बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 13 सितंबर 2008

अब फिर दिल्ली...हाय-हाय मुजाहिदीन!



तुम कुछ भी हो मुसलमान नहीं हो सकते!!!









घर पर टीवी नही रखता .ये मुझे दस सालों से हम आम लोगों को बेवकूफ समझता है, साथ ही साथ हमारी भावनाओं और विश्वास के साथ भी समय-समय पर खिलवाड़ करता रहता है.विशेष कर समाचार चैनल।

इन्हें सिर्फ़ रहस्य चाहिए, रोमांच और सेक्स इनकी टीआर पी बढ़ाता है.खैर ये अलग बहस का मुद्दा है.बात टी वी की कर रहा था.शाम मेल चेक करने बैठा तो अम्रीका में फिलहाल, ब्लोगर-मित्र बहन प्रज्ञा की खिड़की खुली.और जब पता चला कि राजधानी में सिलसिलेवार बम धमाका करने में देशद्रोही फिर सफल हो गए हैं. और अब तमाम खबरिया चैनल पिल पड़े हैं अपनी -अपनी दूकान के साथ....

उन्हें पता चल चुका है , इसके मास्टर माईंड का आयी बी एन सेवेन पर प्रबल प्रताप सिंह ने आक्रामक और विश्वास के साथ कहा कि सुभान उर्फ़ तौकीर इसका मास्टर माईंड है।

मुझे लगता है कि सरकार को इन चमकीले समाचार प्रस्तोताओं से खुफिया का काम ज़रूर लेना चाहिए।


खैर मास्टर माईंड सुभान हो या तौकीर न उसको देशवासी बख्स सकते हैं और न ही उनका अल्लाह और रसूल।

चाहे वो सीमी के हों या इंडियन मुजाहदीन के।

पैगम्बर मोहम्मद ने जिहाद में भी औरतों, बूढों,मासूम बच्चों की हिफाज़त की बात कही है।

उन्होंने ऐसे मुसलमान की आलोचना की है जो बेक़सूर ही गैर-मुस्लिमों पर ज़ुल्म ढाए और आपने अल्लाह की अदालत में उन बेक़सूर गैर-मुस्लिमों की वकालत करने का वादा किया है।


ऐ इस्लाम के नाम पर लड़ने वालों और बेगुनाहों कि जान लेनेवालों कान खोलकर सुन लो।


अल्लाह कहता है:


धर्म के विषय में कोई ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं है -२:२५६


और ऐ ईमान वालों ये लोग जो अल्लाह के सिवा जिनको पुकारते हैं उन्हें गालियाँ न दो -६:१०८


अल्लाह अपने नबी से संबोधित है : और हे नबी, भलाई और बुराई समान नहीं है.तुम बुराई को उस नेकी से टालो, जो उत्तम हो.तुम देखोगे कि जिसका वैर था वोह आत्मीय मित्र बन गया है.-४१:३४




ईमान और मोमिन शब्द जिस मूल धातु से बने हैं अर्थार्त अ-म-न उसका उच्चारण अमन ही है. इस प्रकार इश्वर पर पूरा विश्वास, जो ज़ुल्म से मुक्त हो, शान्ति का कारण और गारंटी है.शान्ति और वास्तविक सम्मान की रक्षा ईमान वाले का फ़र्ज़ है.
ऐ मुजाह्दीनों तुम कुछ भी हो सकते हो मुसलमाँ तो हरगिज़-हरगिज़ नहीं हो सकते.
इस लरजते रूह और दिल से निकली दुआ है, जिस ने भी ये खूंरेजी की है वो जहन्नुम की आग में इस से भी बुरी तरह जले.
क्योंकि :
ये सोच-सोच कर परीशाँ है क़मर यारो
कटेगा कौन सा सब अपना सर लगे है मुझे
चित्र:बी बी सी से
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बुधवार, 10 सितंबर 2008

आर एस एस बनाम भाजपा की राष्ट्रीयता


खुली बहस की मांग करते सवाल
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लेखक का परिचय : पेशे से पत्रकार।करीब 6 साल तक दैनिक जागरण(पटना) में बतौर संवाददाता रह चुके युवा पत्रकार राकेश पाठक का जन्म मगध अंचल , बिहार के रानीगंज हल्क़े में 01 मार्च 1977 को हुआ। आपने नक्सल प्रभावित क्षेत्रो पर विशेष रिपोर्टिंग और कुछ पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता भी की । कुछ कविताओं का यत्र-त्रत प्रकाशन ...फिलवक्त एक निजी कंपनी में अजमेर में ऑफिसर(प्रशासन) के पद पर कार्यरत.............


