बहुत पहले कैफ़ी आज़मी की चिंता रही, यहाँ तो कोई मेरा हमज़बाँ नहीं मिलताइससे बाद निदा फ़ाज़ली दो-चार हुए, ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलताकई तरह के संघर्षों के इस समय कई आवाज़ें गुम हो रही हैं. ऐसे ही स्वरों का एक मंच बनाने की अदना सी कोशिश है हमज़बान। वहीं नई सृजनात्मकता का अभिनंदन करना फ़ितरत.

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

पोंडिचेरी के भवानी सिंह चारण की नज़्म


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जिस भाव-भंगिमा और तेवर के साथ यह युवा कवि-शायर शायरी कर रहा है.इस उम्र की दीवानगी उसे ज़रूर मंज़िल-मुक़ाम तक ले जायेगी.कुछ उस्ताद बहार-मात्रा की मीनमेख निकाल सकते हैं.लेकिन शुरूआती वक्त है, सो इसे नज़र अंदाज़ किया जाना चाहिए। आज़ादी के उत्सव के वक्त इस शायर की बेचैनी, उसका आक्रोश, सामाजिक विसंगतियां उसे कहाँ ले जाती है.उसी की तस्वीर इस नज़्म में देखी जा सकती है। कविता यूँ लम्बी है, ज़रा आपको धैर्य रखना होगा, वरना आप अच्छी शायरी से वंचित हो जायेंगे.


उन्होंने हमज़बान के लिए रचना दी , हम शुक्र-गुज़ार हैं.
अपने बारे में उनका कहना है:
नाम भवानी सिंह चारण और तखल्लुस 'बेकस' , परिचय तो बस इतना ही है मेरा, राजस्थान के बाड़मेर जिले के एक छोटे से गाँव में पला बढ़ा जहाँ टेलीफोन आए अभी पूरा १ साल हुआ नही है। परिवार में काव्यात्मक माहौल मिलने के कारण लिखने की प्रेरणा मिली, अभी पांडिचेरी में सुजलोन एनर्जी लिमिटेड में नौकरी करता हूँ। लिखना अभी १-२ महीने पहिले ही प्रारम्भ किया है।
'यह शहरोज़ भाई की मेहरबानी है की मुझे आप लोगों के सामने आने के लिए अवसर दिया, उन्हें आप सब जानते होंगे फिर भी उनका परिचय में इन शब्दों में देता हूँ...
'मत पूछिए कि क्या क्या हैं शहरोज़ के हुनर,
वो जानता है ज़र्रे को सितारा बना देना....'
-सं.

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इस शहर में कलियों से लहू टपकता देखकर,
डर गया मैं अमन को घुट घुट के मरता देखकर,
और जिंदा लाशों के ख़्वाबों को जलता देख कर,
जाता हूँ मालिक अब तुम्हारी रहनुमाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

स्याह रातों में गमजदा नाचती वो औरतें,
कौडियों के मोल बिकती हुई सैकड़ों गैरतें,
और हैवानों के हाथों बिखरती सी जीनतें,
वो गलियां जहाँ दिए घुँघरू सुनाई, देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

भूख से गिरते हुए और प्यास से मरते हुए,
कंकाल से वो जिस्म दम आखिरी भरते हुए,
डरते हुए जान से और मौत को तरसते हुए,
उन जिस्मों से होती हुई जां की विदाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

उन लक्ष्मीपुत्रों के घर रहती हैं सदा दीवालियाँ,
और साकी के लिए हैं मोतियों की थालियाँ,
पर हम गरीबों के लिए हर रोज़ मिलती गालियाँ,
उन श्वेत चेहरों पर पुती काली सियाही देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

उजले लिबासों वाले वो सेठ और वो शाहजी,
कोठों में छुप गए जब रात की नौबत बजी,
और फिर नाचीं हैं कुछ लाशें गहनों में सजी,
उन पर्दानशीं चेहरों की मैंने बेहयाई देखली।
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

इन महल वालों पे मैं पत्थर उठा सकता नही,
तेरी तरह खून की नदियाँ बहा सकता नही,
और मजहब के लिए खंज़र चला सकता नही,
बात ज़ब दम की चली अपनी कलाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

सुन नही सकता हूँ में पंडित की झूठी आरती,
और वो अज़ाने मुल्ला तुझको ही है पुकारती,
या के ईसा के जनों की प्रार्थना दिल हारती,
मैंने अब तक तुझको सुन, दे दे दुहाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

दिखता है जिसमे अक्स-ऐ-रब मैं वो शीशा तोड़ दूँ,
या के दीवारों से सर टकरा के अपना फोड़ दूँ,
दिल चाहता है आज मैं ख़ुद को तड़पता छोड़ दूँ,
उम्र भर कर के मुकद्दर से लडाई देख ली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

मैं चाहता हूँ आज जहन्नुम और जन्नत फूँक दू,
इक बार मेरा दिल अगर दे दे इजाज़त फूँक दूँ,
मुझ पर तेरी जितनी है सारी इनायत फूँक दूँ,
आग इस दुनिया में है किसने लगाई देखली,
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

मेरा ख्वाब था कि मैं कभी दिन के उजाले देखता,
सूरज की किरणों कि चादर सर पे डाले देखता,
बैठता मैं छाँव में फिर पांवों के छाले देखता,
बेकस ने तो सिर्फ अपनी शिकस्तापाई देख ली
जा खुदाया आज तेरी भी खुदाई देख ली।

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शनिवार, 9 अगस्त 2008

झूठ का कमाल ! वाह! भाई वाह!

