे? जगजीत मुस्कुराते हैं। जरूर जनाब। जज बनने को तो तैयार बैठा हूं, कोई बुलाए तो सही। आगे कहते हैं, बस वक्त का इंतजार कीजिए। कुछ लोगों से इस सिलसिले में सार्थक बातें हो रही हैं। इंशाअल्लाह गजल पर रियलिटी शो जल्द देखिएगा।
भास्कर के रांची संस्करण में २४ अक्टूबर को प्रकाशित