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राकेश पाठक की क़लम से






नब्बे के पूर्वाध में भारतीय राजनीती में धुव्रतारा की तरह चमकी 'भाजपा' क्या सांप्रदायिक पार्टी है ?
क्या यह भारतीय संस्कृति के पुरातन तानेवाने को छिन्न -भिन्न कर रही है ?
कट्टर हिन्दुत्त्व से जुड़े इसके विचार क्या देश में हिंदू और मुसलमानों के बीच वैमनस्य की खाई बढ़ाने का काम कर रहे हैं ?
'विविधताओं में एकता ' का भारतीय नारा क्या भाजपा व इसके तथाकथित संघ संगठनों के कट्टरतावाद की भेट चढ़ चुका है ?
आज कितना यथार्थपरक है भाजपा व संघ का राष्ट्रवाद ?
ऐसे अनगिनत सवाल हैं जो प्रबुद्ध तबके के ज़हन में आकर उन्हें व्यथित और उद्वेलित करते रहते हैं.
कुछ ऐसे ही विचार जो बर्तमान में मुस्लिम अल्पसंख्यको में घुमड़कर उनमे अलगावाद की भावना पैदा कर रहे है ? मुसलमानों के बीच क्यों सीमी या लश्करतैय्यबा जैसे संगठनों को कुछ जगह मिल जा रही है? आखिर क्या सोचता है ? मुस्लिम समाज इन मुद्दों पर।
क्यों शकील शम्सी जैसा पत्रकार-कवि कहने को मजबूर होता है :
नफरतों की आग भड़काई है जिसने मुल्क में
कोई कैसे मान ले वो मुल्क का हमदर्द है
खून बहाता है उडीसा से जो आज़मगढ़ तक
ऐ वतनवालो वही टोला तो दहशतगर्द है
क्यों पकडे गए आंतंकवादियों में सिर्फ मुस्लिम का ही नाम नज़र आता है? और अभी के कानपुर, इससे पहले नागपुर, नांदेड में हिन्दू संगठनों जे जुड़े लोगों से मिली विष्फोटक सामग्री पर सीमी-सीमी रटने वाला मीडिया चुप रह जाता है?
गुजरात को लोग भूल नहीं सकते और अभी उडीसा में हुई हिंसा में किस संगठन का हाथ है? क्या कभी मुस्लिम लोग हथियार सीखने के लिए गाँव, कस्बों या शहर के मैदान में रोज़ सुबह-सुबह इकठ्ठे होते हैं?आर एस एस खुले आम शाखा लगता है और ये देशभक्ति की श्रेणी में क्यों?।
आइये गौर करे संघ, इसके गठन व स्वतंत्रता आन्दोलन में इनके संघटक नेताओं की भूमिका पर ? आख़िर इसे संयोग कहे या कारण --आज़ादी के बाद सर्वाधिक दंगे भाजपा के भारतीय राजनीति पर उभरने के बाद ही हुए है . बम बिस्फोट एवं दंगे के पीछे का कारण धार्मिक वैमनस्यता का बढ़ना तो नही है ? क्या बाबरी मस्जिद का तोडा जाना हिंदू -मुस्लिम भाईचारे का अंत नही था ? धार्मिक भावनाओ को आंदोलित करके दंगा जैसे हिंसक कामों को अंजाम देने जाने वाली पार्टी भाजपा को सचमुच में राष्ट्रभक्त पार्टी कहा जा सकता है ? क्या राष्ट्रिय स्वयं सेवक संघ व इनके नेताओ का भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन में अमूल्य योगदान रहा है ? स्वतंत्रता आन्दोलन में आर.एस.एस की भूमिका पर अक्सर उँगली उठती रही है .और इनके नेताओ की गतिविधियाँ भी अंग्रेजो के समर्थको की रही है तब क्या हम इन्हे आज़ादी में जान न्योछाबर करने वाले राष्ट्रभक्त कह सकते है ? माना जाता है कि आर.एस .एस की स्थापना हिंदू -मुस्लिम को बाटने के उदेश्य से अंग्रेज वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा करवाई गई थी .क्योकि गठन के एक वर्ष के अन्दर ही वर्ष 1926 में नागपुर में दो सम्प्रदायों के बीच दंगे हुए थे ."हिंदू धर्म ही राष्ट्र धर्म है " जैसा नारा ही तात्कालिक दंगों का कारण बना था. आज हिंदुत्व को फुटबाल की तरह उछालती भाजपा व आर .आर. एस. से मुस्लिम ही नही हिन्दुओं का बुद्धिजीवी वर्ग कई सवाल पूछ रहा है --