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युवा पत्रकार हैं आशीष कुमार 'अंशु' , जनाब में गज़ब का नज़रिया है.उनके ब्लॉग पर
ऐसी खबरें और संघर्ष से आपका साबका होगा , जहाँ धूप, धूप-सी और अन्धकार
बिल्कुल घुप!! उनके ब्लॉग से साभार इस ख़बर से आप भी परिचित हों सो मैं रशीद
भाई को यहाँ ले आया. -सं.
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वाह! भाई वाह!
भाई साहब का नाम है रशीद सद्दीकी। बांदा के बड़े पत्रकार हैं। इनकी कृपा से इन दिनों बांदा की कई सड़कें चमक उठी हैं। हुआ यूँ कि जनाब ने अपने विश्वस्त सूत्रों के हवाले से यह ख़बर छाप दी कि राहुल गाँधी हवाई रास्ते से नहीं सड़क के रास्ते से बांदा आयेंगे ।बस इस ख़बर के छपने भर की देर थी। रातों-रात सड़कें दुरुस्त कर दी गई। वैसे कौन सा राहुल को सड़क के रास्ते आना था।
जय हो रशीद साहब की।
रशीद भाई-जिंदाबाद!

मीडिया स्कैन से साभार

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रविवार, 3 अगस्त 2008

विकलांगता का अभिशाप झेलते आदिवासी






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अभी जल और जीने की अन्य अत्यन्त मूलभूत चीज़ें भी जिस मुल्क के लोगों को मयस्सर नहीं वहां करोड़ों की लागत से परमाणु बिजली का ओचित्य समझ से परे ही है।



और आप जानते हैं।


-इस हालिया करार से महज़ ५-७ फीसदी ही बिजली मुहय्या हो पायेगी ।

-अम्रीका की दो कंपनियों को दस साल के अन्दर चालीस खरब का कारोबारी लाभ मिलेगा।
-अपने देश में बने बिजली कारखाने से वहां के ५००० लोगों को स्थायी रोज़गार और १५००० को अस्थायी काम मिलेगा.


और हमें मिलेगा:


अब तक विश्व में हुए परमाणु परिक्षण से दुगुना विकिरण-कचरों का सोगात।सर्वों से ये सच भी आया है रेडिओधार्मिता से विकलांगता,कैंसर,नपुंसकता में इजाफा होता है।इसकी जिंदा मिसाल राजस्थान के परमाणु बिजली घर के आस-पास और झारखण्ड में जादुगोडा की आबादी है।


इसी सिलसिले की कड़ी और है जहाँ सरकार की उदासीनता की वजह्कर प्रदूषित-जल का उपयोग करने को विवश उत्तर-प्रदेश के सुल्तानपुर के टपरी गाँव और सोनभद्र जिले के दर्जन-भर गाँव विकलांगता का दंश झेल रहे हैं।


युवा पत्रकार अवेश तिवारी इलाहबाद के हैं। सम्प्रति इक अख़बार से सम्बद्ध.मूल्यों को व्यवहार और लेखन-पत्रकारिता में भी बरकरार रखने के आप हिमायती हैं.प्रतिबद्धता की खातिर इन्होने इक अख़बार की नोकरी तक त्यागने में संकोच नहीं किया.-सं.


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सोनभद्र से अवेश तिवारी की रपट

