खुली बहस की मांग करते सवाल
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लेखक का परिचय : पेशे से पत्रकार।करीब 6 साल तक दैनिक
जागरण(पटना) में बतौर संवाददाता
रह चुके युवा पत्रकार
राकेश पाठक का जन्म मगध अंचल
, बिहार के रानीगंज हल्क़े में 01 मार्च 1977 को हुआ। आपने नक्सल प्रभावित क्षेत्रो पर विशेष रिपोर्टिंग और कुछ पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता भी की । कुछ कविताओं का यत्र-त्रत प्रकाशन ...फिलवक्त एक निजी कंपनी में अजमेर में ऑफिसर(प्रशासन) के पद पर कार्यरत.............
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राकेश पाठक की क़लम से
नब्बे के पूर्वाध में भारतीय राजनीती में धुव्रतारा की तरह चमकी 'भाजपा' क्या सांप्रदायिक पार्टी है ?
क्या यह भारतीय संस्कृति के पुरातन तानेवाने को छिन्न -भिन्न कर रही है ?
कट्टर हिन्दुत्त्व से जुड़े इसके विचार क्या देश में हिंदू और मुसलमानों के बीच वैमनस्य की खाई बढ़ाने का काम कर रहे हैं ?
'विविधताओं में एकता ' का भारतीय नारा क्या भाजपा व इसके तथाकथित संघ संगठनों के कट्टरतावाद की भेट चढ़ चुका है ?
आज कितना यथार्थपरक है भाजपा व संघ का राष्ट्रवाद ?
ऐसे अनगिनत सवाल हैं जो प्रबुद्ध तबके के ज़हन में आकर उन्हें व्यथित और उद्वेलित करते रहते हैं.
कुछ ऐसे ही विचार जो बर्तमान में मुस्लिम अल्पसंख्यको में घुमड़कर उनमे अलगावाद की भावना पैदा कर रहे है ? मुसलमानों के बीच क्यों सीमी या लश्करतैय्यबा जैसे संगठनों को कुछ जगह मिल जा रही है? आखिर क्या सोचता है ? मुस्लिम समाज इन मुद्दों पर।
क्यों शकील शम्सी जैसा पत्रकार-कवि कहने को मजबूर होता है :
नफरतों की आग भड़काई है जिसने मुल्क में
कोई कैसे मान ले वो मुल्क का हमदर्द है
खून बहाता है उडीसा से जो आज़मगढ़ तक
ऐ वतनवालो वही टोला तो दहशतगर्द है
क्यों पकडे गए आंतंकवादियों में सिर्फ मुस्लिम का ही नाम नज़र आता है? और अभी के कानपुर, इससे पहले नागपुर, नांदेड में हिन्दू संगठनों जे जुड़े लोगों से मिली विष्फोटक सामग्री पर सीमी-सीमी रटने वाला मीडिया चुप रह जाता है?
गुजरात को लोग भूल नहीं सकते और अभी उडीसा में हुई हिंसा में किस संगठन का हाथ है? क्या कभी मुस्लिम लोग हथियार सीखने के लिए गाँव, कस्बों या शहर के मैदान में रोज़ सुबह-सुबह इकठ्ठे होते हैं?आर एस एस खुले आम शाखा लगता है और ये देशभक्ति की श्रेणी में क्यों?।
आइये गौर करे संघ, इसके गठन व स्वतंत्रता आन्दोलन में इनके संघटक नेताओं की भूमिका पर ? आख़िर इसे संयोग कहे या कारण --आज़ादी के बाद सर्वाधिक दंगे भाजपा के भारतीय राजनीति पर उभरने के बाद ही हुए है . बम बिस्फोट एवं दंगे के पीछे का कारण धार्मिक वैमनस्यता का बढ़ना तो नही है ? क्या बाबरी मस्जिद का तोडा जाना हिंदू -मुस्लिम भाईचारे का अंत नही था ? धार्मिक भावनाओ को आंदोलित करके दंगा जैसे हिंसक कामों को अंजाम देने जाने वाली पार्टी भाजपा को सचमुच में राष्ट्रभक्त पार्टी कहा जा सकता है ? क्या राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ व इनके नेताओ का भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में अमूल्य योगदान रहा है ? स्वतंत्रता आन्दोलन में आर.एस.एस की भूमिका पर अक्सर उँगली उठती रही है .और इनके नेताओ की गतिविधियाँ भी अंग्रेजो के समर्थको की रही है तब क्या हम इन्हे आज़ादी में जान न्योछाबर करने वाले राष्ट्रभक्त कह सकते है ? माना जाता है कि आर.एस .एस की स्थापना हिंदू -मुस्लिम को बाटने के उदेश्य से अंग्रेज वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा करवाई गई थी .क्योकि गठन के एक वर्ष के अन्दर ही वर्ष 1926 में नागपुर में दो सम्प्रदायों के बीच दंगे हुए थे ."हिंदू धर्म ही राष्ट्र धर्म है " जैसा नारा ही तात्कालिक दंगों का कारण बना था. आज हिंदुत्व को फुटबाल की तरह उछालती भाजपा व आर .आर. एस. से मुस्लिम ही नही हिन्दुओं का बुद्धिजीवी वर्ग कई सवाल पूछ रहा है --
१.भारतीय आज़ादी के लिए किए गए किस आन्दोलन में आर.आर. एस. ने सक्रिय भूमिका निभाई है ?