१.भारतीय आज़ादी के लिए किए गए किस आन्दोलन में आर.आर. एस. ने सक्रिय भूमिका निभाई है ?
२ साइमन कमीशन, सविनय अवज्ञा आन्दोलन, भारत छोडो आन्दोलन,शाही नौसेना का विद्रोह,आजाद हिंद सेना के खिलाफ चलाये जाने वाले मुकदमों पर नागरिक प्रदर्शन ,धरना आदि संघर्ष में जब पूरा भारत अंग्रेजो का विद्रोह कर रहा था तब आर.आर.एस. के नेता कहाँ थे ?
३ शहीद भगत सिंह , एवं काकोरी षडयन्त्र के आरोपियो की फाँसी पर जब पुरे भारत में विद्रोह किए जा रहे थे तो संघ व इसके नेता मौन क्यो थे ?
जब आर. आर. एस. का गठन हुआ उस समय देश में अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ नागरिक आन्दोलन की शुरुआत हो चुकी थी.गरम -नरम दल में विभाजीत संघटन व कांग्रेस के साथ आन्दोलनों में सभी वर्गों ने बढ़- चढ़कर हिस्सा लिया ,परन्तु संघ इन आंदोलनों से दूर रहा. कांग्रेस नेताओं ने हजारों की तादाद में गिरफतारिया दी पर संघ इन आंदोलनों से अपने को दूर रखा तथा अंग्रेजो के समर्थक बने रहे ।
दलितों के साथ छुआ- छूत जैसे आंय कुरीतियों के खिलाफ ,पेरियार ,आम्बेडकर जैसे नेताओं ने विरोध प्रदर्शन किया पर संघ मौन रहा ।
भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में ऐसा कोई प्रमाण नहीं है की संघ ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कभी आवाज उठाई हो .अगर आवाज बुलन्द की भी तो हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काने में ,द्वेष पैदा करने में ,घृणा और शत्रुता फैलाने में जिसमे प्रतक्ष्य भूमिका अंग्रेजो की भी रही. आख़िर क्या कारण था की एक तरफ अंग्रेज किसी भी पत्रिका प्रकाशन ,आन्दोलन, सभा ,सोसायटी सभी को प्रतिबंधित कर दिया तथा इनसे जुड़े लोगो को जेल के सीखचों के पीछे कर दिया वही दूसरी ओर संघ को युवको को संगठित करने एवं सैनिक प्रशिक्षण देने की अनुमति दे दी. ये शाखा लगा सकते थे ,मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ भाषण दे सकते थे इसी से प्रतीत होता है की संघ अंग्रेजो के पिट्ठू बन आन्दोलनकारियों के लिए जयचंद का काम कर रहे थे . हिंदू महासभा ने जब सनातन हिंदू युवको के लिए सैनिक अकादमी स्थापित की तो इसे प्रतिबंधित करना तो दूर इन्हे भरपूर आर्थिक व अन्य मदद अंग्रेजी हुकूमत ने की .......आख़िर क्यों
यह कह सकते है की भारत -पाकिस्तान और हिंदू -मुस्लमान बटवारे की नीव संघ परिवार द्वारा ही रखी गई जिसका खामियाजा आजतक कश्मीर समस्या के रूप में भुगतना पड़ रहा है ...आज संघ व इसकी समर्थक पार्टी भाजपा जिस राष्ट्रिय एकता की बात करते है उस एकता के ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने में इनकी ही महती भूमिका रही है .....
इतिहास में संघ को घृणा ,द्वेष, वैमनस्य, जातीय भेदभाव , धार्मिक असंतुलन छुआ -छूत और मतभेद के लिए याद किया जाना चाहिए न की राष्ट्रिय एकता के संघटक के रूप में ॥
भोथरी दलीले देने वाले संघ के लोगों जवाब दो ???
आपकी संदिग्ध कारगुजारियों का आज जनता आप से जवाब मांग रही है ...............
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इस सिलसिले में आप समाजवादी चिन्तक अफ़लातून" href="http://samatavadi.wordpress.com/author/afloo/">अफ़लातून का आलेख एक हिटलर-प्रेमी ‘गुरुजी’ भी पढ़ सकते हैं .-सं
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गुरुवार, 4 सितंबर 2008

