बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

सोमवार, 25 जनवरी 2010

मुंबई की जान हैं ये कामवाली बाइयाँ

ज़रा हटके ज़रा बचके ....ये हैं मुंबई मेरी जान ! . यह गीत अक्सर इस महानगर के सन्दर्भ में लिया जाता है.भाई ! बात ही निराली है. जितना चमकता-दमकता है उतना ही गहरे अन्धकार में भी कुछ ज़िन्दगी यहाँ सिसकती है.गणपर्व के समय यूँ दुखियारों की बात!! लेकिन क्या...
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बुधवार, 20 जनवरी 2010

लन्दन में लड़की

एक अकेली एक शहर में आशियाना ढूंढती है,  आबूदाना ढूंढती है!! उसे भी बच्चों की किलकारी और कोयल की कूक भली लगती है.उसके पास ठाठे मारता अल्हड बांकपन है! आम इंसान का दिल है. भले ग़म का हुजूम हो लेकिन खुशियों की लज्ज़तें  उसे भी चाहिए, आखिर क्यों...
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शुक्रवार, 15 जनवरी 2010

रश्मि प्रभा की कविता और उनका संसार

रश्मि प्रभा.! यानी हम जैसे अधिकाँश ब्लागरों  की दीदी.शायद ही कोई होगा जो इनकी काव्य-रश्मियों से अलक्षित रहा हो....प्रभा .यह  की सुमित्रा नंदन पन्त जैसे शिखर-आचार्य कवि ने न केवल आपका नामकरण किया अपितु  "सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर...
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