२ साइमन कमीशन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोडो आन्दोलन,शाही नौसेना का विद्रोह,आजाद हिंद सेना के खिलाफ चलाये जाने वाले मुकदमों पर नागरिक प्रदर्शन ,धरना आदि संघर्ष में जब पूरा भारत अंग्रेजो का विद्रोह कर रहा था तब आर.आर.एस. के नेता कहाँ थे ?
३ शहीद भगत सिंह , एवं काकोरी षडयन्त्र के आरोपियो की फाँसी पर जब पुरे भारत में विद्रोह किए जा रहे थे तो संघ व इसके नेता मौन क्यो थे ?
जब आर. आर. एस. का गठन हुआ उस समय देश में अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ नागरिक आन्दोलन की शुरुआत हो चुकी थी.गरम -नरम दल में विभाजीत संघटन व कांग्रेस के साथ आन्दोलनों में सभी वर्गों ने बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया ,परन्तु संघ इन आंदोलनों से दूर रहा. कांग्रेस नेताओं ने हजारों की तादाद में गिरफतारिया दी पर संघ इन आंदोलनों से अपने को दूर रखा तथा अंग्रेजो के समर्थक बने रहे ।
दलितों के साथ छुआ- छूत जैसे आंय कुरीतियों के खिलाफ ,पेरियार ,आम्बेडकर जैसे नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया पर संघ मौन रहा ।
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है की संघ ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कभी आवाज उठाई हो .अगर आवाज बुलन्द की भी तो हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काने में ,द्वेष पैदा करने में ,घृणा और शत्रुता फैलाने में जिसमे प्रतक्ष्य भूमिका अंग्रेजो की भी रही. आख़िर क्या कारण था की एक तरफ अंग्रेज किसी भी पत्रिका प्रकाशन ,आन्दोलन, सभा ,सोसायटी सभी को प्रतिबंधित कर दिया तथा इनसे जुड़े लोगो को जेल के सीखचों के पीछे कर दिया वही दूसरी ओर संघ को युवको को संगठित करने एवं सैनिक प्रशिक्षण देने की अनुमति दे दी. ये शाखा लगा सकते थे ,मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दे सकते थे इसी से प्रतीत होता है की संघ अंग्रेजो के पिट्ठू बन आन्दोलनकारियों के लिए जयचंद का काम कर रहे थे . हिंदू महासभा ने जब सनातन हिंदू युवको के लिए सैनिक अकादमी स्थापित की तो इसे प्रतिबंधित करना तो दूर इन्हे भरपूर आर्थिक व अन्य मदद अंग्रेजी हुकूमत ने की .......आख़िर क्यों
यह कह सकते है की भारत -पाकिस्तान और हिंदू -मुस्लमान बटवारे की नीव संघ परिवार द्वारा ही रखी गई जिसका खामियाजा आजतक कश्मीर समस्या के रूप में भुगतना पड़ रहा है ...आज संघ व इसकी समर्थक पार्टी भाजपा जिस राष्ट्रिय एकता की बात करते है उस एकता के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने में इनकी ही महती भूमिका रही है .....
इतिहास में संघ को घृणा ,द्वेष, वैमनस्य, जातीय भेदभाव , धार्मिक असंतुलन छुआ -छूत और मतभेद के लिए याद किया जाना चाहिए न की राष्ट्रिय एकता के संघटक के रूप में ॥
भोथरी दलीले देने वाले संघ के लोगों जवाब दो ???
आपकी संदिग्ध कारगुजारियों का आज जनता आप से जवाब मांग रही है ...............
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