पानी में डूबा बिहार

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अल्प समय में ही साहित्यिक गलियारों में अपना मक़ाम बना चुकी पत्रिका बया के संपादक और कथाकार-मित्र गौरीनाथ अभी -अभी बिहार के बाढ़ प्रभावित इलाकों से लौटे हैं.उनकी रुदाद सिर्फ़ मार्मिक ही नहीं बल्कि सियासतदानों की कलई खोल देती है.वो आक्रोश में कहते हैं कि ये बाढ़ आई नहीं लायी गई है.और जिन्हों ने लाया अब वो करोड़ों लूट रहे हैं.उनका कहना है कि अगर समय रहते बाँध की मरम्मत कर ली जाती तो ऐसी नौबत हरगिज़ न आती।

रियाजुल हक़ युवा पत्रकार साथी हैं.फिलवक्त पटना में प्रभात ख़बर से संबंद्ध हैं. उन्होंने पत्रकारिता के लिए समर्पित
साथी आलोक प्रकाश पुतुल की वेब पत्रिका रविवार के लिए बहुत प्रभावी रपट पानी बढ़ रहा है कलमबंद किया है, इसका कुछ अंश हम साभार यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
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सुपौल और मधेपुरा के बाढ़ग्रस्त इलाकों से लौटकर
रियाजुल हक़




70 साल के बूढे जोगेंदर ने सामान तो मचान पर चढा दिया है, लेकिन गेहूं-मकई नहीं चढा पाये। अकेले हैं. दोनों बेटे बहुओं-बच्चों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाने गये हैं. खैनी ठोंकते हुए वे हंसते हैं- उदास हंसी-“ यही तेजी रही तो कल तक सडक पार कर जायेगा पानी.” 65-70 साल की जिदंगी में पहली बार देखा है अपने घर में पानी भरते हुए. घर गया. अनाज गया. उनके खेत उन्हें खाने लायक अनाज दे देते हैं- गेहूं, धान, मकई. इस बार सब खत्म. खेत में खडी धान की फसल को बाढ लील गयी, घर में रखा अनाज पानी में डूब गया.... लोग जुट आये हैं. वे सुनाते हैं- “ सौ साल पहले यहां कोसी बहती थी. अब लगता है, वह फिर लौट आयी है.” बेचन यादव, कारी, तेजनारायण, रामदेव, संजय व शैलेंद्र ... दर्जनों लोग, सबके पास कई-कई कहानियां. किसी के आंगन में पोरसा भर पानी है, तो किसी के घर में सांप घुस आया है. अभी लेकिन सब शांत हैं-चिंता की एक रेख तक नहीं है. कहते हैं- अभी सड़क तो है ही सोने के लिए. ज्यादा डूबने लगेगा तो प्लान करेंगे निकलने का....लेकिन बूढे जोगेंदर को यह भी चिंता नहीं. वे अपनी खैनी होठों के नीचे दाब चुके हैं-“ हम अकेले आदमी, मर जायेंगे तो क्या होगा ? सांप भी कांट लेगा, तो क्या होगा ?”
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ऐसा मंजर कभी नहीं...
मधेपुरा जिले के सिंहेश्र्वर मंदिर धर्मशाला से निकलती दलित औरतों के मुंह से कुछ अस्फुट से बोल फूटते हैं-सगरे समैया हे कोसी माई, सावन-भादो दहेला... पूजा गीत। औरतों के चेहरों पर उदासी मिश्रित भय है... हर मंगल को दीप जलाने-संझा दिखाने के बाद भी नहीं मानीं कोसी माई. ...परसा, हरिराहा, कवियाही, रामपुर लाही... शंकरपुर व कुमारखंड प्रखंडों के दर्जनों जलमग्न गांवों से उजडे हजारों लोग पिछले चार दिनों से धर्मशाला में डेरा डाले हुए हैं. यहां रहने के लिए पक्के कमरे हैं. मूढी, चूडा, चीनी, खिचडी व बिस्कुट सबका इंतजाम है. बच्चे चूडा-गुड़ पाकर खुश हैं...बेवजह शोर मचा रहे हैं. बूढे-बुजुर्ग माथे पर जोर देकर याद करने की कोशिश करते हैं कोई पुरानी बात... बाप-दादों की स्मृतियों को भी खंगाल रहे हैं- “ उंहू. ऐसी बाढ मेरे देखे में तो कभी नहीं आयी. बाप-दादे भी कुछ नहीं बता गये. 30 साल पहले पानी भरा था, लेकिन ऐसा नहीं हुआ कि पाट की पूरी फसल डूब जाये फुनगी तक.”
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नई खबर, नया दुख...

