बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

अलविदा झारखंड! लिखेंगे केरल में नया कालखंड

34वें नेशनल गेम्स का रंगारंग समापन 

याद आते रहेंगे ये पल


सैयद शहरोज कमर की कलम से  

अलविदा झारखंड! लिखेंगे केरल में नया कालखंड के उद्घोष के साथ 34वें नेशनल गेम्स का शनिवार को बिरसा मुंडा स्टेडियम में रंगारंग समापन हो गया। शुरुआत यों हुई कि गोधुली बेला के शाम में तब्दील होने के साथ टीवी की नामचीन सितारा रख्शंदा खान की मखमली आवाज गूंजी, जोहार झारखंड! राऊर मन के स्वागत करेथी!स्टेडियम ने रसरंग का लिबादा ओढ़ लिया।

तालियों ने अपनी हदें लांघ लीं। कप्तान एसपी सिन्हा ने हरे,पीले,गेरुए गुलाल की बरसात ग्लाइडर से कर जिस कलाबाजी के जौहर दिखलाए उसने शुरुआत में बजे आर्मी बैंड के बिछोह धुन को होली की रंगत में सराबोर कर दिया। मेहमान झारखंड के धरती के लालों ने जब यह देश मेरा रंगीला गाया तो दर्शकों में मानो राष्ट्रीयता का रंग चढ़ नाचने को हो गया। 

सारेगामा के लिटिल चैंपियन हेमंत ब्रिजवासी, यर्थाथ और अनामिका चौधरी मंच पर हाजिर हुए। इनकी आवाज में देशभावना से लबरेज गान गूंजे, वहीं लेजर किरणों के सफेद उजास से दर्शकों का हृदय देशभक्ति के जोश से नहा गया। मेरे देश की धरती सोना उगले ..फिल्म पुकार के इस गीत को जब इन तीन मशहूर बाल कलाकारों ने आवाज दी, तो तिरंगा लिए झारखंड के नन्हे कलाकार पूरे स्टेडियम में फैल गए।

यहां तिरंगा न सिर्फ लहरा रहा था, बल्कि उनके परिधान ने तिरंगा का रूप ले लिया था। बेशक इनकी पेशकश दूसरे ख्यात कलाकारों से बीस नहीं तो उन्नीस भी नहीं थे। जैसे ही अनामिका ने बंकिम के शब्द वंदेमातरम को स्वर दिया, तो दर्शकों में सिहरन पैदा कर दी।

भारत हमको जान से प्यारा है, सबसे न्यारा गुलिस्ता हमारा है यर्थाथ के इस गीत के संग दर्शक भी गुनगुनाने लगे।


लेजर किरणों की मदद से डांस, रंगों का अद्भुत सम्मिश्रण। नीले और हरे रंगों के संयोजन के बीच आधुनिक संगीत के संग भारतीय शास्त्रीय अलापों में उच्चरित होते वैदिक श्लोक की छौंक ने इस धारणा को मजबूत किया कि ग्लोबल रचना भी कमाल दिखा सकती है।

देश भर से जुटे लोककलाकारों ने मंच पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई तो धूल उड़ाती पगडंडियों और रपटीले रास्तों की गंवई जिंदगी जीवंत हो गई। फिर हम नृत्यों की लय, लचक भरी निराली छवियों के मन छूतों संसार में दाखिल हो गए।

बहती हवा सा था वह के बोल मशहूर गायक शान के लब से फूटे तो बरबस लोगों की निगाह उनकी खोज में लग गयी। यह क्या एक बांका जवान रोपवे से झूलता अपनी आवाज से स्टेडियम का गूंजायमान कर रहा है। यह शान ही थे। उनके साथ अद्भुत प्रकाश संयोजन के तले नाचती लड़के लड़कियों की अनगिनत देहें कभी देवनागरी की पाई सी सख्त,तो कभी स,क,और ऊ सी इधर उधर लुढ़कती,मुड़ती तो कभी उर्दू की नफासत सी। कुदरत के सारे नजारे स्टेडियम में उतर आए।