सोनभद्र सदमे मे है । अभाव,उपेक्षा और सरकारी अक्षमता की बानगी बन चुके इस जनपद में शासन एवं सत्ता की काली करतूत एक त्रासदी पर परदा डालकर समूची पीढ़ी को विकलांग,नपुंसक और नेस्तनाबूद करने जा रही है ।
यहाँ के चोपन ,दुधी व म्योरपुर ब्लाक के आधा दर्जन गाँव फ्लोराइड के चपेट में हैं. प्रदूषित जल के कारण हजारों आदिवासी स्त्री पुरूष व बच्चे स्थायी विकलांगता के शिकार हो रहे हैं ,माताओं की कोख सूनी पड़ी है । तमाम जिंदगियों में छाया अँधेरा अनवरत गहराता जा रहा है राज्य पोषित विकलांगता का हाल ये है कि जलनिधि समेत तमाम योजनाओं मे करोड़ों रुपए खर्च किए जाने के बावजूद यहाँ के आदिवासी गिरिजनों के हिस्से में एक बूँद भी स्वच्छ पानी नहीं । फ्लोराइड रूपी जहर न सिर्फ़ इनकी नसों मे घूल रहा है ,बल्कि निर्बल व निरीह आदिवासियों के सामाजिक -आर्थिक ढाँचे को भी छिन्न-भिन्न कर रहा है
सोनभद्र के आदिवासी बाहुल्य पूर्वी इलाकों मे फ्लोरोसिस का कहर अपाहिजों की बस्ती तैयार कर रहा है । यहाँ के पड़वा-कोद्वारी ,पिप्रह्वा ,कथौदी ,कुस्मुहा ,रास्पहरी,भात्वारी,राजो,नेमा ,राज मिलन ,बिछियारी समेत २ दर्जन गावों मे हिंडालको व एन।टी,पी।सी से निकलने वाले प्रदूषित जल का भयावह असर देखने को मिल रहा है। आलम ये है की लगभग १०० परिवारों के टोले पड़वा-कोद्वारी मे हर एक स्त्री -पुरूष व बच्चे को फ्लोराइड रूपी विष रोज बरोज मौत ओर धकेल रहा है । केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा विगत पाँच वर्षों में इस समूचे क्षेत्र मे फ्लोराइड मेनेजमेंट के नाम करोड़ों रुपये खर्च किए जाने के बावजूद न तो ओद्योगिक प्रदुषण पर लगाम लगाई जा सकी और न ही स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता को लेकर कोई कवायद की गई
इस वर्ष भी अप्रैल माह मे कहने को तो फ्लोराइड मुक्त जल की व्यवस्था के नाम पर ५० लाख रुपए खर्च किए जाने का प्रशासन दावा करता रहा ,परन्तु जमीनी हकीकत ये है कुछ भी नहीं बदला हाँ,ये जरुर है की इन इलाकों के सैकडों ,तालाबों व कुओं पर लाल रंग का निशान लगाकर लोगों को पानी न पीने देने की चेतावनी देने का थोथा ज़रूर किया गया,मगर जबरदस्त पेयजल संकट से जूझ रहे इस जनपद मे नौकरशाही से थकहार चुके आदिवासियों ने अन्य कोई समानांतर व्यवस्था के अभाव में प्रदूषित जल का सेवन जारी रखा स्थिति इस हद तक गंभीर है कि हर एक परिवार फ्लुओरोसिस की अन्तिम अवस्था से जूझ रहा है कोद्वारी के रामप्रताप का शरीर इस कदर अकडा कि वो चारपाई से कभी उठ नही पाते उनकी पत्नी व लड़का भी इस भयावह रोग की चपेट मे हैं।
कमोबेश यही हाल रामवृक्ष ,चन्द्रभान ,हरिकृष्ण समेत अन्य परिवारों का है बच्चों मे जहाँ फ्लोराइड की वजह से विषम अपंगता,व आंशिक रुग्नता देखने को मिल रहा है ,वहीं गांव के विवाहितों ने अपनी प्रजनन व कामशक्ति खो दी है गांव के रामनरेश,कैलाश आदि बताते हैं :
अब कोई भी अपने लड़के लड़कियों की शादी हमरे गांव मे नही करना चाहता ,देखियेगा एक दिन हमरे गांव टोलों का नामो,निशाँ मिट जाएगा
महिलाओं मे फ्लोराइड का विष कहर बरपा रहा है । इलाके मे गर्भस्थ शिशुओं के मौत के मामले सामने आ रहे हैं ,स्त्रियाँ मातृत्व सुख से वंचित हैं,वहीं घेंघा ,गर्भाशय के कंसर समेत अन्य रोगों का भी शिकार हो रहे हैं ,लगभग ८० फीसदी औरतों ने शरीर के सुन्न हो जाने की शिकायत की है ।
नई बस्ती की लीलावती,शांति,संतरा इत्यादी महिलाएं कहती हैं की हम बच्चे पैदा करने से डरते हैं हमें लगता हैं की वो भी कहीं इस रोग का शिकार न हो जाए ।
फ्लुओरोसिस ने आदिवासी-किसानों को पूरी तरह से तबाह कर डाला है अपंगता की वजह से स्त्री पुरूष काम पर नही जा पाते हजारों हेक्टेयर परती भूमि कौडी के भाव बेची जा रही है ,नक्सल प्रभावित इन गांव मे अब तक प्राथमिक चिकित्सा की भी सुविधा उपलब्ध नही है ,पीडितों के लिए स्वास्थ्य विभाग द्बारा एक टेबलेट भी मुहैया नही करायी गई पिपरहवा के रामधन कहते हैं की अब हमें कूच नहीं चाहिए हमने मरना सीख लिया है
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