कटैया बाजार पर पंडा नगर से भैंसे हांक कर ला रहे किसानों ने बताया- वीरपुर बाजार में कमर भर पानी है। भीमनगर बाजार में सरकारी राहत शिविर के सामने आधे घंटे से रोटियों के लिए खडे विकास कुमार राम ने आग्रह करते हुए लिखाया-“ वीरपुर के कुमार चौक में 50 आदमी फंसे हुए हैं.” विकास आज ही वीरपुर से निकला है किसी तरह. कोसी ने लगभग पूरी तरह लील लिया है वीरपुर को. क्या बचा है वहां अब. जो दशा है वहां की ... एक-एक कर नयी सूचनाएं मिल रही हैं वीरपुर से-मानो एक अंधकार से परदा उठ रहा हो. वीरपुर से कुसहा की दूरी महज छह किलोमीटर है और सोमवार को बांध टूटने के बाद भारत में पहला बडा आघात वीरपुर को झेलना पडा. सुपौल जिले के इस इलाके में लोगों के बीच लगातार अफवाहों का बाज़ार गर्म था. सोमवार की सुबह से ही वीरपुर बाजार में अफवाहें थीं कि बांध को खतरा है, लेकिन अधिकारिक तौर पर कोई सूचना नहीं थी. इससे लोगों ने निकलने की तैयारी भी नहीं की. बूढ-पुरनियों ने इन अफवाहों को चुटकी में उडा दिया-पानी तो आता ही रहता है. इस बार भी आया है, तो पहले की तरह ही निकल जायेगा. ...खतरे की गंभीरता का अंदेशा किसी को नहीं था.लेकिन शाम साढे छह बजे पानी शहर में घुसा और घंटे भर में पूरा शहर तीन से चार फुट पानी से भर गया. किसी को निकलने का मौका नहीं मिला. पूरा हफ्ता निकल जाने पर भी वीरपुर में आधा से अधिक लोग फंसे हुए हैं. राहत अब कुछ जाने भी लगी है, तो वह सिर्फ वीरपुर तक सीमित है. आसपास के गांव अब भी अछूते हैं. भीमनगर में मिले परमानंदपुर के एक निवासी ने बताया कि उधर अब तक कोई पहुंचा ही नहीं. रानीपट्टी से आ रहे रंजीत पासवान ने सूचना दी-सारे आदमी फंसे हुए हैं गांव में. बसमतिया रोड पर 30-40 फुट जगह बची है. उसी पर डेढ-दो हजार आदमी रह रहे हैं. खाने-पीने का कोई सामान नहीं. दो-तीन आदमी मर भी गये हैं. कटैया से वीरपुर आठ किलोमीटर है और भीमनगर से पांच. अब नावें वीरपुर तक पहुंचने लगी हैं, लेकिन वे बहुत महंगी हैं. एक नाव एक बार वीरपुर जाने के लिए पांच से छह हजार रुपये लेती है. उसमें भी पानी की धार देखते हुए इन छोटी नांवों से वहां जाना जोखिम भरा है. कटैया में एक चाय दुकान पर मिलते हैं, दिलीप कुमार गुप्ता. उनके पास वीरपुर से आज सुबह तक की सूचनाएं हैं-अब भी हरेक कॉलोनी में सात फुट पानी है. वीरपुर कोसी पुल के हॉस्टल की छत पर तीन सौ आदमी हैं. फतेहपुर स्कूल पर 50-60 आदमी हैं. कहीं कोई मदद नहीं मिल पायी है.वे सुनाते हैं-पूरा गांव भंस गया है फतेपुर का. वीरपुर बाजार में अरबों की संपत्ति का नुकसान है. क्वार्टरों में चोरियां बढ गयी हैं. जो नाववाला दिन में वीरपुर से कटैया पहुंचाता है, वही रात में जा कर खाली घरों पर हाथ साफ करता है. तीन महला मकान गिर रहे हैं. दिलीप कटैया में वीरपुरवालों को सूचना देते हैं चिल्ला कर : चानो मिस्त्री, रमेश कुमार, अख्तर बैंड, दुक्खी बैंड, मनोज पाठक के मकान टूट गये हैं.कुछ दूसरी सूचनाएं भी मिली हैं- वीरपुर जेल में 87 कैदी थे. असुरक्षित. चार दिनों से उनका खाना बंद था. जेल के कर्मचारी भाग चुके थे. अंत में कैदियों ने धोतियां-चादरें जोडीं और भाग गये. उनमें से कितने बचे-कितने डूब गये, अभी कौन बता सकता है? सिविल कोर्ट, अनुमंडल ऑफिस के हजारों रेकॉर्ड पानी में खत्म. धान और पाट की खेती डूब गयी. बीसियों हजार लोग बरबाद हो गये.
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जीना भूल गए