जहां से मोहब्बत,उमंग, जोश और रोमांच की खिड़कियां खुलकर दर्शकों का मनरंजन करती रहीं। बिग बॉस में शिरकत कर चुकी मॉडल क्लाडिया की लचक संगत ने माहौल को और ही खुशनुमा रंगत दे दी। लोग टकटकी लगाए उस पल का इतिजार करते रहे। आखिर हसीन पल आ गया।

आंखों के लिए सुहावनी और दिल के लिए और भी ज्यादा सुकून भरी कॉकेशियन मां व कश्मीरी पिता की बेटी वालीवुड की मौजूदा पहचान कैटरीना टरकॉट यानी कटरीना कैफ मंच की दायें दरवाजे से हंसनुमा वाहन में सवार अवतरित हुईं और स्टेडियम खिल उठा।

जितना देर उन्होंने परफार्म्स किया। सांसें थम गईं, तो दिलों की धड़कनें बेसाख्ता बढ़ने लगीं। लेकिन उन्होंने इस मंजर को भांप कहा ऑल इज वेल! धरती से उपजे लोक नृत्यों का भी अपना सौंदर्य है। मणिपुर के थांगा,पंजाब के भांडा,केरल के कुचीपुड़ी और झारखंड के छउआ नृत्य ने खूब मन रमाया। नृत्य में ही जीवन का आनंद है, यह बात कलाकारों ने सबित कर दी।


भास्कर के लिए लिखा गया 

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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

रिसालदार बाबा का नाम दरबारी खान तो नहीं!


खंगाला इतिहास, पहली बार

सैयद शहरोज कमर की कलम से 

देश की  महान सूफी परंपरा में सम्मामित मशहूर वली संत रिसालदार बाबा के  अकीदतमंदों में शुमार गुल्फाम मुजीबी, चेयरमैन राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने चौंकाने वाली जानकारी दी है। उन्होंने कहा की  आज हजरत कु तुबुद्दीन के  नाम से जाने जाने वाले19वीं सदी के  पहले दशक के  ख्यात वली का लक़ब  (उपाधि) कुतुब था, जिसका  अर्थ होता है सुप्रीम, राजा। बड़े संत बुजुर्ग वलियों को  कुतुब कहा  जाता रहा है। बाद में मूल नाम की  जगह कुतुब ने ली, फिर समय ने कुतुब को कुतुबुद्दीन कर दिया।

क्या है बाबा का असली नाम

आप का असली नाम दरबारी खान था । आप मूलत अफगानिस्तान या केरल के  रहने वाले थे। बाद में आप के पूर्वज दिल्ली के  पास झंझाना आकर बस गए। अंग्रेजों की  पल्टन में रिसालादार होकर डोरंडा छावनी आ गए थे। रिसाला घुड़सवार और हाथियों के  एक  फौजी टू्र्प को कहा जाता है। उसके  कप्तान को  रिसालादार कहा जाता था। रिसालादार शब्द कालांतर में रिसालदार हो गया।

आपके  पीर (गुरु) थे मौलाना अब्दुल रहमान 

बिहार के ऐतिहासि· कस्बा  शेरघाटी में 19वीं सदी के आरंभ में बड़े वली गुजरे मौलाना अब्दुल रहमान (1746 से 1841 ई)। आप दिल्ली के  मुहद्दिसे देहलवी शाह वलीउल्लाह के  शिष्य थे। मौलाना पर उनके  समकालीन लेखक  ख्वाजा अब्दुल करीम ने किताब लिखी रियाजउर्रहमान। आपकी कई  किताबें  खुदाबख्श खां लाइब्रेरी पटना में हैं। इस पुस्तक के  पृष्ठ 31 पर दर्ज है:

