बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 25 नवंबर 2010

बिहार चुनाव: मुसलिम विधायकों का कद ज़रा बढ़ा

बिहार में मुसलमानों की आबादी सोलह प्रतिशत से ज्यादा है, लेकिन बिहार विधान सभा में उनका प्रतिनिधित्व महज 6.58 ही रहा। लेकिन इस बार यह प्रतिशत ज़रा  बढ़ा है। पिछले विस में जहां मुस्लिम विधायक सोलह थे आज की अप्रत्याशित जीत में वह 20 हो गए हैं। आबादी के लिहाज से देखें तो कम-से-कम बिहार विधान सभा में 38 से 40 मुसलमान प्रतिनिधियों को पहुंचना चाहिए,...
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