
ज़रा हटके ज़रा बचके ....ये हैं मुंबई मेरी जान ! .
यह गीत अक्सर इस महानगर के सन्दर्भ में लिया जाता है.भाई ! बात ही निराली है. जितना चमकता-दमकता है उतना ही गहरे अन्धकार में भी कुछ ज़िन्दगी यहाँ सिसकती है.गणपर्व के समय यूँ दुखियारों की बात!! लेकिन क्या...
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एक अकेली एक शहर में आशियाना ढूंढती है,
आबूदाना ढूंढती है!!
उसे भी बच्चों की किलकारी और कोयल की कूक भली लगती है.उसके पास ठाठे मारता अल्हड बांकपन है! आम इंसान का दिल है. भले ग़म का हुजूम हो लेकिन खुशियों की लज्ज़तें उसे भी चाहिए, आखिर क्यों...
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रश्मि प्रभा.! यानी हम जैसे अधिकाँश ब्लागरों की दीदी.शायद ही कोई होगा जो इनकी काव्य-रश्मियों से अलक्षित रहा हो....प्रभा .यह की सुमित्रा नंदन पन्त जैसे शिखर-आचार्य कवि ने न केवल आपका नामकरण किया अपितु "सुन्दर जीवन का क्रम रे, सुन्दर-सुन्दर...
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