मीर बरखुरदार अली वल्द सैयद जाफर अली साकीन काबिल टोला बयान करते थे की  दरबारी खान रिसालादार तलाश में पीर की था। छावनी डोरंडा से रुख्सत लेके  झंझाना अपने वतन को  जाता था, करीब देहली के  उसको  ख्वाब में बशारत हुई िक  अगर जिंदा पीर चाहता है तो शहरघाटी जाके  मौलाना अब्दुल रहमान से मुरीद हो। वह वहीं से लौटा और हजरत मौलाना की  खिदमत में हाजिर होके  मुस्तफीद(लाभान्वित) हुआ और बैअत (शिष्यत्व)हासिल की  और अपनी मुराद को  पहुंचा।

उर्स कब से
दरगाह ट्रस्ट के  अध्यक्ष सरफराज अहमद बताते हैं िक  मोमिन पंचायत ने 1890 में उर्स की  शुरुआत की । रांची हाथीखाना के  अकबर मियां तब पंचायत के  सर्वेसर्वा थे। वहीं शहर के  दूसरे लोग कहते हैं ·िक  उर्स की  विधिवत शुरुआत सन 1939 को  होती है। तब मो मुजीब उर्स कमिटी के  सचिव बनाए गए और 25 सालों तक  अपने फर्ज को बखूबी अंजाम देते रहे।

दरगाह का निर्माण
कच्छ से आए बाबा के  चार अकीदतमंद कारोबारियों ने सन 1926से 30 के  बीच दरगाह का  निर्माण कराया। इनमें हारून उमर कच्छी,मोहम्मद इब्राहिम कच्छी के अलावा दो लोग और थे।

क्या कहते हैं.प्रमुख 

हमारा बचपन बाबा की  दरगाह के  आसपास गुजरा । वालिद साहब ने उर्स के  साथ बिरहा और कव्वाली की  शुरुआत भी की  थी। यह बिल्कुल सही है ·िक  उनका  नाम कुतुबुद्दीन नहीं था। लकब कुतुब बाद में कुतुबुद्दीन में बदल गया। हजरत का  नाम दरबारी खान हो सकता है।
गुल्फाम मुजीबी,चेयरमैन,अल्पसंख्यक  आयोग

गजेटियर में भी कुतुबुद्दीन नाम का  ज़िक्र नहीं मिलता है। संभव है ·िक  हजरत का  नाम दरबारी हो। दरगाह ट्रस्ट को हजरत के  बारे में और जानकारी इकट्ठी करनी चाहिए।
हाजी हुसेन कच्छी, वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता

इस सिलसिले में अभी और खोजबीन की जरूरत है। ट्रस्ट की कोशिश रहेगी की बाबा के बारे में और बातें उनके  अकीदतमंदों को पता चले।
सरफराज अहमद, अध्यक्ष, दरगाह ट्रस्ट

भास्कर के लिए लिखा गया
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रविवार, 13 फ़रवरी 2011

आधी आबादी की मुकम्मल उड़ान



पंचायत परिषद की पहली राज्यस्तरीय बैठक में शामिल होने रांची आईं महिला पंचायत प्रतिनिधियों से मिलने के बाद बरबस एक पंक्ति गूंज उठती है, ‘परिंदों को मिलेगी एक दिन मंजिल, यह फैले हुए उनके पर बोलते हैं’।

ओरमांझी के हेंदबली की मुखिया शीला देवी अपने इलाके में बिजली लाना चाहती हैं, ताकि रोशन हो सके पांच हजार लोगों का घर संसार। खड़िया से बच्चे साफ साफ लिख सकें ‘व से विकास’। छह माह के बच्चे को गोद में संभाले जब शीला देवी बोलती हैं तो गांव की बदल रही तस्वीर सामने आ जाती है।