भीमनगर से कटैया आनेवाली सड़क राहगीरों से भरी है. उजडे-बरबाद हुए परिवार छोटे ठेलों पर, कंधे पर सामान लिये जानवर हांकते आ रहे हैं. थके-हारे चेहरे-उदास आंखें. लोग हंसना भूल गये हैं. गलती से कोई बाहरी आदमी हंस दे, तो लोग चौंक उठते हैं. जानवर तक डकरना भूल गये हैं. बूढी, कमर झुकी औरतें भी, बच्चे भी गठरियां उठाये तेजी से चल रहे हैं. कहां पहुंचना है, पता नहीं. कोसी ने उन्हें कहीं का नहीं छोडा.सडक के किनारे बाढ का पानी तेजी से थांप मारता है. कभी-कभी कोई गाड़ी भीड के बीच से गुजर जाती है सीटी बजाती हुई... एक औरत रास्ते की दूसरी ओर अपने किसी परिचित से कह रही है-वीरपुर तो अब सपना हो गया.
... कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता।
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........ राज्य के आपदा प्रबंधन मंत्री नीतीश मिश्रा बलुआ के निवासी हैं। बलुआ से आये लोग बताते हैं कि वहां न कोई नाव है, न राहत। बलुआ हाइ स्कूल पर 200 लोगों ने शरण ली थी. शुक्रवार 22 अगस्त को छत गिर गयी. उनमें से कम ही होंगे, जो बच पाये होंगे.लेकिन जो जीवित हैं, वे भी हताश हो रहे हैं. एक टेंट में सूखा चूड़ा फांक रहे उपेंद्र प्रसाद कहते हैं-“ और दो चार दिन कुछ नहीं मिला तो लोग भूखे मर जायेंगे. अभी तो जिंदा देख रहे हैं न, चार दिन बाद लाश देखियेगा लोगों की.”
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