उनके गांव की तरह इसमें अभी धुंधलापन तो है, लेकिन इन जैसी ढेरों महिला पंचायत प्रतिनिधियों के इरादे गांव की एक नई इबारत लिखने का हौसला रखते हैं। गांववालों का उन पर भरोसा उनके पंचायत के आसपास घिरे जंगल सा ही घना है। बिजली के बाद सड़क, भतीजे कमल बेदिया की प्रेरणा से आगे आई इंटर पास शीला की प्राथमिकता में है।

शहीद शेख भिखारी के गांव खुदिया लुटिया की कुटे पंचायत की मुखिया, मैट्रिक पास सुनीता देवी अपने रंग की तरह ही पंचायत भी सांवला सलोना चाहती हैं। उन्हें कोफ्त है कि शहीदों के गांव की चिंता सरकार नहीं करती। सबसे पहले सड़क बनवाएंगी ताकि विकास दौड़ सके।

खेतिहर पथरीली जमीन के लिए सिचाई के बंदोबस्त की भी उन्हें फिक्र है। सभी जरूरतमंदों को लाल और पीला कार्ड दिलाने और गांव गांव पेयजल की पहुंच की जुगत में चकला पंचायत की नीलम गुप्ता लगी हैं। रुदिया की समिति सदस्य सुबोधिनी महली जीत का श्रेय साहेरबड़ा गांव के जगदीश महतो को देती हैं, पानी की समस्या से निजात मिल जाएगी, उन्हें भरोसा है।

बानापीड़ी की पंचायत समिति सदस्य रेहाना सुल्ताना का तेज दिल्ली सल्तनत की साम्राज्ञी रही रेहाना सुल्ताना की तरह ही है। स्कूल की हालत में सुधार लाना और मुस्लिम लड़कियों के बीच शिक्षा की लौ जगाए रखना चाहती हैं। रातू पंचायत की इस समिति सदस्य की राह में नकाब कभी बाधा नहीं बनी। बचपन से ही कुछ करने की तमन्ना संजोए शहजादी परवीन ने जब बीए में दाखिला लिया तो राजनीति विषय का चुनाव किया।

बरवे पंचायत समिति की सदस्य बन उन्होंने सपने की पहली मंजिल तय की है जरूर, लेकिन एमएलए एमपी बन कर देश की सेवा करना उनका सपना है। सदमा पंचायत की सुशांति मुंडा ने जनसेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया है। उनके पति महंती मुंडा नेक काम में उनके साथ हैं। हेंदली पंचायत की उपमुखिया झानो देवीहों या पाचा पंचायत की सदस्य आशा देवी इनके इरादे भी गांव के विकास को लेकर नेक हैं।

महिलाओं का एक सा संकल्प

इन महिलाओं में भ्रष्टाचार के विरुद्ध गहरा आक्रोश है। झानो देवी और आशा देवी हों या शहजादी, सुशांति, शीला। आधी आबादी ने अब झारखंड में कमान संभाल लिया है। इन्होंने ठान लिया है कि विकास की राह में आने वाली हर रुकावटों का वह मुंहतोड़ जवाब देंगी। जरूरत पड़ी तो भ्रष्ट अघिकारियों के कॉलर भी पकड़ने में उन्हें गुरेज नहीं होगी।

बबुआ है सरकार, लड़ कर लें अधिकार: सुबोध

केन्द्रीय पर्यटन मंत्री सुबोध कांत सहाय ने नवनिर्वाचित प्रतिनिधियों का उत्साह बढ़ाते हुए कहा कि राज्य में एमएलए और एमपी की सरकार फेल हो गई है, अब उम्मीद गांवों की सरकार से है। विकास का सारा दारोमदार आप पर है।

अपना अधिकार लड़कर लें। सरकार यहां बबुआ है, इन्हें समझ नहीं, आप समझाइए और अधिकार लें। अधिकार मिलेगा तभी काम होगा और पंचायत चुनाव का उद्देश्य पूरा होगा। सुबोध ने आयोजकों को इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम के आयोजन के लिए धन्यवाद दिया।

भास्कर के लिए लिखा गया 
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